उन्होंने कहा कि जेल के अधिकांश बंदी ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं, इसलिए कौशल विकास के तहत अमृत कृषि तकनीक सीख कर जब वे यथासमय अपने घर वापस लौटेंगे, तो उनकी सामाजिक-आर्थिक उपयोगिता अधिक होगी. श्रीमती गुप्ता ने कहा कि अमृत कृषि पद्धति से फसल उपजाने से किसी प्रकार के रासायनिक उर्वरक, रासायनिक कीटनाशक की जरूरत नहीं पड़ती, जिससे उत्पादन लागत में कमी आती है. साथ ही उत्पादकता में वृद्धि होती है. यह तकनीक बहुत सस्ती और आसान है.
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होटवार जेल के कैदी बीएयू की मदद से अब अमृत कृषि का लेंगे प्रशिक्षण
रांची: बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार, होटवार, रांची के कैदी अब बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में अमृत कृषि (जैविक कृषि का एक प्रारूप) का प्रशिक्षण लेंगे. अमृत कृषि के माध्यम से उत्पादित सब्जी रसायनों से पूर्णत: मुक्त और गोबर-गोमूत्र आधारित होगी. कारागार की आवश्यकता से अधिक उत्पादन होने पर जैविक शाक-सब्जी की बिक्री […]
रांची: बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार, होटवार, रांची के कैदी अब बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में अमृत कृषि (जैविक कृषि का एक प्रारूप) का प्रशिक्षण लेंगे. अमृत कृषि के माध्यम से उत्पादित सब्जी रसायनों से पूर्णत: मुक्त और गोबर-गोमूत्र आधारित होगी. कारागार की आवश्यकता से अधिक उत्पादन होने पर जैविक शाक-सब्जी की बिक्री जेल परिसर के बाहर आमलोगों के लिए भी की जायेगी. यह घोषणा शुक्रवार को झारखंड की कारा महानिरीक्षक सुमन गुप्ता ने कारागार परिसर में अमृत कृषि कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए की.
बीएयू ने टीम बनायी : विवि के कुलपति डॉ परविंदर कौशल ने होटवार कारागार के कैदियों को अमृत कृषि तकनीक का प्रशिक्षण देने के लिए विशेषज्ञों की एक तीन सदस्यीय टीम बना दी है. जिसमें सिद्धार्थ जायसवाल, डॉ सीएस सिंह तथा डॉ एमएस यादव शामिल हैं.
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