धनबाद सेहरि प्रसाद पप्पू
एक सामान्य इंसान अपने प्राणों की रक्षा के लिए क्या नहीं कर सकता? ऐसे में यह कल्पना ही की जा सकती है कि देश की आजादी के लिए बिना संकोच अपना प्राण न्योछावर करनेवाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव समेत उस दौर के स्वतंत्रता सेनानियों में कितना अदम्य साहस रहा होगा. भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव ने फांसी पर चढ़कर अपने प्राण त्याग दिये, बशर्ते साम्राज्यवादी ब्रिटिश हुकूमत के सामने घुटने टेकने के. इस महान शहादत के 87 वर्षों बाद भी हमारे सामने यह सवाल खड़ा है कि क्या भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव की शहादत सार्थक हुई? क्या आजादी के बाद हम उनके सपनों का भारत बना पाये हैं? क्या वर्तमान भारत में जो हालात हैं, उसमें भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव यदि जीवित होते, तो प्रसन्न होते? 71 वर्ष पूर्व भारत ब्रिटिश साम्राज्यवाद के अधीन था.
हुकूमत के विरुद्ध बोलना देशद्रोह था और सजा थी-मौत. ऐसे में देश के क्रांतिकारियों की टोली आगे बढ़कर शहादत एवं कुर्बानी देने लगी. शासक वर्ग की तानाशाही की नीति चरमराने लगी. राष्ट्रमुक्ति आंदोलन से जुड़कर कुछ विशेष नौजवानों के दस्तों की पहल से भारत की जनता गोलबंद हुई. इसमें चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, गुप्तेश्वर दत्त, महावीर सिंह, यतींद्रनाथ दास, मन्म नाथ गुप्ता, दुर्गा भाभी, भागवतीचरण वोहरा, अशफाक उल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल, यशपाल, शिव वर्मा सहित सैकड़ों नाम शामिल हैं. भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव की शहादत का विशेष स्थान है.
23 मार्च 1931 की शाम लाहौर कारागार में एक साथ भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव को फांसी दी गयी. साम्राज्यवादी सरकार की इस बर्बर कार्रवाई ने स्वतंत्रता आंदोलन को और तीव्र करने का काम किया. नतीजा देश आजाद हुआ. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव आजाद भारत को समाजवादी देश के रूप में देखना चाहते थे. भगत सिंह एवं उनके तमाम क्रांतिकारी साथी सन् 1917 के रुसी साम्राज्यवादी क्रांति से प्रभावित थे. मार्क्स एवं लेनिन को अपना आदर्श मानकर भारत के नव-निर्माण की परिकल्पना की थी. विभिन्न रास्तों से गुजरते हुए आज भारत पूरी तरह पूंजीवाद व साम्राज्यवाद की राह पर है. कॉरपोरेट जगत के रूप में पूंजीवादी साम्राज्यवाद भारत को गुलाम बना रहा है. देश के संविधान में व्यक्ति की आजादी व अभिव्यक्ति की आजादी की घोषणा है. मगर शासक वर्ग की ओर से लगातार ऐसी परिस्थिति पैदा की जा रही है, जहां अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में पड़ गयी है.
हैदराबाद में दूसरे वर्ष के पीएचडी छात्र रोहित वेमुला द्वारा आत्महत्या की घटना ने जहां देश के सामूहिक चिंतन पटल को झकझोर कर रख दिया है, वहीं कन्हैया कुमार जैसे युवा को देशद्रोही बनाने की साजिश सामने आ चुकी है. युवा वर्ग बेरोजगारी से ग्रस्त है. मध्यम वर्ग महंगाई से पस्त है. श्रमिक वर्ग उत्पीड़न एवं कष्ट में है. ऐसे में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की साझा शहादत फिर प्रासंगिक हो जा रही है. आज के दिन हमें संकल्पित होकर नये भारत के निर्माण के लिए कदम आगे बढ़ाना होगा, जो समाजवादी दृष्टिकोण से ही हो सकता है.
(लेखक मासस के जिला अध्यक्ष हैं.)