-हरिवंश-
लगभग माह भर पहले विभिन्न राज्यों की प्रगति का तुलनात्मक शोध अध्ययन इंडिया टुडे में छपा और पूरे देश में क्षेत्रीय विषमता के सवालों पर पुन: चर्चा हुई. इस रिपोर्ट में विभिन्न राज्यों की रैंकिंग (आर्थिक विकास की दृष्टि से) की गयी थी, इससे राज्यों के अंदर भी नये मुद्दे उठे. यह अध्ययन किया था, दिल्ली स्थित इंडिकस एनालिटिक्स ने. दुनिया स्तर पर अपने शोध-विश्लेषण और अध्ययन के लिए प्रख्यात संस्था, विश्व बैंक, बड़े कारपोरेट घरानों समेत दुनिया की मशहूर संस्थाओं के लिए अध्ययन करनेवाली संस्था है, इंडिकस एनालिटिक्स.
प्रभात खबर ने उसी इंडिकस एनालिटिक्स को (15 नवंबर 2004 के अवसर) झारखंड आर्थिक-सामाजिक प्रोफाइल तैयार करने के लिए आग्रह किया. साथ ही इस काम के लिए अनुरोध किया, देश-विदेश की जानी मानी संस्था ‘इंस्टीट्यूट फार ह्यूमन डेवलपमेंट’ से. इस संस्था से जानेमाने अर्थशास्त्री प्रो अलख नारायण शर्मा जुड़े हैं. योजना आयोग के आग्रह पर इसी संस्थान ने बिहार की चर्चित रिपोर्ट तैयार की थी. प्रो शर्मा ऐसे अध्ययन के लिए खुद अत्यंत जागरुक अर्थशास्त्री हैं.
यह काम सरकार का है या बड़ी व संपन्न शोध अध्ययन संस्थाओं का या स्वयंसेवी संस्थाओं का (एनजीओज) या उद्योग-व्यवसाय से जुड़े संगठनों का. सबसे पहले आंध्रप्रदेश सरकार ने ‘विजन 2020’ रिपोर्ट तैयार करायी. लगभग 10 वर्षों पहले. इसके बाद अन्य राज्यों ने. हाल में बंगाल ने ‘विजन 2020’ रिपोर्ट बंगला में भी जारी किया है. मध्य प्रदेश ने मानव विकास रिपोर्ट तैयार करायी और अमर्त्य सेन से लोकार्पण कराया. इसी तरह भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों ने भी ‘विजन 2020’ रिपोर्ट तैयार करायी है. शायद बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड को छोड़ कर ऐसे दस्तावेज अन्य राज्यों ने बनवा लिये हैं. इन दस्तावेजों के लिए एक नया अंग्रेजी शब्द अब हिंदी में भी धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है, ‘रोड मैप’. आशय है, आपकी यात्रा की मार्गदर्शिका या गाइड बुक. आपको कहां जाना है, मंजिल-गंतव्य क्या है, कैसे पहुंचना है, इसकी जानकारी इस विजन रिपोर्ट में रहती है. विजन रिपोर्ट या ऐसे शोध दस्तावेज की यह साधारण परिभाषा है. एक सामान्य इंसान के लिए.
सीमित संसाधनों वाले अखबार ‘प्रभात खबर’ ने यह अध्ययन क्यों कराया? यह अखबार अपना यह सीमित संसाधन पाठकों को लाटरी पुरस्कार देने में लगा कर भीड़ जमा करा सकता था. पुरस्कार बांट कर पाठकों को बटोर सकता था. पर हमने दूसरा रास्ता चुना. राबर्ट फ्रास्ट के शब्दों में कहें, तो ‘द रोड लेस-ट्रेवेल्ड’ (वह राह जिस पर लोग यात्रा नहीं करते). हमने संसाधन खर्च किया, ऐसे दस्तावेज बनवाने में, जहां से झारखंड और यहां के वाशिंदों के लिए नया भविष्य गढ़ा जा सकता है. इस बदलती दुनिया में अपना भविष्य गढ़ने के लिए झारखंड के लोग तैयार हों, यह मानस तैयार कराने के लिए जानेमाने अर्थशास्त्रियों-विशेषज्ञों से यह अध्ययन कराया गया है.
इससे भी महत्वपूर्ण बात! प्रभात खबर पाठकों को सूचनासंपन्न बनाना चहता है. दुनिया में यह शताब्दी ‘नालेज एरा’ (ज्ञान युग), इनफारमेशन रिवोल्यूशन (सूचना क्रांति), डिजिटल डिवाइड (कंप्यूटर विभाजन) डेथ ऑफ डिस्टेंस एरा (दूरी खत्म होने का दौर), ग्लोबल विलेज की शताब्दी मानी जा रही है. अब अगला दौर वैज्ञानिक ‘बायोरिवोल्यूशन’ का कह रहे हैं. इस युग में सूचना विहीन नागरिक और राज्य पिछड़ने के लिए अभिशप्त हैं. गुलाम बनना उनकी नियति है. 19-20वीं शताब्दी में भी जिन देशों में औद्योगिक-क्रांति हई, जो टेक्नोलाजी में आगे रहे, जहां के लोग सूचना संपन्न रहे, उन्होंने दुनिया को पीछे छोड़ दिया. ब्रिटेन जैसा छोटा मुल्क पूरी दुनिया पर इसी टेक्नोलाजी के कारण राज करता रहा. भारत के कुछ राज्य सूचना विस्फोट के इस दौर में प्रगति दौड़ में शरीक हो गये हैं. विशेषज्ञों के अनुसार आगे बढ़ रहे ऐसे भारतीय राज्य 2020 में विकसित देशों के बराबर पहुंच जायेंगे. जो पीछे रह जायेंगे, वे 2020 में भी बांग्लादेश-श्रीलंका की आज की स्थिति के समान होंगे. राज्य और नागरिक अपना भविष्य खुद गढ़ते हैं. भविष्य हमारी मुट्ठी में है. अगर हम 2020 में यहीं रहना चाहते हैं, तब ऐसे अध्ययनों का असर नहीं होगा. पर यकीनन कोई झारखंडवासी 2020 में यह स्थिति नहीं चाहता. इस तरह इस अध्ययन के माध्यम से प्रभात खबर अपने नागरिकों को सूचना संपन्न बना कर बेहतर भविष्य गढ़ने के लिए तैयार करना चाहता है.
अखबार का मकसद है कि इन सूचनाओं से वह मानस झारखंड में बने कि हमारी बंद मुट्ठी खुले और हम नया भविष्य गढ़ें. प्रभात खबर ने जो संसाधन ऐसे विश्लेषणों-शोधों में खर्च किया, उससे शायद कुछेक पाठकों को लाटरी लगा कर चीनी खिलौने-समान गिफ्ट दे सकता था. वह जो अन्य अखबार कर रहे हैं. उसी तर्ज पर 100 में से 10 या 20 लोगों को ऐसे चीनी पुरस्कार मिलते. लंबी लाइन, लाटरी और संशय के बाद वह सामान या ‘गिफ्ट’ या तो मिलते ही बेकार हो जाता या दो-चार दिनों में कबाड़ा बन जाता. बेंजामिन फ्रेंकलिन ने कहा था, जिस देश की युवा पीढ़ी बिना श्रम किये कुछ पाने की अभ्यस्त हो जाती है, उसका भविष्य नहीं होता. आजादी के बाद पंडित नेहरू ने कहा था कि सट्टा बाजारों में दांव लगा कर, बिना श्रम किये सब कुछ पा जाने का मानस हम नहीं बनायेंगे. हमारा देश भिन्न मानस का होगा. श्रम से उत्पादकता बढ़े और उत्पादकता से अर्जन हो तो समाज बनेगा. आज अखबार जब ऐसा लाटरी मानस बना रहे हैं, तब इसके विकल्प में प्रभात खबर ने अपने पाठकों को सूचना संपन्न बनाने, उनके विवेक को समृद्ध करने का रास्ता चुना है. पाठक इन सूचनाओं को जान कर अपना, अपने परिवार का, राज्य का भविष्य गढ़ने के लिए तैयार होंगे, यह मानस बनाने के लिए यह शोध अध्ययन कराया गया है.
एक और महत्वपूर्ण कारण है. प्रभात खबर के लिए झारखंड भावनात्मक सवाल है. जब अलग राज्य नहीं था. राज्य बनने की संभावना नहीं थी. तिजारत और कमाई के लिए अन्य अखबार नहीं आये थे. जब झारखंड आंदोलन शिथिल था, तब घाटा उठा कर प्रभात खबर लगातार अलग राज्य और विकास मानस बनाने में लगा रहा. राज्य बनने के बाद ‘विकास’ हमारा एकमात्र एजेंडा है. राज्य गठन के बाद सरकार बनी. संस्थाएं बनीं. लूट शुरू हुई. पद-पैसों का बंटवारा हुआ. इस दौर में प्रभात खबर ने अपनी नयी भूमिका चुनी है, लोगों को सूचना संपन्न बनाने का. राज्य में विकास माहौल बनाने का.
साम्यवाद-मार्क्सवाद को हम जितना नकार दें, पर मार्क्स और साम्यवाद ने जीवन का सबसे बड़ा सच सहज तरीके से बताया है. आर्थिक सवालों-मुद्दों से इतिहास की धारा तय होती है. देश-दुनिया में आर्थिक सवाल ही निर्णायक स्थिति में हैं आज की हिंदी पत्रकारिता इस सवाल-मुद्दे पर सही ढंग से काम नहीं कर रही. आर्थिक सवालों-मुद्दों को सहज और सरल तरीके से सामान्य लोगों तक पहुंचाये, तो एक नयी चेतना पैदा होगी. यही हमारा मकसद है.
इस अध्ययन से पता चलता है कि झारखंड कहां खड़ा है? यह सही है कि चार वर्षों में चमत्कार संभव नहीं, पर दिशा-दशा और सही माहौल बनाने के लिए चार वर्ष पर्याप्त हैं. चार वर्षों पूर्व जो राज्य बने (छत्तीसगढ़, उत्तरांचल और झारखंड) वे कहां पहुंचे हैं, इस अध्ययन में इस पर भी चर्चा है. देश के तीन अग्रणी राज्य पंजाब, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के मुकाबले इन राज्यों की स्थिति का भी इसमें अध्ययन है. चूंकि झारखंड, बिहार से अलग हुआ, इसलिए बिहार की स्थिति भी इसमें शरीक है. पड़ोसी राज्यों बंगाल और ओड़िशा के बरक्स झारखंड का मूल्यांकन भी इस अध्ययन में है. हर क्षेत्र में राष्ट्रीय औसत की स्थिति के मुकाबले भी इन राज्यों का मूल्यांकन है. इस अध्ययन का मकसद है कि आर्थिक सवालों पर जागरुकता बने.
क्यों आर्थिक मुद्दे नहीं उठ रहे? राजनीतिज्ञ, अफसर, नेता (अपवाद छोड़ कर), दलाल नहीं चाहते कि बुनियादी आर्थिक सवाल उठें. यह सवाल उठेगा तो शासक वर्ग को जवाब देना होगा कि विधायक-सांसद होते ही लोग कैसे (अपवाद को छोड़कर) कुछेक वर्षों में खाकपति से अरबपति बनते हैं? अलीबाबा का कौन सा खजाना खुलता है? अफसर बनते ही लक्ष्मी कैसे रातोंरात छप्पर फाड़ कर अमीर बनाती हैं? गरीब पूछेंगे कि हमारे कल्याण के लिए आया पैसा कहां गुम हो जाता है? दिल्ली से चला एक रुपया गांव आते-आते कैसे छह पैसा रह जाता है? 94 पैसे कौन खा जाते हैं? क्यों झारखंडी गांवों के गरीब रोजगार की तलाश में बाहर जाते हैं और अपमानित होते हैं. भगाये जाते हैं, दिल्ली-बंबई के महानगरों में आदिवासी लड़कियों के शोषण के जिम्मेवार लोगों पर सवाल उठेंगे? सरकार से जनता पूछेगी कि क्यों चार वर्षों में अन्य राज्य प्रगति की सीढ़ी पर हमसे आगे निकल गये? फिर शासकों की जिम्मेवारी-एकाउंटबिलिटी के सवाल उठने लगेंगे. इसलिए पक्ष-विपक्ष और शासक वर्ग जाति, धर्म जैसे उन्मादी सवालों में जनता को उलझाये रखते हैं. इस अध्ययन का मकसद है कि जनता बुनियादी आर्थिक सवालों को समझे और इन्हें सामाजिक-राजनीतिक विमर्श का मुख्य एजेंडा बनाये. भविष्य संवारे. यह नया भविष्य बनाने-गढ़ने का अभियान है.
16-11-2004