विवेकहीन हो गयी हैं गीताश्री उरांव : केएन त्रिपाठी
मेदिनीनगर: कांग्रेस विधायक दल के उपनेता केएन त्रिपाठी ने सरकार में शामिल अपने ही दल के शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव को अज्ञानी व विवेकहीन बताया है. श्री त्रिपाठी ने दल के नेता होने के नाते यह नसीहत दी है कि यदि मौका मिला है, तो राज्यहित में काम करें, ऐसा कोई भी काम न करें, जिससे भाषाई विभेद उत्पन्न हो. यदि सरकार द्वारा पूर्व में निर्धारित किये गये नियम को लेकर शिक्षा मंत्री को कोई परेशानी है तो उन्हें सरकार के समक्ष बात रखनी चाहिए थी. इस तरह का कोई भी निर्णय लेने से पहले आम सहमति जरूरी है. शिक्षामंत्री बनने के बाद गीताश्री उरांव जिस तरह का निर्णय ले रही हैं, उससे यह साफ हो रहा है कि उनमें जानकारी का अभाव है, विवेकहीन भी हो चुकी हैं, क्योंकि भाषाई विभेद पैदा करना संविधान के नियमों का उल्लंघन है. संविधान यह इजाजत नहीं देता कि भाषा,जाति और धर्म के आधार पर समाज को तोड़ा जाये.
कांग्रेस में शामिल लोग भाषा और धर्म के आधार पर विभेद पैदा करेंगे तो लोगों का विश्वास पार्टी से उठेगा. इसलिए कोई भी बयान या निर्णय लेने से पहले शिक्षामंत्री को इस विषय में सोचना चाहिए. उन्होंने कहा कि भोजपुरी व मगही पलामू प्रमंडल के अलावा हजारीबाग,चतरा,धनबाद क्षेत्रों में इस भाषा का प्रयोग होता है.
मंत्री क्या, सीएम भी नियमावली नहीं बदल सकते : रघुवर दास
जमशेदपुर. राज्य की मंत्री क्या, मुख्यमंत्री भी किसी नियमावली में बदलाव नहीं कर सकते और लोगों की बहाली रद्द नहीं कर सकते. यह बात जमशेदपुर पूर्वी के विधायक रघुवर दास ने बुधवार को सिदगोड़ा सूर्य मंदिर में एक प्रेस कांफ्रेंस में कही. श्री दास ने कहा कि भोजपुरी या मगही भाषा के खिलाफ दिया गया शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव का बयान, फूट डालो राज करो वाली अंगरेजी हुकूमत की नीति की याद दिलाता है. कांग्रेस आदिवासी व गैर आदिवासियों के बीच खाई पैदा कर और विद्वेष फैला कर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर रही है. श्री दास ने कहा कि वर्तमान सरकार का पहला एजेंडा स्थानीयता की नीति तय करना था, जो वह तय नहीं कर पायी. झारखंड में हमेशा आदिवासी मुख्यमंत्री और कल्याण मंत्री रहे, लेकिन स्थिति बदतर ही है.
कांग्रेस में शामिल लोग भाषा और धर्म के आधार पर विभेद पैदा करेंगे तो लोगों का विश्वास पार्टी से उठेगा. इसलिए कोई भी बयान या निर्णय लेने से पहले शिक्षामंत्री को इस विषय में सोचना चाहिए. उन्होंने कहा कि भोजपुरी व मगही पलामू प्रमंडल के अलावा हजारीबाग,चतरा,धनबाद क्षेत्रों में इस भाषा का प्रयोग होता है.
एकजुट हों आदिवासी मूलवासी : सालखन मुमरू
रांची. झारखंड दिशोम पार्टी के अध्यक्ष सालखन मुमरू ने कहा है कि झारखंड को बिकने से बचाने के लिए आदिवासियों व मूलवासियों को एकजुट होना होगा. विकास के नाम पर हो रहे विनाश को रोकने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि झारखंड में बालू घाटों की नीलामी पांचवीं अनुसूची व समता निर्णय का खुला उल्लंघन है. इसे अविलंब खारिज किया जाये. मंत्री गीताश्री उरांव के बयान की भावना का पार्टी समर्थन करती है और डोमिसाइल के लिए आहूत 25 अक्तूबर के झारखंड बंद का भी समर्थन करती है. पंचायतों को अधिकार मिलेंगे, आंदोलनकारियों की सही पहचान होगी और विस्थापन – पलायन पर रोक लगेगा, तभी झारखंड निर्माण का सपना सच होगा.
भाषाई स्थिति. दो बार शिक्षक नियुक्ति और सात बार बदली नियमावली
रांची: राज्य में शिक्षक नियुक्ति नियमावली में भोजपुरी व मगही भाषा वर्ष 2007 से शामिल है. इस आधार पर वर्ष 2008 में राज्य में शिक्षकों की नियुक्ति हुई. वर्ष 2007 में बनी शिक्षक नियुक्ति नियमावली में जिलावार प्रचलित क्षेत्रीय व जनजातीय भाषाओं को शामिल करने का निर्णय लिया गया. इसके लिए शिक्षा विभाग ने टीआरआइ से भाषाओं का नाम मांगा. उसी के आधार पर ही भोजपुरी व मगही को शिक्षक नियुक्ति नियमावली में शामिल किया गया. शिक्षक नियुक्ति में इसको अनिवार्य किया गया कि विद्यार्थी जिस जिला से परीक्षा में शामिल होंगे उस जिला के लिए दी गयी एक जनजातीय या क्षेत्रीय भाषा में पास होना अनिवार्य है. इसी आधार पर वर्ष 2011 व 2013 की शिक्षक पात्रता परीक्षा हुई.
राज्य में अब तक सात बार शिक्षक नियुक्ति नियमावली में बदलाव किया गया है. अब आठवें संशोधन की बात कही जा रही है. जबकि शिक्षकों की नियुक्ति मात्र दो बार हुई है. तीसरी नियुक्ति की तैयारी चल रही है. राज्य गठन के बाद पहली बार वर्ष 2002 में झारखंड में शिक्षक नियुक्ति नियमावली बनायी गयी. राज्य गठन के बाद प्रति वर्ष औसतन दो बार नियमावली में बदलाव हुआ है. 12 वर्ष में राज्य में अब तक प्राथमिक व मध्य विद्यालय में मात्र 11 हजार स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति हुई है.
नियमावली में कब-कब बदलाव
प्राथमिक विद्यालयों के लिए शिक्षक नियुक्ति नियमावली सबसे पहले 29 जून 2002 को बनी. नियमावली में एक वर्ष में दो बार बदलाव किये गये. वर्ष 2002 व 2009 में शिक्षक नियुक्ति नियमावली में दो बदलाव हुए. अंतिम नियमावली पांच सितंबर 2012 को जारी की गयी, जिसमें शैक्षणिक मेधा अंक के आधार पर नियुक्ति की बात कही गयी है. विद्यार्थी इसका विरोध कर रहे हैं.
नियमावली बनी 29-06- 2002
पहला संशोधन 24-08-2002
दूसरा संशोधन 06-06-2003
तीसरा संशोधन 26-12-2006
चौथा संशोधन 14-08-2007
पांचवां संशोधन 16-09-2009
छठा संशोधन 23-10-2009
फिर नयी नियमावली 05-09-2012
2004 व 2008 में हुई नियुक्ति
राज्य में अब तक दो बार शिक्षकों की नियुक्ति हुई है. पिछली नियुक्ति वर्ष 2008 में हुई थी. प्राथमिक व मध्य विद्यालय में शिक्षकों के लगभग 25 हजार पद रिक्त हैं. वर्ष 2004 में लगभग दस हजार व 2008 में 491 शिक्षकों की नियुक्ति हुई थी. वर्ष 2011 में नियुक्ति के लिए परीक्षा हुई, पर प्रक्रिया नियम के अनुरूप नहीं होने के कारण इसे रद्द कर दिया गया.
किस जिले में कौन सी भाषा शामिल
कुड़ुख : रांची, खूंटी, लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा, प. सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, लातेहार, पलामू, गढ़वा,
खड़िया : गुमला, सिमडेगा, रांची, खूंटी
मुंडारी : रांची, खूंटी, प. सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला, चतरा, सिमडेगा,
असुर : गुमला, लातेहार, पलामू
बिरहोर : गुमला, हजारीबाग, रामगढ़, चतरा
हो : प. सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां
भूमिज : प. सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां
संताली : देवघर, गिरिडीह, धनबाद, बोकारो, चतरा, कोडरमा, हजारीबाग, रामगढ़, गोड्डा, पाकुड़, साहेबगंज, जामताड़ा, दुमका, सरायकेला-खरसावां, पूर्वी सिंहभूम,
माल्तो : गोड्डा, पाकुड़, साहेबगंज, दुमका
कुरमाली : रांची, खूंटी, प. सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, हजारीबाग, रामगढ़, कोडरमा, बोकारो, धनबाद, गिरिडीह
नागपुरी : रांची, खूंटी, लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा, हजारीबाग, रामगढ़, बोकारो, चतरा गढ़वा, पलामू, लातेहार
पंचपरगनिया : रांची, खूंटी, सरायकेला-खरसावां
बांग्ला : रांची, खूंटी, दुमका, जामताड़ा, साहेबगंज, पाकुड़, सरायकेला-खरसावां
ओड़िया : प. सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां
मगही : लातेहार, पलामू, गढ़वा
भोजपुरी : लातेहार, पलामू, गढ़वा
खोरठा : देवघर, गिरिडीह, धनबाद, बोकारो, चतरा, कोडरमा, हजारीबाग, रामगढ़, गोड्डा, पाकुड़, साहेबगंज, जामताड़ा, दुमका
अंगिका : देवघर, गोड्डा, पाकुड़, साहेबगंज, जामताड़ा, दुमका.