देवघर: राज्य अलग होने के बाद से ही देव नगरी में भू माफियाओं का दबदबा कायम होने लगा है. यहां की जमीन की कीमत मेट्रो सिटी से भी कई गुणा अधिक हो है. यहां जमीन की कमी होने के बाद माफियाओं ने अब बाबा मंदिर से सटी जमीन नाथबाड़ी पर भी नजरें गड़ा दी हैं. इस जमीन का बाबा मंदिर से प्राचीनतम रिश्ता है. इसे बेचने के लिये करोड़ों का हाइ प्रोफाईल खेल चल रहा है.
विद्वान पंडित कामेश्वर मिश्र की मानें तो मुगल काल में जब मंदिरों पर आक्रमण हो रहा था तब जूनागढ़ अखाड़ा से आदि गुरु शंकराचार्य के आदेश से आदि नाथ के नेतृत्व में नाथ संप्रदाय के दस साधक स्वयंसेवक मंदिर की रक्षा के लिये देवघर आये थे. तभी से यह मंदिर का अटूट हिस्सा बना हुआ है.
पंडित मिश्र ने मंदिर से इस जमीन की पौराणिक रिश्ता पर विस्तार से चर्चा करते हुए बताया की इस नाथबाड़ी से बाबा मंदिर विग्रह से छह फीट नीचे तल में दर्शन का सौभाग्य स्थली है. मंदिर की सुरक्षा के लिये उस समय मंदिर की चहारदीवारी का निर्माण जिस ईंट से हुआ था. नाथों ने उसी ईंट से नाथबाड़ी की जमीन की घेराबंदी भी की थी. आज भी दोनों जगह के ईंटों को मिलाने से इसका प्रमाण मिलता है. यहां आज भी कई सिद्ध नाथों की समाधि को देखा जा सकता है.
वहीं बाबा मंदिर में महाकाल भैरव मंदिर एवं महिला दरवाजे के सामने परिसर में गर्भ तक जाने का भी एक खुफिया रास्ता है. जो अंदर ही अंदर नाथ बाड़ी के रास्ते से मिला हुआ है. वर्तमान समय में इस जगह लगे पत्थर को देखने से किसी टंकी के ढक्कन सा प्रतीत होता है. जानकार बताते हैं कि पौराणिक साधना व कौतूहल की इस धरोहर को विकास व सूरक्षा की दृष्टि से हर हाल में बचाने की जरुरत है. क्योंकि यह मंदिर की संपदा के साथ – साथ करोड़ों बाबा भक्तों की आस्था की भी जागीर है. जमीन में पूर्व से नाथ संप्रदाय के लोगों का साधना स्थली व निवास स्थान रहा है. इस जमीन का क्षेत्रफल भी बाबा मंदिर परिसर के क्षेत्रफल के बराबर ही है.
– पंडित कामेश्वर मिश्र