देवघर: ‘हिंदी साहित्य एवं नारी विमर्श’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन शुक्रवार को देवघर कॉलेज स्थित चंद्रशेखर भवन में हुआ. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रायोजित संगोष्ठी के आयोजक स्नातकोत्तर हिंदी विभाग देवघर कॉलेज था.
संगोष्ठी में औरंगाबाद से आये हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो देवेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि स्त्री विमर्श बौद्धिक और आधुनिक चिंतन है. विश्व में स्त्री व पुरुष की असमानता को लेकर यह विमर्श हो रहा है. हिंदी में स्त्री चेतना पुरानी है. स्त्री चेतना स्त्री संगठन के बगैर अधूरी है. चेतना साहित्य में जीवन संबंध तक पहुंच गयी है. पश्चिम बंगाल विश्व भारती हिंदी भवन के प्रो मुक्तेश्वर नाथ तिवारी ने कहा कि महावृत्तांतों के अस्त होने पर साहित्य में लघु वृत्तांत के रूप में स्त्री और दलित विमर्श अस्तित्व में आया. स्त्री विमर्श स्त्री की मुक्ति से सीधा सबद्ध है. उसकी आत्म पहचान के लिए किये गये प्रयत्न उसकी स्वतंत्र भाषा स्त्री विमर्श के दीगर प्रश्न हैं.
हिंदी साहित्य में स्त्री-चेतना की सब दिन सशक्त अभिव्यक्ति हुई है. दूसरे सत्र में ब्रजेंद्र कुमार ब्रजेश ने कहा कि हिंदी में नारी चेतना प्रगतिवादी दृष्टि के उत्थान और विकास से मानते हुए पंत से इसकी शुरुआत हुई. संगोष्ठी में मंच संचालन डॉ अंजनी शर्मा ने किया. मौके पर संगोष्ठी के संरक्षक सह देवघर कॉलेज देवघर के प्रिंसिपल डॉ सीता राम सिंह, संयोजक लेफ्टिनेंट डॉ राजेश कुमार सिंह, देवघर कॉलेज के हिंदी विभाग के भूपाल शर्मा, डॉ संजय, डॉ राखी रानी आदि उपस्थित थे.
संगोष्ठी में नहीं पहुंचे प्रभारी कुलपति
यूजीसी द्वारा प्रायोजित हिंदी साहित्य व नारी विषय पर आयोजित संगोष्ठी के मुख्य संरक्षक सिदो-कान्हू मुमरू विश्वविद्यालय दुमका के प्रभारी कुलपति डॉ राम यतन प्रसाद दो दिवसीय कार्यक्रम के अंतिम दिन भी नहीं पहुंचे. राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित करने के लिए यूजीसी द्वारा 80 हजार रुपये अनुदान भी मिला था.