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इशरत ने एक हजार महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर
दीनबंधु चतरा : हंटरगंज प्रखंड के इशरत जहां 18 वर्षों से युवतियों और महिलाओं को नि:शुल्क सिलाई-कढ़ाई सिखा रही हैं. अब तक 1000 से अधिक महिलाओं को आत्मनिर्भर बना चुकी हैं. इसी पेशे के जरिये अपनी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ की है. वह हर रोज 50 से अधिक महिलाओं को अपने घर पर ट्रेनिंग देती […]
दीनबंधु
चतरा : हंटरगंज प्रखंड के इशरत जहां 18 वर्षों से युवतियों और महिलाओं को नि:शुल्क सिलाई-कढ़ाई सिखा रही हैं. अब तक 1000 से अधिक महिलाओं को आत्मनिर्भर बना चुकी हैं. इसी पेशे के जरिये अपनी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ की है. वह हर रोज 50 से अधिक महिलाओं को अपने घर पर ट्रेनिंग देती हैं. दिन में तीन बैच में प्रशिक्षण देती हैं. नावाडीह के अलावा आसपास के कई गांवों के लड़कियां यहां आकर सिलाई और कढ़ाई का काम सीखती हैं.
भोजपुर, बिहिया, खुटीकेवाल, डटमी, धरधरा, बेलगड्डा, डाटम, डाहा, कांशी केवाल, नागर समेत कई गांव की महिलाएं हर रोज यहां आती हैं. सिलाई सिखने के बाद कई महिलाएं दूसरी जगहों पर सिलाई सेंटर चला रही हैं, जो उनकी आय का जरिया है.
वर्ष 1996 में नावाडीह के रहुफ मंसूरी से निकाह के बाद इशरत जहां ने टाइम पास करने के लिए सिलाई का काम सीखा. बाद में इसे कमाई का जरिया बना लिया. कुछ दिनों बाद लगा कि वह आसपास की महिलाओं को इसकी ट्रेनिंग दें, वे (पड़ोसी) भी आत्मनिर्भर बन जायेंगी. इसके बाद ही उन्होंने जरूरतमंद महिलाओं को ट्रेनिंग देनी शुरू की.
नि:शुल्क. वह पटियाला सूट के अलावा सलवार सूट, ब्लाउज, पेटीकोट आदि की सिलाई और कटिंग की ट्रेनिंग देती हैं. सिलाई कर अपना, पति व तीन पुत्री व एक पुत्र का भरण-पोषण कर रही है. अपनी कमाई से बड़ी बेटी का निकाह भी किया.
आगे भी सिखाती रहूंगी : इशरत
इशरत बताती हैं कि ससुराल में खाना बनाने के बाद काफी समय बच जाता था. मन में ख्याल आया कि सिलाई करना जानती हूं, तो इसे शुरू करना चाहिए. पति व सास, ससुर से अनुमति लेकर सिलाई करने लगी. पति रजाई बना कर घरवालों का पेट पालते थे. सिलाई-कढ़ाई के काम से घर की माली हालत सुधरी. अभी घरवाले काफी खुश हैं. गांव की कई लड़कियां सलवार-सूट सिलाने आती थीं.
उन्हें भी सिलाई सीखने के लिए प्रेरित किया. शुरुआती दौर में चार-पांच लड़की सीखने आयी. धीरे-धीरे यह संख्या बढ़ कर 50 से 60 हो गयी. फिर दूसरे गांवों से भी युवतियां और महिलाएं आने लगीं. उन्होंने बताया कि महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए ही सिलाई सिखा रही हैं, ताकि वे अपने पैरों पर खड़ी हों और किसी भी मुसीबत का सामना कर सकें. इशरत कहती हैं कि आनेवाले दिनों में भी वह महिलाओं और युवतियों को नि:शुल्क सिलाई सिखाती रहेंगी.
अपना सेंटर चलाती हैं महिलाएं
सिलाई सीखनेवाली महिलाओं में एक डटमी गांव की गुलस्ता परवीन कहती हैं कि वह पूरी तरह बेरोजगार थीं. ससुरालवालों पर निर्भर थी. इशरत जहां से सिलाई सीख कर अब खुद कमाती हैं. बेहद खुश हैं. अपने गांव में सिलाई सेंटर चला रही हैं. कई लोगों को सिलाई-कढ़ाई भी सिखा रही हैं. किसी पर निर्भर नहीं हैं. घरवालों की भी मदद करती हैं.
बेलगड्डा की रेशमी कुमारी भी सिलाई सेंटर चलाती हैं. सिलाई सीख कर मनिता कुमारी, निशा कुमारी, रिंकी कुमारी, रेखा देवी बहुत काफी खुश हैं. उन्होंने बताया कि अब वह अपने परिवार का भरण-पोषण अपने दम पर कर रही हैं. अपनी आमदनी से अपने बच्चों को भी अच्छी शिक्षा दे रही हैं.
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