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जिद से, जुनून से लिखी कामयाबी की इबारत

बोकारो: एक ऐसा स्कॉलर जिसने जो चाहा, वह किया. हमेशा अव्वल. तकलीफ, परेशानी, दिक्कत इनके आस-पास कभी नहीं भटके. घर में शायद ही कोई ऐसा सदस्य जो प्रशासनिक अधिकारी न हो. पिता खुद न्यायिक सेवा में अधिकारी. संपन्नता की निश्चिंतता के बावजूद आराम पसंद स्वभाव नहीं रहा और न ही पैरवी से कुछ पाने की […]

बोकारो: एक ऐसा स्कॉलर जिसने जो चाहा, वह किया. हमेशा अव्वल. तकलीफ, परेशानी, दिक्कत इनके आस-पास कभी नहीं भटके. घर में शायद ही कोई ऐसा सदस्य जो प्रशासनिक अधिकारी न हो. पिता खुद न्यायिक सेवा में अधिकारी. संपन्नता की निश्चिंतता के बावजूद आराम पसंद स्वभाव नहीं रहा और न ही पैरवी से कुछ पाने की चाहत. जो करना है अपने दम पर करना है.

छोटी सी उम्र में एक फैसला, जिसमें रिस्क तो था, पर किसी तरह का नुकसान नहीं. इंजीनियरिंग की बेहतर सेवा को छोड़ कर देश की सेवा करने का जुनून. ऐसा मुश्किल से सुनने को मिलता है कि ‘‘मैं किसी मेट्रो शहर के लिए नहीं बना. ग्रामीण इलाकों की समस्याएं सुलझाना मेरा शौक है.’’

आइपीएस छोड़ आइएएस बने : सुखी-संपन्न राहुल कुमार सिन्हा का पैतृक घर तो नालंदा बिहारशरीफ है, मगर अपनी स्कूलिंग के दौरान इन्होंने बिहार और झारखंड में नौ शहर बदले. ब्लू बर्ड (गया), प्रभात तारा (मुजफ्फरपुर), संत जेवियर (रांची, साहेबगंज, हजारीबाग), संत पॉल (बेगुसराय), डीपीएस (बोकारो) और आखिर में इंजीनियरिंग पुणो से करनेवाले श्री सिन्हा ने सारा कुछ छोड़ दिया और बस प्रशासनिक सेवा में आने की ठानी. दो-दो बार सिविल परीक्षा में कामयाब हुए. आइपीएस के पद से इस्तीफा दिया और फिर आइएएस बने. ऐसे उदाहरण बिरले ही मिलते हैं.

इंजीनियर की नौकरी छोड़ी : मेधावी श्री सिन्हा ने 1999 में संत जेवियर से मैट्रिक किया. बोकारो इंजीनियर भट्ठी में वो भी आ गये. बोकारो के सबसे जाने-माने प्लस टू स्कूल डीपीएस में दाखिला मिला. दो साल सेक्टर-4 सी आवास संख्या बी/1010 में रह कर पढ़ाई पूरी की. फिर 2002 में इंजीनियरिंग करने के लिए पुणो चले गये. पढ़ाई खत्म होते ही 2006 में ‘कैन्वे-कैप्स जेमिनी’ नाम की कंपनी में नौकरी मिली. दो साल तक नौकरी की. हैंडसम सैलरी के साथ बड़े शहर की सारी सुविधा. पर मन नहीं माना. रिजाइन कर दिया. दो साल के लिए तपस्या करने की ठानी. साउथ दिल्ली के कमरे में अपने-आप को बंद कर लिया. कहते हैं : ‘‘सिविल सर्विस आसान बात नहीं है. आप इसके बारे में सोचते हैं, तो आप दूसरी चीजों के बारे में सोचना बंद कर दीजिए. अकेले हो जाइए अपनी दुनिया में.’’

मिली सफलता : एक साल की कड़ी मेहनत के बाद 2009 में पीटी में सफलता मिली, पर पूरी कामयाबी नहीं. 2010 में फिर से सफलता मिली. कामयाबी भी. पूरे देश में 142 वां रैंक मिला. सामान्य वर्ग से होने के कारण आइपीएस मिला. ट्रेनिंग के लिए चले गये. इस दौरान ही तीसरी बार फिर से सफलता मिली. इस बार देश भर में 60 वां रैंक. आइएएस मिल गया. आइपीएस से रिजाइन कर दिया. इसी बीच इन्हें बीपीएससी, जेपीएससी, यूपीपीएससी, कई बैंक पीओ की परीक्षाओं में भी कामयाबी मिली, पर कहीं ज्वाइन नहीं किया. अपने एकमात्र विजन पर वो कायम रहे और किस्मत वाले भी, क्योंकि दोनों बार यूपीपीएससी कामयाबी के बाद इन्हें झारखंड कैडर ही मिला. पर इनका कहना है कि इन्हें तमिलनाडु भी भेजा जाता तो खुशी से चले जाते.

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