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झारखंड की फिल्म पॉलिसी अच्छी: सौरभ शुक्ला
देवघर : सत्या फिल्म का गाना…गोली मार भेजे में, भेजा शोर करता है…में कल्लू मामा हो या जॉली एलएलबी के जज साहब. अपने अभिनय से सबका दिल जीतने वाले सौरभ शुक्ला इन दिनों बॉलीवुड फिल्म ‘आधार’ की शूटिंग के सिलसिले में बाबा नगरी आये हुए हैं. फिल्म में सौरभ शुक्ला अहम भूमिका में नजर आयेंगे. […]
देवघर : सत्या फिल्म का गाना…गोली मार भेजे में, भेजा शोर करता है…में कल्लू मामा हो या जॉली एलएलबी के जज साहब. अपने अभिनय से सबका दिल जीतने वाले सौरभ शुक्ला इन दिनों बॉलीवुड फिल्म ‘आधार’ की शूटिंग के सिलसिले में बाबा नगरी आये हुए हैं. फिल्म में सौरभ शुक्ला अहम भूमिका में नजर आयेंगे.
उन्होंने पीके, रेड, नायक, लगे रहो मुन्नाभाई, जख्म अर्जुन पंडित, हे राम समेत बॉलीवुड की कई फिल्मों में दमदार किरदार अदा किया है. शनिवार को देवघर के राम रतन बक्शी रोड स्थित एक चाय की दुकान के बाहर एक बेंच पर चाय की चुस्कियों के साथ साैरभ शुक्ला ने प्रभात खबर संवाददाता से बातीचत की. उन्होंने कहा कि देवघर के लोग बहुत ही भोले हैं, न काेई तामझाम व न कोई चकाचौंध. देवघर का सादापान बहुत ही अच्छा लगा, यहां के लोगों का मिजाज भी बिल्कुल ही अलग है.
बातचीत में ही अपनापन महसूस होता है. यहां के चाय की सौंधी खुशबू झारखंडी संस्कृति का अनुभव कराती है. प्रस्तुत है सौरभ शुक्ला से बातचीत का अंश…
देवघर में फिल्म आधार की चल रही शूटिंग, कल्लू मामा को भाया देवघरिया मिजाज
सवाल : पहले महानगरों में स्टूडियो में फिल्मों की शूटिंग होती थी, लेकिन अब छोटे-छोटे शहरों में शूटिंग हो रही है. कैसा लग रहा है.
जवाब : राज्य सरकारों की फिल्म पॉलिसी बेहतर होने की वजह से फिल्म इंडस्ट्रीज का झुकाव महानगर से हटकर अन्य राज्यों में हो रही है. यूपी के बाद झारखंड की फिल्म पॉलिसी अच्छी है. यहां फिल्म के निर्माण अनुदान व सुविधा है. इससे रोजगार व पर्यटन के अवसर बढ़ते हैं. साथ ही स्थानीय कलाकारों को भी मौका मिलता है.
सवाल : सिनेमा हॉल व मल्टीप्लेक्स के बाद अब मोबाइल पर वेब सीरीज का दौर चालू हो गया. इसमें कई कलाकार भी उभर रहे हैं. इसे आप किस रूप में लेते हैं.
जवाब : पहले नाटक होता था, जिसे लोग खूब देखते थे. उसके बाद सिनेमा आया, टेलीवीजन आयी. उसी प्रकार वेब सीरीज में फिल्में आने लगी. यह एक उपलब्धि है. कोई भी प्लेटफॉर्म जब अच्छाई लेकर आता है तो बेहतर होता जाता है.
सवाल : मणिकर्निका, द एक्सीडेंटल प्राइमिनिस्टर जैसी कई फिल्मों का विरोध होने के बारे में क्या कहेंगे.
जवाब : विरोध करने का हक सबको है, यह लोकतंत्र है. किंतु यह मत भूलिये कि फिल्म बनाने वाले भी विरोध कर सकते हैं. फिल्म मेकर भी विरोध में बोल सकते हैं. इसलिए विरोध करने पर किसी को रोक नहीं है, लेकिन पब्लिसिटी के लिए विरोध नहीं होना चाहिए.
सवाल : मल्टीस्टारर फिल्मों के बाद अब कम बजट की फिल्में पसंद की जा रही है. निर्देशकों का भी इस ओर रुझान बढ़ा है. आपका क्या विचार है.
जवाब: हमेशा कहानी व फिल्म जो संदेश देना चहती है वह विषय महत्वपूर्ण रहता है. स्टार पावर से एक शुरुआत होती है, लेकिन समाप्ति पर कहानी अच्छी होनी चाहिए. यह महत्वपूर्ण है. अच्छी कहानी से कोई फिल्म सफल होता है. चाहे बड़ा या छोटा कलाकार क्यों न हो.
सवाल : अभी नये हास्य कलाकार कम आ रहे हैं, ऐसा क्यों
जवाब : ऐसा नहीं है, पहले भी हास्य कलाकार की इंट्री थी. अभी भी हो रहा है. अब फिल्मों में सीरियस व हास्य दोनों रंग देखने को मिल रहे हैं. नये कलाकारों के आने से एक नयी दिशा मिल रही है.
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