-हरिवंश-
राजनीति, संभावनाओं का खेल है, ऐसा कहा जाता है. जो हालात हैं, उसके तहत झामुमो अगर 17 अगस्त को कोड़ा सरकार से समर्थन वापस ले लेता है, तो झारखंड की राजनीति में क्या-क्या संभावनाएं बनती हैं?
जिस दिन शिबू सोरेन राजभवन गये और समर्थन वापसी का पत्र सौंपा, कोड़ा सरकार का भाग्य सीलबंद हो जायेगा. राज्यपाल कहेंगे, कोड़ा सरकार बहुमत साबित करे. एक निश्चत अवधि के तहत. जैसे ही समर्थन वापस होगा, कोड़ा सरकार की वापसी असंभव हो जायेगी.
तुरंत कांग्रेस और राजद कोड़ा सरकार से तौबा कर लेंगे. कारण ? (1) कोड़ा जी के भाग्य का यह चमत्कार अब दोबारा नामुमकिन है. इसलिए डूबती नाव पर सवार विधायक कूद भागेंगे. कोड़ा जी के साथ न कोई विधायक डूबेगा, न सती होगा? (2) कोड़ा जी किसी ताकतवर क्षेत्रीय दल के नेता रहते, तब कांग्रेस या राजद उनके आगे-पीछे करते. पर वह अकेले हैं.
(3) जिस दिन कोड़ा जी मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे, उनके निर्दल साथी एक-एक कर उन्हें छोड़ देंगे और सुरक्षित आशियाने में जायेंगे. वे इसलिए भी भागेंगे कि 17 विधायकों (झामुमो) का विकल्प कोड़ा सरकार कहां से ढूंढेगी? एक-दो विधायकों का मामला नहीं है कि मैनेज कर या एबसेंट (अनुपस्थित) करा कर या जोड़-तोड़ कर कोड़ा सरकार बच सकती है?
(4) शिबू सोरेन के पक्ष में सबसे बड़ा एक सबसे बड़ा कारण परिस्थितिजन्य है. भाजपा आज सरकार बनाने की दौड़ में नहीं है. और न भाजपा इस दौड़ में शामिल होती दिख रही है. इसके दो प्रभाव हैं. पहला, निर्दलीयों के भाव-पूछ में कमी. दूसरा, भाजपा की अनुपस्थिति में ‘हार्स ट्रेडिंग’ (विधायकों की खरीद-फरोख्त) का भी आरोप नहीं लगेगा और न राष्ट्रपति शासन की मांग होगी.
तब शिबू सोरेन (कोड़ा सरकार गिराने के बाद) मुख्यमंत्री बनने का दावा पेश करेंगे. उनके दावा पेश करते ही कांग्रेस और राजद को उन्हें समर्थन देना पड़ेगा. न चाहते हुए भी यह समर्थन देना पड़ेगा. लोक-लाज के लिए. क्योंकि 22 जुलाई को यूपीए सरकार को समर्थन देकर झामुमो ने कांग्रेस और राजद को कर्जदार बना दिया है. कांग्रेस व राजद को यह भी याद दिलायेगा कि जुलाई में विश्वास मत के दौरान, एनडीए ने शिबू सोरेन को झारखंड का मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव दिया था, पर वह यूपीए के साथ ही रहे. इस लोक-लाज से भी कांग्रेस व राजद शिबू सोरेन को मदद देंगे. शिबू सोरेन, लालू प्रसाद को अतीत भी याद करा रहे हैं कि उन्होंने दो बार उन्हें बिहार में मुख्यमंत्री बनने में मदद की
इसलिए कोड़ा सरकार के पतन के बाद ये दोनों दल (राजद और कांग्रेस) शिबू सोरेन के साथ होंगे. शिबू को सीएम बनाने के लिए. चूंकि 2005 और 2008 में अंतर है. 2008 में भाजपा सरकार गठन खेल से गैरहाजिर है, इसलिए निर्दलीय कहां जायेंगे? इनके पास कोई विकल्प नहीं होगा, शिबू सरकार को मदद करने के अलावा.
समर्थन वापस होते ही मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के पास दो विकल्प हैं. (1) वह विधानसभा फेस करें, और विधानसभा में सरकार गिरने दें. (2) विधानसभा फेस किये बगैर इस्तीफा. कम चांस है कि मधु कोड़ा विधानसभा फेस करें? क्योंकि अविश्वास प्रस्ताव में भाजपा, जदयू, भाकपा, माले, जेवीएम के तीखे आरोप ही नहीं होंगे. झामुमो विरोध में होगा. कांग्रेस तटस्थ या चुप रह सकती है. तब अपने नये आशियाने की खोज में लगे निर्दलीय किस हद तक कोड़ा जी के साथ खड़े रहेंगे?
राजद भी चुप्पी की भूमिका में होगा. तब बचाव के लिए न झामुमो होगा, न कांग्रेस और न राजद. कई निर्दलीय भी चुप्पी साध लेंगे. तो क्या विधानसभा में यह ‘वार’ अकेले कोड़ा जी झेलेंगे? उनके पुराने ट्रैक रिकार्ड से यह नहीं लगता?
कोड़ा जी के हटते ही, शिबू दावा पेश करेंगे. सरकार बनाने के लिए. वहां कोई और दावेदार नहीं होगा. कांग्रेस और राजद के समर्थन पत्र भी होंगे. कुछ निर्दलीय लोगों के भी आसार झामुमो के पक्ष में लगते हैं.
राष्ट्रपति शासन की संभावना तब बनेगी जब (1) निर्दलीय मंत्री एकजुट गवर्नर के पास जायें और लिखित दें कि वे सोरेन सरकार को समर्थन नहीं देंगे या (2) भाजपा दावा करने लगे कि वह सरकार बनायेगी.
पहली संभावना : निर्दलीयों को चुनना है कि राष्ट्रपति शासन या बचे डेढ़ साल तक मंत्री पद का सुख. रुतबा. अब तक निर्दलीयों का जो चरित्र रहा है, उसके आधार पर यही कहा जा सकता है कि वे पद के भूखे हैं और उधर शिबू सोरेन पद बांटने के लिए तैयार हैं. पद के लेनदार-देनदार दोनों हैं.
दूसरी संभावना : भाजपा न सरकार बनाने की स्थिति में है, न दावा करने जा रही है. भाजपा दूरगामी खेल खेलना चाहती है. वह चाहती है कि शिबू के नेतृत्व में यूपीए सरकार बने, ताकि जनता इस सरकार को भी परखे. फिर आगामी चुनावों में फैसला हो.
दो दिनों में एक और फर्क आया है. शिबू गुट अब तक दिल्ली में सक्रिय था. पर शिबू सोरेन और हेमलाल के रांची आते ही यह दल अपना दबाव बढ़ायेगा. कैसे? निर्दलीयों से संवाद कर, मंत्रणा कर, उन्हें पटा कर. अब तक तो कोड़ा गुट ही सक्रिय था. स्टीफन मरांडी कमान संभाले हुए थे. एक पक्षीय सक्रियता थी. दूसरा पक्ष झारखंड से अधिक दिल्ली मैनेज करने में लगा था.
क्यों और कैसे?
दिल्ली में झारखंड को लेकर हुए घमासान में पहला राउंड झारखंड मुक्ति मोरचा ने जीता. किस तरह? तीन दिनों पहले दिल्ली में झारखंड के जो 11 सांसद मिले, उनमें से एक-एक की यह आम आवाज थी कि कोड़ा सरकार बोझ बन गयी है. और इस राज्य सरकार का बोझ उठा कर यूपीए लोकसभा चुनावों की वैतरणी नहीं पार कर पायेगा. वहां उपस्थित लोगों ने कहा, शिबू सोरेन मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बनते हैं, तो उन्हें समर्थन मिलेगा.
इस बैठक में झामुमो, कांग्रेस और राजद के सांसद थे. केंद्रीय मंत्री भी थे. वहीं से शिबू सोरेन का बयान जारी हुआ कि कोड़ा को यूपीए नेतृत्व ने इस्तीफा देने के संकेत दे दिये हैं. पर कोड़ा का जवाब था, इस्तीफा नहीं दूंगा. लेकिन उल्लेखनीय सच यह भी है कि शिबू सोरेन के बयान का खंडन किसी वरिष्ठ यूपीए नेता ने नहीं किया है.
कोड़ा के इस आत्मविश्वास की जड़ें कहां हैं? उनके पास न दल है, न कोई उनका अनुयायी विधायक है. स्पष्ट है कि यूपीए के कुछ बड़े नेता उन्हें ऑक्सीजन या उम्मीद दे रहे हैं. पर याद रखिए, कोड़ा को यह ऑक्सीजन चोरी-छुपे और नेपथ्य से मिल रहा है. पर यही ऑक्सीजन देनेवाले सार्वजनिक रूप से शिबू सोरेन को समर्थन देने की बात कहने के लिए बाध्य हैं.
इस तरह शिबू सोरेन गुट की दिल्ली लाबिंग ने कांग्रेस और राजद को सार्वजनिक रूप से समर्थन देने की बात कहने के लिए बाध्य कर दिया. कांग्रेस समर्थन की बात साफ-साफ कह रही है, राजद या लालू प्रसाद इस चेतावनी के साथ कि कहीं लेने के देने न पड़ें, इसलिए गुरुजी निर्दलीयों को राजी करें. दिखावे के लिए ही सही, पर राजद और कांग्रेस से सार्वजनिक समर्थन पाकर कौन मजबूत हुआ है, शिबू सोरेन या कोड़ा?
कोड़ा के लिए सबसे चिंताजनक पहलू क्या है? झामुमो ने समर्थन वापस लेने की बात खुलेआम दिल्ली को बता दिया है. अगर कांग्रेस या राजद कोड़ा सरकार बचाने के लिए तत्पर होते, तो बिना समय खोये यूपीए के वरिष्ठ नेता सोरेन को मनाते-पटाते. बातचीत करते या सार्वजनिक रूप से शिबू सोरेन को समर्थन देने की बात न करते? कोड़ा के समर्थन में यूपीए के एक भी बड़े नेता का सार्वजनिक बयान न आना, क्या संकेत करता है?
गुरुजी या झामुमो के बार-बार आ रहे बयानों से साफ है कि 17 की बैठक में झामुमो समर्थन वापस ले रहा है. यह समर्थन वापसी बार-बार घोषणा कर और सार्वजनिक चर्चा कर होनेवाली है. सीताराम केसरी कांग्रेस अध्यक्ष थे. और वह तत्कालीन केंद्र सरकार से समर्थन वापसी का पत्र गुपचुप राष्ट्रपति को सौंप आये थे. झामुमो, समर्थन वापसी की यह गोपनीय शैली नहीं अपना रहा. इसके पीछे की राजनीति? यूपीए नेताओं को पर्याप्त समय देना कि वे झामुमो के नेतृत्व को स्वीकार करने का माहौल बनायें. वरना सरकार का अंत? यूपीए के सभी वरिष्ठ नेता, कोड़ा सरकार पर मंडरा रहे खतरों को समझ रहे हैं, पर कोई भी कोड़ा सरकार को बचाने के लिए न सार्वजनिक पहल कर रहा है, न कोड़ा के पक्ष में बयान दे रहा है. इसका क्या संकेत है.
-15-08-2008-