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कभी मां का त्याग, तो कभी पिता का समझौता

बोकारो: क्या ऐसा होता है ? कोई लगातार 15 सालों तक एक जैसा रह सकता है ? न कभी बीमार पड़े, न कभी कोई जरूरी काम हो, न कभी कोई पारिवारिक रुकावट आये और न ही कोई सामाजिक अवरोध. सेक्टर-12 स्थित दी पेंटीकॉस्टल असेंबली स्कूल पांच होनहारों ने 15 साल में एक दिन भी स्कूल […]

बोकारो: क्या ऐसा होता है ? कोई लगातार 15 सालों तक एक जैसा रह सकता है ? न कभी बीमार पड़े, न कभी कोई जरूरी काम हो, न कभी कोई पारिवारिक रुकावट आये और न ही कोई सामाजिक अवरोध. सेक्टर-12 स्थित दी पेंटीकॉस्टल असेंबली स्कूल पांच होनहारों ने 15 साल में एक दिन भी स्कूल बंक नहीं किया. कभी मां ने त्याग किया तो कभी पिता ने समझौता.

हर रोज तय समय पर स्कूल. न बीमारी का बहाना और न ही दूसरा कोई कारण. कमाल करने वालों में सिम्मी सिन्हा, राहुल कुमार, मेरी प्रियंका केरकेट्टा, शशि कुमार व विभा शामिल हैं. इनको स्कूल ने अपने स्तर से सम्मानित किया है. क्लास नर्सरी से लेकर 12वीं तक एक दिन भी स्कूल नहीं छोड़ने वाले विद्यार्थी के पीछे उनके माता-पिता का बहुत बड़ा योगदान है.

परिजनों से शादी-विवाह की तिथि चेंज करवा देते थे : कन्हैया शर्मा
शशि कुमार के पिता कन्हैया शर्मा बीएसएल में ऑपरेटिव है. मां कांति देवी गृहिणी है. पिता श्री शर्मा ने बताया : शादी-विवाह के मौके पर हम परिजनों से कह कर स्कूल की छुट्टी के समय ही डेट तय करने को कहते थे. अगर ऐसा नहीं होता था, तो कभी मैं शादी में जाता था, तो कभी मां चली जाती थी. मतलब दोनों में से कोई एक जरूर रहता था, ताकि बच्चों का स्कूल न छूट पाये. जहां तक स्वास्थ्य की बात है तो लगना पड़ता है. बच्चों के खान-पान से लेकर रहन-सहन तक पर ध्यान देना पड़ता है. हां, इसमें माता-पिता दोनों को लगना पड़ता है. त्याग करना पड़ता है.

तबीयत खराब होने पर दो दिन में ठीक कर देती थी : चंचला सिन्हा
सिम्मी सिन्हा की मां चंचला सिन्हा गृहिणी है. पिता एमके सिन्हा बिजनेसमैन है. मां श्रीमती सिन्हा ने बताया : जब कभी शुक्रवार या शनिवार को सिम्मी की तबीयत खराब होती थी, तब उसे दो-तीन दिन में ही ठीक कर देती थी. डॉक्टर बोलते थे : आराम करने की जरूरत है. बेटी भी कभी-कभी कहती थी, आज अच्छा नहीं लग रहा है. स्कूल नहीं जाऊंगी. लेकिन, मैं कहती थी : स्कूल जाओ ठीक हो जायेगा. वही होता भी था. जहां तक कहीं आने-जाने की बात है, तो स्कूल की छुट्टी में हीं आती-जाती थी. शादी-विवाह में कभी मैं जाती थी तो कभी सिम्मी के पापा.

राहुल, मेरी प्रियंका केरकेट्टा व विभा की भी यही है कहानी
शशि व सिम्मी की तरह राहुल, प्रियंका व विभा की भी यही कहानी है. राहुल को 2007 में क्लास नर्सरी से लेकर 12वीं तक में शत-प्रतिशत उपस्थिति के लिए अवार्ड मिला. तब वह सेक्टर-12बी/1244 में रहता था. मेरी प्रियंका केरकेट्टा 2009 में और विभा 2006 में शत-प्रतिशत उपस्थिति के लिए सम्मानित हुई. सभी विद्यार्थी सेक्टर-12 स्थित दी पेंटीकॉस्टल असेंबली स्कूल के है. स्कूल के निदेशक डॉ डीएन प्रसाद व प्राचार्या रीता प्रसाद ने बताया : इस तरह के बच्चों को स्कूल प्रबंधन विशेष तौर सम्मानित करता है, ताकि अन्य बच्चे भी प्रेरित हो.

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