बोकारो: क्लास सातवीं की बात है. मुङो डांस का काफी शौक था, इसलिए पापा ने स्पेशल डांस टीचर रक्षा दीदी को लगा रखा था. डांस क्लास मेरे घर पर ही लगती थी. मेरे साथ करीब दस लड़कियां भी डांस सीख रही थी.
एक बार दीदी हमें माधुरी की फिल्म का गाना दीदी तेरा देवर दीवाना, हाये राम कुड़ियों को डाले दाना सिखा रहीं थी. इस खास डांस को सीखने के लिए मैं दिन रात मेहनत करती थी. मगर मेरी हर कोशिश पर दीदी मुङो ही फटकार लगाती थी. यह सिलसिला लगभग हफ्ता भर चलता रहा. हर दिन डांट खाना भला किसे अच्छा लगता है. अपने दोस्तों से अच्छा डांस करने के बावजूद व अपने घर पर डांट खाना मुङो और भी खराब लगता था. दीदी की हर डांट पर मुङो शर्म महसूस होती थी. इसलिए मुझसे बरदाश्त नहीं हुआ. एक दिन को मैंने खुन्नस में आकर दीदी से ऊंचे स्वर में कहा : मुङो डांटने के अलावा आपके पास काम है भी या नहीं.
मेरे डांस में आपको कमी नजर आती है और किसी का नहीं. मेरे सवाल को डांस टीचर ने उस वक्त टाल दिया. उस वक्त मेरा खून और भी खौल उठा. पर मैं चुप रही. एक शाम अचानक दीदी ने मुङो अपने पास बुलाकर कहा : बेटा तुम अपनी ग्रुप में सबसे अच्छी डांसर हो, फिर भी मैं तुम्हें सबसे ज्यादा डांटती हूं . मैं तुम्हें परफेक्ट डांसर बनाना चाहती हूं. दीदी की यह बात मेरे दिमाग में दही की तरह जम गयी. मुङो तब एहसास हुआ कि टीचर कभी भी किसी को पनीश करने के लिए नहीं, बल्कि उसके सुधार के लिए होती है. दीदी का यह नुस्खा आज मेरे खूब काम आता है.