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फोटो मत खींचिए, हत्या के प्रयास में जेल जा सकते हैं

-कानून के रक्षक, कानून का ‘कखग’ जानते हैं क्या- -हरिवंश- 22.6.93 को एडीएम एमपी अजमेरा के कार्यालय में घुस कर झारखंड छात्र युवा मोरचा के छात्रों ने, उनके चेहरे पर कालिख पोती. उसी दिन रांची विश्वविद्यालय झारखंड छात्र युवा मोरचा के अध्यक्ष ने हस्ताक्षरित प्रेस विज्ञप्ति जारी कर इस घटना में भाग लेनेवालों के नाम […]

-कानून के रक्षक, कानून का ‘कखग’ जानते हैं क्या-

-हरिवंश-
22.6.93 को एडीएम एमपी अजमेरा के कार्यालय में घुस कर झारखंड छात्र युवा मोरचा के छात्रों ने, उनके चेहरे पर कालिख पोती. उसी दिन रांची विश्वविद्यालय झारखंड छात्र युवा मोरचा के अध्यक्ष ने हस्ताक्षरित प्रेस विज्ञप्ति जारी कर इस घटना में भाग लेनेवालों के नाम और उद्देश्य की जानकारी दी. यह अखबारों में भी छपा. चोरी-छिपे यह काम नहीं हुआ. इस घटना की तसवीर भी ‘देशप्राण’ में छपी. पूर्व घोषणा कर घोषित उद्देश्य के तहत सरकारी कार्यालय में यह काम हुआ. इसके बाद कार्यक्रम आयोजित करनेवालों ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर इसकी सूचना दी.
पर पुलिस ने अभियुक्त बनाया है फोटोग्राफर बापी और दीपकनाथ शाहदेव को. अपर समाहर्ता एमपी अजमेरा ने उसी दिन जो शिकायत दर्ज करायी, उसमें उन्होंने इन दो छायाकारों की उपस्थिति की सूचना दी है. उसमें कहीं उल्लेख नहीं है कि इन लोगों ने उन पर जानलेवा हमला किया. अगले दिन यानी 23 जून के अखबारों में यह कार्य करनेवालों की प्रेस विज्ञप्ति छपी. फिर भी पुलिस ने इन दो छायाकारों पर अन्य धाराओं के साथ-साथ धारा 307 भी लगा दिया है. पुलिस ने अज्ञात कारणों से 26 जून (घटना 22 जून की है) को एफआइआर की प्रति अदालत में भेजी. पूरा शहर जानता है कि किस अभियान के तहत छात्रों ने यह काम किया, खुद उन छात्रों ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर इसे स्वीकार किया, पर पुलिस की निगाह में अपराधी हैं फोटोग्राफर.
श्री अजमेरा ने पुलिस के पास जो शिकायत दर्ज करायी है, उसमें उन्होंने उल्लेख किया है कि ‘अभियुक्तों’ ने सरकारी काम में बाधा डाला और फाइल इधर-उधर फेंक दी.

जिस अधिकारी के साथ यह हादसा हुआ, उसने कहीं उल्लेख नहीं किया है कि सरकारी काम में बाधा डालनेवालों ने उन पर जानलेवा हमला किया, फिर धारा 307 (हत्या का प्रयास) उन पर कैसे लग सकता है? प्राथमिकी में यह उल्लेख है कि बापी और दीपकनाथ शाहदेव फोटो खींच रहे थे. फिर फोटो खींचना हत्या के प्रयास का मामला कैसे बन गया?

प्रशासन-पुलिस के ऐसे ही अन्यायपूर्ण कार्यों के खिलाफ लोगों में आक्रोश उबलता है. रांची के युवक अगर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकारी अधिकारियों के खिलाफ खुलेआम विरोध कार्यक्रम चलाना चाहते हैं, तो यह शुभ संकेत है. भारत और बिहार की आज जो स्थिति है, उसे राजनेता या अफसर जान-बूझ कर नहीं समझ रहे हैं. आग या विस्फोट के मुहाने पर बैठे समाज में अनियंत्रित हरकतों से स्थिति बिगड़ती है.जिस पुलिस से कानून की रक्षा की उम्मीद की जाती है. क्या वह कानून का क, ख, ग भी नहीं जानती-समझती?

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