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चिंताजनक : आग से निबटने की नहीं है मुकम्मल व्यवस्था

देवघर : सदर अस्पताल सहित जिले के कई महत्वपूर्ण भवनों में आग से बचाव की पर्याप्त सुविधा नहीं है. सदर अस्पताल में प्रत्येक दिन छोटे-बड़े सैकड़ों मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं, मगर फायर फाइटिंग की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण सभी असुरक्षित हैं. मंगलवार को अस्पताल में शार्ट-सर्किट की घटना हुई थी. कुछ […]

देवघर : सदर अस्पताल सहित जिले के कई महत्वपूर्ण भवनों में आग से बचाव की पर्याप्त सुविधा नहीं है. सदर अस्पताल में प्रत्येक दिन छोटे-बड़े सैकड़ों मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं, मगर फायर फाइटिंग की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण सभी असुरक्षित हैं. मंगलवार को अस्पताल में शार्ट-सर्किट की घटना हुई थी. कुछ ऐसी ही स्थिति शहर के कई अन्य अस्पतालों, होटलों, स्कूलों व अन्य महत्वपूर्ण भवनों का है. इन सबको लेकर अग्निशमन विभाग भी चिंतित है.

हाल ही में विभाग के डीजी ने जिले के उपायुक्त को पत्र लिख कर सदर अस्पताल में पूरी व्यवस्था कराने को कहा है. याद रहे देश के कई अस्पतालों में हाल में आग लगने की घटना हुई है. इसी तरह भवनों को लेकर भी विभाग गंभीर है. फायर फाइटिंग विभाग के अधिकारी के अनुसार महत्वपूर्ण भवनों को विभाग से एनओसी लेना जरूरी है, पर जिले में सिर्फ एक के पास ही एनओसी है. अन्य किसी ने इसकी जरूरत ही महसूस नहीं की है.
आधे अग्निशमन यंत्र पड़े हैं बेकार
सदर अस्पताल में आग से बचाव के लिए अस्पताल प्रबंधन की अोर से जो अग्निशमन यंत्र लगाये गये हैं. उनमें से आधे से अधिक इस्टींग्यूशर एक्सपायर हो चुके हैं. ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि इस्टींग्यूशर पर चिपके स्टीकर बयां कर रहे हैं. अधिकांश में एक्सपायरी की तिथि 17 जनवरी 2017 की अंकित है. हालांकि प्रबंधन की अोर से सावन महीने में रीफिलिंग के दावे किये जा रहे हैं. रीफिलिंग एजेंसी को फटकार लगाते हुए स्टीकर बदलने की बात कही गयी. प्रबंधन के दावों में कितना दम है यह तो विभाग ही जाने. लेकिन शाॅर्ट सर्किट की एक घटना ने किसी बड़ी अनहोनी की चेतावनी दे दी है. अब अगर प्रबंधन सतर्क नहीं हुआ और मामले की लीपापोती का रवैया नहीं छोड़ा गया तो भविष्य में किसी बड़ी घटना पर कितनों की जान खतरे में पड़ सकती है.
घटनाओं से भी नहीं ले रहे सबक
कुछ महीने पूर्व कोलकाता महानगर के एक बड़े से हॉस्पीटल में आग लगने की घटना के बाद सौ से अधिक मरीज आग में झुलसने व दम घुटने के कारण मौत के शिकार हो गये थे. इस घटना को देखते हुए केंद्र से लेकर राज्य सरकारें भी सचेत हो गयी थी. सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की अोर से अस्पताल व निजी क्लिनिकों में फायर फाइटिंग के समुचित उपाय करने का निर्देश दिया था. इसके बाद भी अस्पताल प्रबंधन उदासीन है.
महत्वपूर्ण संस्थानों का भी हाल बेहाल
सदर अस्पताल की तरह शहर के सैकड़ों अन्य महत्वपूर्ण ठिकानों का भी कमोवेश एक सा हाल है. जहां फायर फाइटिंग के निर्देशों की अनदेखी हो रही है. अग्निशमन कार्यालय के सूत्रों की मानें तो एक निजी क्लिनिक को छोड़ शहर के किसी भी संस्थान (होटल, धर्मशाला, बिल्डिंग, शॉपिंग मॉल या स्कूल)ने फायर फाइटिंग से संबंधित एनअोसी नहीं ली है. जिससे साफ पता चलता है आपदा से निबटने में लापरवाही बरती जा रही है.
अस्पताल में दी गयी थी सुरक्षा की ट्रेनिंग
अग्निशमन विभाग की अोर से अस्पताल कर्मियों व सुरक्षा के लिए तैनात कर्मियों को एक दिवसीय मॉक ड्रील के जरिये फायर फाइटिंग का प्रशिक्षण दिया था. इसके बाद सिविल सर्जन से मिल कर अस्पताल में अग्निशामक यंत्रों की व्यवस्था करने की सलाह दी. मगर इस मसले पर भी प्रबंधन गंभीर नहीं रहा. अब प्रबंधन इसकी जवाबदेही वायरिंग व अग्निशमन यंत्र लगाने वाले संवेदक पर डाल रहा है.
कहते हैं डीएस
अग्निशमन यंत्रों को सावन के पहले ही रीफिल किया गया है. संवेदक ने रिफिलिंग की एक्सपायरी डेट चेंज नहीं की है. भुगतान रोककर यंत्रों के ऊपर तिथि अंकित करने का निर्देश दिया गया है. अस्पताल में वायरिंग बहुत ही घटिया की गयी है. इसके लिए सीएस को पत्र लिखकर आवश्यक कार्रवाई की जानकारी दी गयी है. डीसी व बिजली विभाग, धनबाद के इई को पत्र की प्रतिलिपि दी गयी है.
– डॉ विजय कुमार, डीएस, सदर अस्पताल

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