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खेतको के गोताखोर : जान की बाजी लगाकर दूसरों की जान बचाने वाले संकट में
रंजीत कुमार बोकारो : जज्बा से जुनून तो बढ़ सकता है, पर बढ़ती जिम्मेवारियों को एक हद के बाद ठेला नहीं जा सकता. आज इस कठोर सच से रूबरू हो रहे हैं जान की बाजी लगा कर दूसरों की जान बचानेवाले पेटरवार के खेतको के गोताखोर. परिवार के भरण-पोषण के लिए खेतको के 13 गोताखोर […]
रंजीत कुमार
बोकारो : जज्बा से जुनून तो बढ़ सकता है, पर बढ़ती जिम्मेवारियों को एक हद के बाद ठेला नहीं जा सकता. आज इस कठोर सच से रूबरू हो रहे हैं जान की बाजी लगा कर दूसरों की जान बचानेवाले पेटरवार के खेतको के गोताखोर.
परिवार के भरण-पोषण के लिए खेतको के 13 गोताखोर एक अरसे से जीविका के रूप में डूबने वालों को बचाने के लिए जिंदगी का जुआ खेलते रहे हैं. उम्मीद थी कि उनका यही हुनर एक दिन उनके लिए नये द्वार खोलेगा. अधिकारियों के दिलासा से इस उम्मीद को पंख लगते रहे और जिंदगी का जोखिम बढ़ता गया. लेकिन उनकी झोली में दिलासे के सिवा कुछ नहीं.
डीसी ने किया था सम्मानित : गोताखोरों के अदम्य साहस को देख कर तत्कालीन डीसी उमाशंकर सिंह ने 15 अगस्त 2014 को सभी गोताखोरों को मेडल व प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया था. राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित कराने का भरोसा दिया गया था. प्रशासन की ओर से भी सहयोग का भरोसा दिया गया था. श्री सिंह के जाने के साथ आश्वासन की वह पोटली भी चली गयी.
अपनी जिंदगी को ले चिंतित इन गोताखोरों ने बेरमो विधायक योगेश्वर महतो बाटूल सहित प्रशासनिक पदाधिकारियों से होते हुए मौजूदा सीएम से भी फरियाद की. सीएम को पत्र दिया. लगातार समाहरणालय का चक्कर लगा रहे हैं. पर सुधि किसी ने नहीं ली.
प्रशासन के पास नहीं हैं अपने गोताखोर : बोकारो जिला में कहीं भी डूबने का कोई हादसा हो तो गहरे पानी में उतरने को हाजिर रहते हैं. बरसात के दिनों में कोई नदी में फंस गया हो, सभी जगह जिला प्रशासन को इसी टीम की याद आती है.
उस समय उन्हें हर संभव सहायता देने का वचन दिया जाता है. लेकिन काम पूरा हो जाने के बाद वह भरोसा कपूर की तरह उड़ जाता है. गौरतलब है कि जिला प्रशासन के पास गोताखोरों अपनी की कोई टीम नहीं है.
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