-अजय-
बात आयी गयी हो जाती है. लेकिन 23 फरवरी को सिकिदरी हाइडल प्रोजेक्ट में प्रबंधक अरुण कुमार साह के साथ भाजपा के तीन-तीन क्षेत्रीय नेताओं की उपस्थिति में जो घटना घटी, वह भाजपा आलाकमान के उस दावे को कपोल कल्पित साबित करती है, जिसमें वह बार-बार यह दावा कर रहा है कि भाजपाई राजनीति में ऐसे ही लोगों की कद्र की जायेगी, जो व्यवहार कुशल हैं. पढ़े-लिखे हैं. शांत दिमाग से काम लेते हैं, जिनमें सबको साथ लेकर जाने की क्षमता है, जो हर समस्या को समझते हैं और सबसे अलग, जो सबके हित में सोचते हैं.
श्री साह के साथ एक ऐसी मांग को लेकर दुर्व्यवहार किया गया, जो उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर थी. भाजपा के गुलशन अजमानी और पूर्व सांसद यदुनाथ पांडेय आदि का दावा है कि अरुण कुमार साह शराब के नशे में धुत्त थे. श्रीसाह के शुभेच्छुओं का कहना है कि यह बकवास है. थोड़ी देर के लिए अगर यह मान भी लिया जाये कि श्री साह ने शराब पी थी, तो क्या इस गुनाह के लिए उन्हें इतनी बड़ी सजा दी जा सकती है! क्या कानून को अपने हाथ में लेने का अधिकार लोकतांत्रिक व्यवस्था में है, जो नशे में होते हैं.
उनकी बात ही अलग है, लेकिन जो अपने को जनप्रतिनिधि या सभ्य होने का दावा करते हैं, उससे क्या यह उम्मीद की जा सकती है कि वे एक अधिकारी को ड्यूटी के समय पीटेंगे, उसे निर्वस्त्र कर देंगे. सभ्य या स्वस्थ मानसिकता के किसी भी व्यक्ति से यह कल्पना भी नहीं की जा सकती कि वह किसी को निर्वस्त्र करने की बात भी सोच सकता है. लेकिन यह हुआ और एक सोची-समझी रणनीति के तहत हुआ.
आगामी चुनाव को लेकर ही यह रणनीति बनी थी, ताकि येन-केन प्रकोरण चर्चा में आया जा सके. यह गुलशन अजमानी या यदुनाथ पांडेय की राजनीति में वापसी या वर्षों से उपेक्षित रहने के बाद सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का, उनके व्यवहार के अनुसार सबसे आसान जुमला हो सकता है, लेकिन देश-समाज और अमन-पसंद लोगों के लिए यह खतरे का संकेत है. एक पुलिस अधिकारी की गलती के लिए चुटिया थाने जैसी राष्ट्रीय संपत्ति को आग के हवाले कर देना, अपनी मांग मनवाने के लिए कोतवाली थाने पर कब्जा कर थानेदार को बेइज्जत करना, उसकी कुरसी पर बैठ जाना, दूरसंचार विभाग के दफ्तर में घुस कर पूरे उपकरण को अस्त-व्यस्त कर देता, रामनवमी जैसे पवित्र पर्व पर झंडा को बीच सड़क पर गाड़ कर शहर में तनाव पैदा कर देना, बात-बात में सार्वजनिक मंच से किसी अधिकारी के खिलाफ यह दंभ भरना कि इतने जूते मारेंगे कि उसके सात पुश्त तक बच्चे गंजे पैदा होंगे, यह साबित करता है कि यह सब खुराफात इन नेताओं की आदत में शुमार है.
असभ्य व्यवहार, हिंसा का रास्ता या लोगों को प्रभावित करने के लिए घटिया से घटिया ड्रामा खेलना इनके जेहन में गहरे पैठा हुआ है, इससे उनका खुद का लाभ तो हो सकता है, लेकिन देश-समाज का इससे क्या वास्ता. चुनाव सामने है. उसे देख कर सिकिदरी हाइडल प्रोजेक्ट की घटना तो मात्र रिहर्सल है. देखिये, आगे-आगे होता है क्या! भाजपा कहती है, वह सबसे अनुशासनबद्ध पार्टी है, फिर सिकिदरी की घटना क्या है! किसी व्यक्ति को निर्वस्त्र कर देना, सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि सीधे-सीधे मानवाधिकार का उल्लंघन है. भाजपा के नेता शायद यह नहीं जान रहे हैं कि वे क्या कर रहे हैं. इससे इनकी सेहत पर भले ही कोई असर पड़े या नहीं पड़े, लेकिन आम आदमी इससे काफी उद्वेलित है.