इतनी दूरी तय करने में कम से कम 15 मिनट लगना चाहिए था. कोर्ट ने एंबुलेंस की लॉग बुक, एंबुलेंस में कर्मियों की संख्या, चालकों के नाम, गाइडलाइन आदि की जानकारी कोर्ट में प्रस्तुत करने का निर्देश दिया. एक्टिंग चीफ जस्टिस प्रदीप कुमार मोहंती व जस्टिस आनंद सेन की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए नेशनल हाइवे अॉथोरिटी अॉफ इंडिया (एनएचएआइ) के अध्यक्ष (चेयरपर्सन) को कोर्ट में उपस्थित होकर जवाब देने का निर्देश दिया. खंडपीठ ने पूछा कि राज्य में कितना किमी एनएच है. एनएच पर कितने एंबुलेंस चलाये जा रहे हैं. एनएच पर क्या-क्या सुविधा उपलब्ध है. नियमों के तहत क्या-क्या सुविधाएं देनी हैं.
खंडपीठ ने एनएचएआइ से जानना चाहा कि रांची-जमशेदपुर एनएच पर कितने एंबुलेंस चलते हैं. इस पर एनएचएआइ की अोर से बताया गया कि रांची-जमशेदपुर मार्ग निर्माणाधीन है. इस कारण वहां एक भी एंबुलेंस नहीं है. इस पर खंडपीठ ने पूछा कि निर्माणाधीन अवस्था में उक्त सड़क पर यदि दुर्घटना होती है, तो घायलों के प्राथमिक उपचार की क्या व्यवस्था है.
ठोस जवाब नहीं मिलने पर खंडपीठ ने एनएचएआइ के अध्यक्ष को उपस्थित होने का निर्देश दिया. साथ ही राज्य सरकार से पूछा कि पिछले दो वर्षों में रांची-जमशेदपुर मार्ग पर कितनी दुर्घटनाएं हुई हैं आैर उसमें कितने लोगों की माैत हो चुकी है. शपथ पत्र के माध्यम से जवाब दाखिल करें. सुनवाई के दाैरान कोर्ट में एनएचएआइ की अोर से क्षेत्रीय अधिकारी उपस्थित थे. इससे पूर्व एनएचएआइ की अोर से बताया गया कि रांची-हजारीबाग मार्ग पर दो एंबुलेंस चलते हैं. घटनास्थल पर एंबुलेंस के पहुंचने में 35 मिनट का समय लग गया था. एंबुलेंस घटनास्थल से 26 किमी की दूरी पर खड़ा था. उल्लेखनीय है कि हजारीबाग में 21 जनवरी को एनएच पर दुर्घटना में घायल अधिवक्ता धर्मेंद्र कुमार को समय पर चिकित्सा सुविधा नहीं मिलने को गंभीरता से लेते हुए हाइकोर्ट ने उसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था.