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पंचायत पुरस्कृत, पर अब भी खुले में जाते हैं शौचफ्लैग : घर-घर शौचालय की योजना पर उठा सवालिया निशान-शौचालय निर्माण में हुई खानापूर्ति-कहीं पैन लगा, कहीं सिर्फ शौचालय की ईट रखी गयी-शौचालय में न दरवाजा है न पानी-गांव में जागरूकता की भी है कमी-चारों पुरस्कृत पंचायत में 10 फीसदी लोग भी शौचालय का उपयोग नहीं […]

पंचायत पुरस्कृत, पर अब भी खुले में जाते हैं शौचफ्लैग : घर-घर शौचालय की योजना पर उठा सवालिया निशान-शौचालय निर्माण में हुई खानापूर्ति-कहीं पैन लगा, कहीं सिर्फ शौचालय की ईट रखी गयी-शौचालय में न दरवाजा है न पानी-गांव में जागरूकता की भी है कमी-चारों पुरस्कृत पंचायत में 10 फीसदी लोग भी शौचालय का उपयोग नहीं करते-संतालपरगना के चार पुरस्कृत पंचायतों की स्थिति बदहाल——संतालपरगना के पंचायत जो हुए पुरस्कृत : देवघर जिले के दो प्रखंड सारठ (दुमदुमी पंचायत)और देवीपुर(रामूडीह), दुमका जिला अंतर्गत जरमुंडी प्रखंड का पेटसार पंचायत व गोड्डा जिले के सदर प्रखंड का निपनिया पंचायत.——-इंट्रोदेश,राज्य, जिला, प्रखंड, पंचायत व गांव को स्वच्छ बनाने के लिए देशभर में भारत व राज्य सरकारें स्वच्छ भारत मिशन कार्यक्रम चला रही है. प्रधानमंत्री से लेकर सत्ता में बैठे जनप्रतिनिधि और सरकार में उनके मातहत भी इस अभियान को सफल बनाने में लगे हैं. लेकिन योजनाएं धरातल पर नहीं कागज पर उतर रही है. ऐसा नहीं है कि सरकारी प्रयास नहीं हो रहा है. लेकिन धरातल पर इमानदार प्रयास नहीं होने के कारण योजनाएं सिसक रही है और स्थिति जस की तस है. इसी तरह का एक अभियान है खुले में शौचमुक्त करने का अभियान. घर-घर में शौचालय हो, कोई भी व्यक्ति पहले की तरह खुले में शौच न जायें. इसलिए खुले में शौचमुक्त वातावरण बनाने के लिए केंद्र व राज्य सरकार एड़ी-चोटी एक कर रही है. यही नहीं शत-प्रतिशत खुले में शौचमुक्त गांव व पंचायतों को सरकार द्वारा पुरस्कृत करने की भी योजना बनी है. ताकि पंचायतीराज में लोग जागरूक हों और पुरस्कार पाने की होड़ में अपने गांव व पंचायत को खुले में शौचमुक्त करने की कोशिश करें. लेकिन अपने मुंह मिया मिट्ठू बनने के लिए प्रशासन में बैठे अधिकारी झूठी रिपोर्ट भेज कर वैसे पंचायतों को अव्वल बना देते हैं जिसकी धरातलीय स्थिति कुछ और है. नतीजा है कि पंचायतों के मुखिया या जो भी जनप्रतिनिधि हैं, उन्हें राज्य सरकार की ओर बड़े समारोह में पुरस्कृत कर दिया जाता है. लेकिन शायद उन मुखिया या पुरस्कार पाने वाले जनप्रतिनिधियों को उनके पंचायत की हकीकत नहीं पता होगी. पहले निर्मल ग्राम अभियान इसी उद्देश्य से चला था. उसका भी यही हश्र हुआ. कई पंचायतें निर्मल घोषित हुई, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री तक से प्रतिनिधियों व अफसरों ने पुरस्कार पाया लेकिन जहां-जहां निर्मल ग्राम बना था, वहां आज भी खुले में ही लोग शौच जाते हैं. लगभग यही स्थिति पूरे संताल ही नहीं झारखंड के पंचायतों की है. अधिकांश इलाकों में कागजों पर अभियान को सफल बताया जा रहा है. अभी हाल ही में झारखंड सरकार ने राज्य के वैसे पंचायतों के प्रतिनिधि को सम्मान देने का निर्णय लिया जिनका पंचायत खुले में शौचमुक्त शतप्रतिशत हो गया है. इसमें देवघर जिले के दो प्रखंड सारठ (दुमदुमी पंचायत)और देवीपुर(रामूडीह), दुमका जिला अंतर्गत जरमुंडी प्रखंड का पेटसार पंचायत व गोड्डा जिले के सदर प्रखंड का निपनिया पंचायत शामिल हैं. इन पंचायतों के प्रतिनिधियों को पुरस्कार तो मिल गया लेकिन जिस उद्देश्य से उन्हें पुरस्कार मिला है. उन पंचायतों की धरातलीय स्थिति की पड़ताल प्रभात खबर टीम ने की तो योजना की कलई खुल गयी. धरातल पर कैसे शौचमुक्त हुआ है पंचायत, प्रस्तुत है प्रभातखबर की पड़ताल आधारित जीरो ग्राउंड रिपोर्ट : ——–

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