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झारखंडी विधायकों से अनुरोध !

– हरिवंश – यह पता है कि आप यह पत्र नहीं पढ़ेंगे. कुछेक को छोड़ कर. फिर भी जो सवाल झारखंड की जनता के मानस में हैं, वे सार्वजनिक होने ही चाहिए. यही इस खुले पत्र का मकसद है. आप सबसे, जवाब की अपेक्षा है, पर यह मालूम है कि चुनाव के दिनों में, वोट […]

– हरिवंश –
यह पता है कि आप यह पत्र नहीं पढ़ेंगे. कुछेक को छोड़ कर. फिर भी जो सवाल झारखंड की जनता के मानस में हैं, वे सार्वजनिक होने ही चाहिए. यही इस खुले पत्र का मकसद है. आप सबसे, जवाब की अपेक्षा है, पर यह मालूम है कि चुनाव के दिनों में, वोट गिरने तक आप खुद को जनता का नौकर कहते हैं.
सेवक कहते हैं. जीतते ही, आप निरंकुश मालिक बन जाते हैं. कुछेक अपवाद विधायक हैं, पर ऐसे विधायक, मुख्यधारा के विधायक अब नहीं माने जाते. यह पत्र भी झारखंड के ऐसे अपवाद विधायकों को संबोधित नहीं है. दल, विचारधारा, निष्ठा से ऊपर उठ कर आचरण स्तर पर लगभग हर दल में विधायक एक तरह के हैं. समान सोच, समान कर्म और समान भूख. सत्ता, पैसा, कुरसी और प्रसिद्धि के भूखे. यह पत्र ऐसे ही मुख्यधारा के झारखंडी विधायकों को संबोधित है.
सवाल, उठाने के पहले एक प्रार्थना. झारखंड को, मार्च 2005 से आज सितंबर 2006 के बीच, आप विधायकों ने अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में पहुं चा दिया है. पर आपकी यह उपलब्धि झारखंडवासियों के लिए बधाई पाने या खुश होने का अवसर नहीं है. आप सबके कामों की देशव्यापी चर्चा, एक झारखंडी के लिए रोने का ही अवसर है. शर्मसार करने का समय. इसलिए आप सबसे एक करबद्ध प्रार्थना और आग्रह.
आज विधानसभा में ‘लखनऊ विधानसभा का रिकार्ड’ तोड़ने की प्रतिस्पर्द्धा में न उतरें. (उल्लेखनीय है कि कुछेक वर्षों पूर्व लखनऊ विधानसभा में भयावह मारपीट विधायकों ने की थी). जयपुर (2005), अब दिल्ली, हरियाणा, गोवा, केरल, हरिद्वार (पांच सितारा लि-मेरिडियन वगैरह) घूम कर, झारखंड की राजनीति में हो रहे पल-पल, बदलाव की खबरों को चैनलों ने दुनिया के कोने-कोने में पहुंचा कर, आपके कामों-उपलब्धियों को देश के घर-घर में पहुं चा दिया है. कुछेक लोग कहते भी हैं, झारखंड को अब आप सबके सौजन्य से ‘पहचान का संकट’ नहीं रहा. छह वर्ष पुराना राज्य, 60 वर्ष पहले के राज्यों से ज्यादा चर्चित है.
आप विधायकों के कारण ही तो? यह अलग प्रसंग है कि यह प्रसिद्धि दिला कर आप विधायक इतरा सकते हैं, पर जनता आप पर रोती है. इसलिए आज (14 सितंबर) विधानसभा में अपनी हरकतों से पुन: झारखंड को शर्मसार न करें. संयमित और मर्यादित आचरण करें. हां, बहस में तीखे-से-तीखे सवाल उठायें. पर शालीनता में रह कर. आपको याद दिलाना जरूरी है.
जब-जब आपके हित-स्वार्थ के सवाल उठते हैं, तो आप एक हो जाते हैं. झारखंड बनने के बाद आप सबने मिल कर (एक अपवाद छोड़ कर) अपने वेतन, भत्ता नियम में पांच बार संशोधन कराया. अपनी विचारधारा, पाट, आपसी झगड़े सब छोड़ कर आप एक हो गये.
आज देश-दुनिया की निगाह आप पर लगी है. क्या इस अवसर पर मारपीट, उत्तेजना, कुरसी पलटना, चीखना-चिल्लाना, अपशब्द कहना छोड़ कर आप सब शालीनता से एक-दूसरे के खिलाफ धारदार बहस कर, अपनी योग्यता, प्रखरता, निष्ठा दुनिया को दिखा कर, झारखंड विधानसभा का गौरव नहीं बढ़ा सकते? इस काम के लिए आप एक नहीं हो सकते कि बिना झगड़े, अपना मतभेद, स्पष्टता और ताकत से रखेंगे.
झारखंड विधानसभा के आप सभी सदस्य पौने तीन करोड़ झारखंडियों की आकांक्षाओं की रहनुमाई करते हैं. झारखंडी जनता के विश्वास और सपनों के प्रतिनिधि. आप जिस विधानसभा में बैठते हैं, वह लोकतंत्र का मंदिर है. जीवन में संकट के मोड़ पर हर मनुष्य अपने-अपने इबादत घरों में जाकर प्रार्थना करता है. आत्मनिरीक्षण करता है. सच से साक्षात्कार करता है.
गिरजाघरों में तो एक बड़ी आकर्षक परंपरा है. लोग अपने पापों का कन्फेशन (आत्मस्वीकृति) करते हैं. आप सभी विधायक इस लोकतंत्र के मंदिर में आज आत्मस्वीकृति (कन्फेशन) करें, गिरजाघरों जैसा. जैसे मनुष्य निजी दुख, संकट, संशय, अंतर्द्वंद्व के समय कन्फेशन करता है, वैसे ही एक राज्य, देश, समाज भी अपने नाजुक दौर में कन्फेशन करता है. छह वर्ष पुराने झारखंड में आज जो नाजुक दौर है, वह आपके कन्फेशन के लिए सही और उपयुक्त अवसर है.
इस कन्फेशन की शुरुआत एनडीए ही करे, क्योंकि वह अब तक शासन में था. 2005 में किन अघोषित-घोषित शर्तों पर निर्दलीय राजग के साथ आये? यहां से दिल्ली, जिस विशेष विमान से 2005 में एनडीए के विधायक गये, उसका भुगतान किसने किया. दिल्ली से जयपुर, फिर जयपुर के महंगे होटलों-रिसोर्टों का प्रबंध किसके सौजन्य से हुआ. फिर दिल्ली से रांची का विशेष विमान कैसे मिला? इसके बाद यूपीए बताये कि बागी मंत्री, कब-कब गुपचुप ‘सरकार अपदस्थ योजना’ में शरीक हुए ? क्या-क्या घोषित-अघोषित सौदेबाजी हुई ?
पिछले एक सप्ताह से जब यह ड्रामा सार्वजनिक हुआ, तब से 14 सितंबर तक कितने खर्च हुए ? जब दिल्ली से रांची विशेष विमान से तीन निर्दलीय विधायक इस्तीफा देने आये, तो फाइनेंस किसने किया? यह खबरें और तसवीरें लगातार आती रही हैं कि झारखंड के विधायक, दिल्ली के महंगे पांच सितारा लि- मेरेडियन में ठहरे. बैठक की. कुछ लोग हरियाणा के महंगे रिसोर्ट में थे.
कुछेक गोवा-केरल में लहरें गिन रहे थे. महंगे रिसोर्ट और होटलों में. कुछ लोग हरिद्वार-ॠषिकेश भ्रमण पर थे. विशेष चार्टर्ड विमान से. पुन: ये सब झारखंड की धरती पर अवतरित हुए. होटलों, वाहनों, खाने-पीने वगैरह पर इन दिनों बड़ा खर्च आया होगा. यह सब फाइनेंस किसने किया, क्यों किया, कम से कम लोकतंत्र के इबादत गृह, विधानसभा में यह सब आप महानुभावगण बतायें. कन्फेशन करें.
यह सब जनता क्यों जानाना चाहती है? आप जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं. आपके खर्च , वेतन, सुख-सुविधा, मौज-मस्ती, सुरक्षा का भार हम जनता पर है. दर्प में शायद आप में से अधिसंख्य को याद न हो, गरीब से गरीब आदमी भी अप्रत्यक्ष कर देकर, आपकी रहनुमाई की कीमत चुकाती है.
आपके ऊपर बढ़ते बेतहाशा खर्चा से लगातार गरीब से गरीब आदमी पर भी कर बोझ बढ़ रहा है. फिर भी जनता आपके सुरसा की तरह बढ़ते खर्चे का बोझ उठा रही है. आप गरीब जनता के अमीर प्रतिनिधि हैं, यह जानते हुए भी लोग चुप हैं.
पर आप जयपुर, केरल, गोवा, हरियाणा, दिल्ली के पांच सितारा होटलों में जो रहे, उस पर जो बेशुमार खर्च हुआ, उसका स्रोत हम झारखंडी जनता को बतायें. हम जनता को इसलिए जानने का हक है, क्योंकि पेट काट कर आपकी सुख-सुविधा की कीमत यह जनता ही चुका रही है. यह जानना, इसलिए भी जरूरी है कि आप सबकी महंगी यात्राओं, होटलों, वगैरह पर कौन निवेश कर रहा है? क्यों कर रहा है? इसके पीछे क्या मंसूबे हैं? अर्थशास्त्र का बुनियादी सिद्धांत है कि कोई निवेश, फिजूल नहीं होता.
बल्कि हर निवेश, और अधिक पूंजी या रिटर्न लाये, इसी प्रत्याशा में होता है. तो आप सभी विधायकों पर बाहर में जो निवेश कम खर्च हुआ? वह किसने-किस प्रत्याशा में किया? यह झारखंडी जनता को जानने का हक है. सिर्फ आपकी चाल, चरित्र और राजनीतिक पतन को समझने के लिए नहीं, बल्कि आपने झारखंडी जनता के किन हितों के साथ, सौदेबाजी की है, यह जानने के लिए. यह जानने के लिए कि परदे के पीछे एनडीए या यूपीए के साथ कौन-कौन खिलाड़ी या दलाल सक्रिय हैं? उनकी मंशा क्या है?
मालूम है कि आप में से अधिसंख्य में जनप्रतिनिधि होने का अहंकार है.
इसलिए ऐसे सवालों पर आप सख्त नाराज होंगे. आप इतने बड़े मन के या उदार या महान नहीं हैं, कि आप कन्फेशन के लिए तैयार हो जायेंगे. कन्फेशन का स्टेज व्यक्ति के अंदर रूपांतरण से घटता है. बाल्मीकि के अंदर घटित हआ, तो वह अपना पूर्व कर्म छोड़ कर अमर सृजनकार हो गये. आप में यह सदगुण घटित नहीं होगा, यह मानने का आधार है. आपका परिवेश, आपका चिंतन, आपकी जीवनशैली, आपकी भूख, आपमें परिवर्तन घटित नहीं होने देंगे.
पर एक उम्मीद है.
बुद्ध कह गये कि ‘संघे शक्ति कलियुगे.’ कलियुग में, संघ यानी एकता, समूह में ही शक्ति है. जब आप 82 विधायक (या इससे कम) एक साथ बैठ कर लोकतंत्र के मंदिर में सामूहिक सद्‌बुद्धि-आत्मसाक्षात्कार की प्रार्थना करेंगे, तो शायद आप सबकी सामूहिक प्रार्थना से कोई चमत्कार घटित हो.
कम से कम झारखंड की जनता आपका रूपांतरण हो, आपमें चमत्कार घटित हो कि आप राज्य को गर्व करने लायक बनायें, इसकी कामना करती है. यह भी याद रखिये, कि आप अजर-अमर नहीं हैं. इस धरती पर एक से एक प्रतापी आये और चले गये. आप में से जो अखबारों में अपनी खबरें छोड़ कर, देश-दुनिया के बारे में भी पढ़ते हैं, उन्होंने चार दिनों पूर्व माओ से जुड़ी एक खबर पढ़ी होगी.
माओ को पुस्तकों से हटा दिया गया है. नयी पीढ़ी माओ से अनजान है. जिस माओ की यह गत इतिहास में 20-25 वर्षों में ही हो गयी, वहां आप किस खेत की मूली हैं? पांच वर्षों बाद आप में से कितने कहां रहेंगे, शायद ही किसी को याद रहेगा. पर, आपके कामों का असर झारखंड के भविष्य पर पड़ेगा. यह याद रखियेगा.
बड़ी-बड़ी बातें आप विधानसभा में करेंगे. आदर्श, नैतिकता, मूल्य वगैरह की. अपने-अपने विपक्षियों को ‘देशद्रोही’ तक साबित करेंगे. पर आप जान लें, आप सबकी बड़ी-बड़ी बातें आपके प्रति घृणा और नफरत ही पैदा करती हैं. यह बात तो आप सब राजनेता जानते ही होंगे कि राजनीति और राजनेता अब नफरत के पात्र-विषय हैं, फिर भी आपको बताना जरूरी है कि आप (यूपीए और एनडीए दोनों) सब अपने स्वार्थ में डूबे लोग हैं.
आप विधायकगण को मालूम है कि झारखंड बनने के बाद आप विधायकों, मंत्रियों, वगैरह के वेतन में पांच बार संशोधन हुआ. आप सबने मिल कर किया. एकमत होकर. क्या कभी झारखंडी जनता के विकास के सवाल पर एकमत होकर सोचेंगे? आज झारखंड में एक विधायक को प्रतिमाह 30 हजार रुपये मिलते हैं. राज्य बनने के समय 16 हजार रुपये आपको मिलते थे.
अन्य सुविधाएं अलग. आप सबने जिस झारखंडी जनता को सुशासन देने के नाम पर अपनी तनख्वाहें इतनी बढ़ा ली, उस झारखंडी जनता की प्रति व्यक्ति आमद कितनी बढ़ी? 2000-2001 में सालाना 10564 रुपये थी, प्रति व्यक्ति आमद. 2005 में बढ़ कर 15298 रुपये हो गयी. यानी जनता से अधिक वृद्धि, जनता के ही नाम पर.
आपने कभी जानने का कष्ट किया है कि आपके बगल, बंगाल में एक विधायक क्या पाता है? याद रखिये आप से समृद्ध राज्य है, बंगाल. बंगाल के एक विधायक का वेतन प्रतिमाह 3000 रुपये है. आपसे 10 गुना कम. आमतौर पर वहां विधायक को सुरक्षाकम नहीं हैं. यहां प्रति विधायक दो कारबाइनधारी बॉडीगार्ड की व्यवस्था है. बंगाल के विधायक एक रूम में एमएलए हॉस्टल में रहते हैं, आप सब? खुद बताइये.
हम अकाट्य आंकड़े देकर नहीं बताना चाहते, पर आप यह जानते हैं कि झारखंड के साथ बने राज्य छत्तीसगढ़, उत्तरांचल, आपके राज्य से आगे निकल चुके हैं. आपको यह स्मरण नहीं होगा कि झारखंड राज्य के भविष्य को लेकर देश की जानी-मानी संस्था इंडिक्स ने 2004 (नवंबर) में एक अध्ययन किया था. 2020 में यह राज्य इसी आर्थिक रफ्तार से कहां पहुंचेगा?
उनका आकलन था कि 2020 में, आज जहां जिंब्बावे है, वहां झारखंड पहुंचेगा? भयावह और रोंगटे खड़े करनेवाला भविष्य है? पर आपको चिंता नहीं है, क्योंकि जिस रफ्तार से आप अपनी सुविधाएं बढ़ा रहे हैं, आप ‘जिंब्बावे झारखंड’ के बादशाह शासक होंगे?
आप में से किसी के पास झारखंड के विकास का कोई सपना या विजन है ? आज राज्यों में विकास को लेकर किस किस्म से प्रतिस्पर्द्धा चल रही है, आपको पता है? ये विषय आपकी रुचि के हैं ही नहीं. आप लोग चापलूसों, अकर्मण्यों, आपराधिक रुझान के दबंग लोगों की दुनिया में घिरे-सिमटे लोग हैं.
आपकी दृष्टि, आपकी अपनी दुनिया और आपकी अपनी सत्ता तक सीमित है. इसलिए आप क्या जानते हैं कि दुनिया के बदलने का रफ्तार क्या है? 15-20 वर्षों बाद बदले और विकसित दुनिया में, झारखंड कहां होगा? इसकी चिंता होती, तो आप सबका अप्रोच भिन्न होता.
यह पता है कि आप ऐसी बातों को कूड़े में डालने के अभ्यस्त हैं, पर याद रखियेगा, जिस दिन जनता जगेगी, आपको कहां डालेगी, इसका अनुमान आपको नहीं है?
दिनांक : 14-09-06

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