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रांची कॉलेज के उत्सव प्रिय प्राचार्य!

-अजय- रांची कॉलेज के प्राचार्य उत्सव प्रिय लगते हैं. वह रांची कॉलेज में स्वर्ण जयंती समारोह के प्रणेता हैं, यह अलग प्रसंग है कि कॉलेज का स्वर्ण जयंती वर्ष कब है, यही तय नहीं है. 1996 या उससे पहले या बाद में? पता नहीं प्राचार्य महोदय किस चीज की स्वर्ण जयंती मनाने पर तुले हैं? […]

-अजय-

रांची कॉलेज के प्राचार्य उत्सव प्रिय लगते हैं. वह रांची कॉलेज में स्वर्ण जयंती समारोह के प्रणेता हैं, यह अलग प्रसंग है कि कॉलेज का स्वर्ण जयंती वर्ष कब है, यही तय नहीं है. 1996 या उससे पहले या बाद में? पता नहीं प्राचार्य महोदय किस चीज की स्वर्ण जयंती मनाने पर तुले हैं? रांची कॉलेज की मौजूदा दुर्दशा, अव्यवस्था और हेराफेरी का उत्सव? 25-30 वर्षों से कॉलेज में रंगाई-पुताई नहीं हुई. कॉलेज में पानी जमा है. क्लास रूमों के लगभग सारे पंखों के डैने मुड़ गये हैं या टूट गये हैं. एक कक्षा में टंगे 11 पंखे टेढ़े-मेढ़े और नाकाम हो गये हैं.

पंखे सीलिंग में लटके फांसी की स्थिति में हैं. क्लास रूमों में पानी घुसता है, बिजली के तार गायब हैं. सारे उपस्कर जीर्ण शीर्ण हालत में हैं. प्रयोगशालाएं खंडहर बन गयी हैं. पुस्तकालय से किताबें नदारद हैं. पुस्तकालय ‘डार्करूम’ की स्थिति में है. अध्यापकों को पूरी तनख्वाह नहीं मिलती. दो वर्ष पहले के तीन महीने का वेतन नहीं मिला है. चपरासी वगैरह को वेतन का एक निश्चित प्रतिशत कट कर मिलता है. 25 वर्ष पहले कैंटीन बनी थी ‘डे होम’.

वह भी टूटी-फूटी है. क्या इस संस्था के खंडहर तब्दील हो जाने की खुशी में प्राचार्य महोदय यह उत्सव कर रहे हैं? मान भी लिया जाये की रांची कॉलेज का यह स्वर्ण जयंती वर्ष है. इस अवसर पर अगर समारोह करने की व्यग्रता है, तो सबसे पहले खंडहर होते कॉलेज को व्यवस्थित करना चाहिए था. वह नहीं हुआ, क्योंकि उद्देश्य कॉलेज का स्वर्ण जयंती मनाना नहीं था. स्वर्ण जयंती समारोह की सीढ़ी पर महामहिम, मुख्यमंत्री और पटना के सत्ता गलियारों से संबंध बनाना था.

अगर यह बात नहीं थी, तो रांची कॉलेज के प्राचार्य को रांची विश्वविद्यालय के कुलपति को यह दायित्व सौंपना था. वह महामहिम से संपर्क करते. अपने विश्वविद्यालय के अतीत के गौरवमय कॉलेज के समारोह के खर्चे का प्रबंध करते. किसके आदेश से छात्रों से स्वर्ण जयंती के शुल्क लिये गये? इस मद में कितने पैसे जमा हुए? कितने खर्च हुए? इसका ऑडिट हुआ है या नहीं? चूंकि यह सार्वजनिक धन है, इसलिए इसकी सार्वजनिक एकाउंटबिलिटी है. यह प्राचार्य का निजी धन नहीं है. उन्हें इसका पूरा वितरण सार्वजनिक करना चाहिए.

विश्वविद्यालय के कुलपति को जांच समिति बैठा कर पता करना चाहिए कि इस पूरे प्रकरण में हुई वसूली का सदुपयोग हुआ है या दुरुपयोग? क्योंकि प्राचार्य महोदय चांडिल और चक्रधरपुर में भी प्राचार्य रहे हैं. इन कॉलेजों में जिस तरह के कामों से उनकी ख्याति है, उस अतीत के अनुरूप रांची कॉलेज में उनके इस उत्सव आयोजन की जांच होनी चाहिए.


रांची कॉलेज में व्यावसायिक पाठ्यक्रम चल रहे हैं. मनमाने ढंग से लड़कों से फी वसूली हो रही है. किस पाठ्यक्रम के लिए कितना शुल्क हो, यह किसने निर्धारित किया? विश्वविद्यालय ने? किसी सरकारी एजेंसी ने? या कॉलेज के प्राचार्य महोदय ने? यह स्पष्ट होना चाहिए. प्रभात खबर को सूचना है कि व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के नाम पर छात्रों को सीधे धोखा दिया जा रहा है. कानून यह है कि डिग्री स्तर तक तकनीकी कोर्स (इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट और कंप्यूटर) के लिए ‘ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट फार टेक्नीकल एजुकेशन, नयी दिल्ली’ से मान्यता/ अनुमति लेना अनिवार्य है. क्या इस संस्था ने रांची कॉलेज के इन पाठ्यक्रमों को मान्यता दी है? नियमत: विश्वविद्यालय तकनीकी पाठ्यक्रम निर्धारित करने में सक्षम नहीं है.

रांची कॉलेज में कंप्यूटर में ऑनर्स का पाठ्यक्रम है. ऑफिस मैनेजमेंट में डिग्री कोर्स है. इन पाठ्यक्रमों की मान्यता किसने दी है? प्रभात खबर को मिली सूचना के अनुसार कुलपतियों के अधिकार क्षेत्र में भी यह नहीं है? क्या इनकी डिग्रियां मान्यता प्राप्त हैं? इस अंचल के गरीब लड़के- लड़कियां खेत बेच कर, कर्ज लेकर और गहने बेच कर डिग्री लें और बाहर उसकी मान्यता न हो, तो इस अपराध के लिए दोषी कौन है? इन पाठ्यक्रमों के लिए वसूले गये पैसों का ऑडिट हुआ है या नहीं?


संयोग है कि राज्य के महामहिम इस स्थिति को ठीक करना चाहते हैं. वह पुरानी पीढ़ी के उन राजनेताओं में हैं, जो एक नया सरकारी पैसा इधर-उधर व्यर्थ नहीं करते. यह भी संयोग है कि रांची विश्वविद्यालय के कुलपति अत्यंत ईमानदार, साफ-सुफरी छवि के दृष्टिवान व्यक्ति हैं. उनके विरोधी से विरोधी उनकी निष्ठा के कायल हैं. ऐसे लोगों के रहने अगर रांची कॉलेज में हुई अनियमितताओं की जांच नहीं होती, तो फिर किससे उम्मीद संभव है?

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