देवघर: डीपीएम द्वारा तत्कालीन सिविल सजर्न डॉक्टर अशोक कुमार पर लगाये गये यौन प्रवृत्ति के अवांछनीय आचरण करने व मनगढ़ंत आरोप लगा कर बदनाम करने के मसले पर शनिवार को समाहरणालय में दो अधिकारियों की जांच टीम ने जांच-पड़ताल की. इस क्रम में डीसी के निर्देश पर अपर उपायुक्त शिवेंद्र सिंह व जिला पंचायती राज पदाधिकारी इंदू गुप्ता ने पीड़िता सहित आरोपित तत्कालीन सीएस डॉ अशोक कुमार को बुला कर अलग-अलग वार्ता की. दोनों का पक्ष सुना गया. लिखित बयान भी लिया गया.
दोनों से कुछ सवाल-जवाब भी किये गये. जांच-पड़ताल काफी देर तक चली. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष व झारखंड सरकार के स्वास्थ्य विभाग से प्राप्त निर्देश के आलोक में डीसी राहुल पुरवार ने एक जांच कमेटी गठित की थी. डीपीएम की शिकायत पर राज्य मानवाधिकार आयोग झारखंड, रांची ने वाद संख्या 509/12 अंकित किया. इस परिवाद के आलोक में आदेश पारित कर स्वास्थ्य, परिवार व कल्याण विभाग के सचिव और देवघर डीसी से रिपोर्ट तलब किया था.
क्या है महिला कर्मी का आरोप
डीपीएम ने 18 मई 2013 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष को पत्र लिखी थी. जिक्र है कि वे विधवा हैं, जो तीन साल के बच्चे के साथ रहती हैं. अपने कार्यकाल में वे बेदाग रही हैं. सीएस डॉक्टर अशोक कुमार के पदस्थापन के बाद से ही उन पर कुटिल नजर थी. वे डॉक्टर अजीत कुमार के साथ स्थानीय होटल के कमरे में आवास रखे हैं. आये दिन दोनों कार्यालय कार्य समाप्त होने के बाद सभी के जाने के पश्चात बहाना से रोक रखते थे. कक्ष में अकारण कार्यालय कार्य के बहाने यौन प्रकृति का अवांछनीय मौखिक आचरण करते हैं. इससे तनाव में हैं. पत्र में यह भी जिक्र है कि राष्ट्रपति के कार्यक्रम की तैयारी को लेकर निर्देश देने के बहाने 20 अप्रैल को पांच बजे संध्या कक्ष में बुलाया. होटल के कमरे में आने को कहा. इस पर उच्चधिकारियों से शिकायत संबंधी बात कहने पर धमकी दी गयी. इसके बाद उनके द्वारा मनगढ़ंत आरोप बना कर उच्चधिकरियों को पत्रचार भी कर दिया. पत्र के माध्यम से बच्चे सहित खुद की सुरक्षा मांगी थी. साथ ही कार्रवाई नहीं होने पर बच्चे सहित आत्महत्या करने को विवश होने की बात भी कही थी.