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रांची : सात पहाड़िया बेटियों को सम्मान

* विकास भारती में सम्मान समारोह, आदिम जनजातियों की स्थिति पर मंथन रांची : रांची विवि के कुलपति डॉ एलएन भगत ने कहा कि आज शिक्षा बेसिक इंस्ट्रूमेंट के रूप में हो गयी है. शिक्षा सभी का अधिकार है. शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जो बेहतर इंसान बना सके. एक व्यक्ति को कौशल बनाये, ताकि रोजगार […]

* विकास भारती में सम्मान समारोह, आदिम जनजातियों की स्थिति पर मंथन

रांची : रांची विवि के कुलपति डॉ एलएन भगत ने कहा कि आज शिक्षा बेसिक इंस्ट्रूमेंट के रूप में हो गयी है. शिक्षा सभी का अधिकार है. शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जो बेहतर इंसान बना सके. एक व्यक्ति को कौशल बनाये, ताकि रोजगार का अवसर मिल सके. आज भले ही हम आधारभूत संरचना में आगे हैं, लेकिन गुणवत्तापरख शिक्षा में थोड़े पीछे हैं.

डॉ भगत शुक्रवार को विकास भारती बिशुनपुर द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे. मानव शास्त्र विभाग के शिक्षक डॉ करमा उरांव ने विकास भारती के कार्यक्रम की सराहना की. उन्होंने कहा कि आदिम जनजाति समाज के अभिन्न अंग हैं. ये लोग अपनी संस्कृति व रीति-रिवाज में जीना चाहते हैं. सरकार द्वारा कई योजनाएं चलायी जा रही हैं. लेकिन, आजादी के बाद भी इनकी आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति नहीं सुधरी.

विनय कुमार ने आदिवासी जनजाति समाज के लिए चलायी जा रही योजनाओं के बारे में विस्तार से बताया. इससे पूर्व कार्यक्रम की शुरुआत सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ हुई. ज्ञान निकेतन की बच्चियों द्वारा आकर्षक नृत्य पेश किये गये. नाटक का भी मंचन किया. मौके पर रंजना चौधरी ने कार्यक्रम की जानकारी दी. मंच का संचालन सुजीत गोस्वामी ने किया.

विकास भारती के सचिव अशोक भगत ने कहा कि आदिम जनजाति शोध का विषय नहीं है. शोध के तरीके को बदलना चाहिए. आज आदिम जनजाति के लोग तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. इन्हें जब भी अवसर मिला, अपने हुनर का परिचय दिया. शोधकर्ताओं को इनके विकास के बारे में लोगों को बताना चाहिए. आदिवासी कल्याण आयुक्त राजेश शर्मा ने कहा कि सरकार अकेले दम पर विकास नहीं कर सकती है. इसके लिए सभी को साथ मिल कर चलना होगा.

किसने क्या कहा

* शिक्षा सभी का अधिकार है. समान व गुणवत्तापरख शिक्षा की जरूरत: डॉ भगत

* आज भी नहीं सुधरी आदिम जनजातियों की स्थिति: डॉ करमा

* सभी के सहयोग से करेंगे विकास : राजेश शर्मा

* आदिम जनजातीय पर शोध के तरीके को बदलना चाहिए : अशोक भगत

* इन बेटियों के जज्बे को सलाम

राष्ट्रीय बालिका दिवस ( 24 जनवरी) पर विकास भारती ने झारखंड की सात आदिम जनजातीय बालिकाओं को सम्मानित किया. ये बेटियां अपनी मेहनत व जज्बे के बल पर विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी अलग पहचान बनायी है. ये गांव-पहाड़ों में रह कर भी अपनी शिक्षा पूरी कर रही हैं.

* परिजन नहीं पढ़ाना चाहते थे, मैंने जिद की

मैं असुर समुदाय से हूं. अभी एमए कर रही हूं. मैं अपने गांव से पढ़ाई कर रही थी. मैट्रिक में फेल हो गयी थी. मेरे माता-पिता मुझे आगे पढ़ाना नहीं चाहते थे. लेकिन, मैंने पढ़ाई के लिए जिद की और फिर मैट्रिक की की परीक्षा लिखी और उत्तीर्ण भी हुई. फिर इंटर और बीए की परीक्षा पास की. अभी एमएमें पढ़ाई कर रही हूं. मैं जब भी आगे पढ़ने की इच्छा जाहिर करती थी, तो मेरे पिता जी कहते थे पेड़ में पैसा फलता है क्या. तुम्हें कहां से पढ़ा पायेंगें. लेकिन, मैं पढ़ना चाहती हूं. मेरा भी सपना है कि पढ़-लिख कर कुछ बनूं.

सन्यो, गुमला

* फल व कपड़े बेच कर एमए की डिग्री ली

मैं बिरजिया समुदाय से हूं. मैंने एमए की डिग्री हासिल कर ली है. प्राथमिक शिक्षा गांव से पूरी की. आठवीं पास करने के बाद मेरी शादी की बात होने लगी, पर मैंने कहा : मैं पढ़ूंगी. अभी किसी कीमत में शादी नहीं करूंगी. घर से ही बैठ कर पढ़ाई की. इंटर किया. आगे की पढ़ाई के लिए कोई पैसा नहीं था. कैसे पढ़ाई होती. तब रेजा का काम किया. फल व कपड़े बेच कर अपनी पढ़ाई पूरी की. अभी बीएड कर रही हूं. पढ़ाने के लिए मेरे पास ऑफर आ रहे हैं, लेकिन मेरा मानना है कि मुझे आगे पढ़ाने के लिए अभी और पढ़ना होगा.

बसंती, लातेहार

* सरकार हमें नौकरी भी दें

मैं बिरसिया समुदाय से हूं. मारवाड़ी कॉलेज से एम कॉम कर रही हूं. रांची वीमेंस कॉलेज से इंटर किया. रांची विश्वविद्यालय से बी कॉम की पढ़ाई पूरी की. हम पहाड़ों में रहनेवाली बेटियां हैं. यहां के लोग बहुत गरीब हैं. हमारे समुदाय में पहले सब अशिक्षित थे. अब कुछ शिक्षित हो रहे हैं. सरकार हम आदिम जनजातियों के लिए सुविधा तो देती है, पर नौकरी नहीं मिलती. पहले सरकार की घोषणा में कहा गया कि स्नातक करने के बाद नौकरी दी जायेगी. सरकार को आदिम जनजातियों पर ध्यान देना चाहिए.

पूनम लातेहार

* नर्स बन कर सेवा करना चाहती हूं

मैं सौर पहाड़िया समुदाय से हूं. मैं अभी इंटर में पढ़ रही हूं. गांव-पहाड़ों में रह कर पूरी शिक्षा संभव नहीं है. हॉस्टल में रह कर पड़ रही हूं. कई बार घर से पैदल आ जा कर पढ़ाई की. पढ़ाई करने में बहुत अच्छा लग रहा है. आदिम जनजातियों में बेटियां पढ़ाई नहीं कर पाती हैं. बेटों को थोड़ा बहुत पढ़ाया जाता है. मुझे खुशी है कि मेरे माता-पिता मुझे पढ़ना चाहते हैं. पढ़ाई पूरी कर मैं नर्स बनना चाहती हूं. लोगों की सेवा करना चाहती हूं.

अंकिता, गोड्डा

* रेजा का काम कर पढ़ाई की हूं

मैं पहरिया समुदाय से हूं. हम पांच भाई-बहन हैं. मेरे माता-पिता मुझे नहीं पढ़ना चाहते थे, पर मैं जबरदस्ती पढ़ रही हूं. अभी इंटर कर रही हूं. आगे भी पढ़ूंगी. रेजा का काम कर अपनी पढ़ाई का खर्च निकालती हूं. आगे बहुत आगे तक पढ़ने की इच्छा है. पढ़ लिख कर समाज की सेवा करना चाहती हूं.

अनिमा, लातेहार

* आज भी पढ़ाई के लिए पैसा नहीं है

पहाड़ों की जिंदगी और सामान्य जिंदगी में बहुत अंतर है. वहां नहाने के लिए भी नीचे आना पढ़ता है. पढ़ाई तो दूर की बात है. फिर भी, मैं पढ़ने का जज्बा रखती हूं. हम चार-भाई बहन हैं. तीन बड़ी बहने हैं. मैं पढ़ रही हूं और भाई भी पढ़ रहा है. हमारे पास आज भी पढ़ाई के लिए पैसा नहीं हैं. पर, पिताजी 100 ,150 देते हैं, उसी से पढ़ाई पूरी हो रही है.

पिंकी , पाकुड़

* हम पहाड़ी लोग अत्यंत गरीब व उपेक्षित हैं

मैं कोरबा समुदाय से हूं. मैं पांचवी की छात्रा हूं. पहले पढ़ाई नहीं कर पा रही थी. अब विशुनपुर में आकर पढ़ाई कर रही हूं. पढ़-लिख कर नर्स बनना चाहती हूं. मुझे लोगों की सेवा करना बहुत अच्छा लगता है. हमारे गांव में अस्पताल की बात तो छोड़ दीजिए, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी नहीं है. इसलिए मैं नर्स बन कर अपने गांव की सेवा करना चाहती हूं. हम लोग बहुत गरीब हैं, पर अपनी पढ़ाई पूरी कर एक दिन अपने गांव का नाम रोशन करूंगी.

सुशीला , गुमला

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