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चारा घोटाला: प्रभात खबर ने उठाया था मामला

प्रभात खबर को जैसे ही इस बात की जानकारी मिली कि पशुपालन विभाग में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की जा रही है, चारा, दवा और पशुओं की खरीद के नाम पर करोड़ों का घोटाला किया जा रहा है, प्रभात खबर ने अपने दायित्व का निर्वाह किया और लगातार रिपोर्ट छापी. 1992 से प्रभात खबर की […]

प्रभात खबर को जैसे ही इस बात की जानकारी मिली कि पशुपालन विभाग में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की जा रही है, चारा, दवा और पशुओं की खरीद के नाम पर करोड़ों का घोटाला किया जा रहा है, प्रभात खबर ने अपने दायित्व का निर्वाह किया और लगातार रिपोर्ट छापी. 1992 से प्रभात खबर की टीम ने इस पर काम करना शुरू किया. रांची, चाईबासा, हजारीबाग समेत छोटे-छोटे शहरों में पशुपालन विभाग द्वारा की जा रही गड़बड़ी को प्रमाण समेत खोज निकाला, उसे जनता के सामने लाया. इस गड़बड़ी में शामिल अफसर, नेता और दलालों के नाम तक छापे. अफसर-नेताओं के आलीशान मकानों की तसवीरें भी छापीं. 1992 से यह अभियान चलता रहा, पर पहला मामला दर्ज हुआ 1996 में. चाईबासा में तत्कालीन उपायुक्त अमित खरे ने प्राथमिकी दर्ज करायी. पाठकों की जानकारी के लिए यहां प्रभात खबर द्वारा छापी गयी कुछ खबरों को दे रहे हैं, ताकि वे जान सकें कि कैसे-कैसे हो रहे थे घपले.

प्रभात खबर द्वारा उठाये गये मामलों से संबंधित दस्‍तावेज को देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें

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14-8-85 : प्रभात खबर पशुपालन विभाग में गड़बड़ी की खबर 1985 से ही छापता रहा है. पर 1992 से इसे अभियान के रूप में चलाया. तीन-चार साल के बाद 1996 में सरकार-प्रशासन चौकस हुआ. ऊपर देखिए 14 अगस्त 1985 का अंक, कैसे कागज पर ही सांढ़ और बकरों की खरीद हो गयी. आपूर्ति नही हुई पर रसीद ले लिये गये.

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1 जुलाई, 1992 : निगरानी विभाग, बिहार ने आरोपी अधिकारियों की सूची तैयार की. इस सूची में पशुपालन विभाग के तत्कालीन क्षेत्रीय उपनिदेशक डॉ श्याम बिहारी सिन्हा का भी नाम था. उन पर 50 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितता का आरोप लगा था. निगरानी ने 9 अगस्त, 1990 को 14 अफसरों के खिलाफ मामले भी दर्ज किये थे. उन पर सुनवाई नहीं हुई.

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आठ फरवरी, 1993 : पशुपालन घोटाले के आरोपियों को बचाने के लिए पहले से ही कोशिश शुरू हो गयी. कार्यालयों से ताला तोड़ कर दस्तावेज गायब किये गये. एक मारुति वैन से सिमडेगा में कुछ लोग पहुंचे. कार्यालय का दरवाजा खोला और फिर दस्तावेज लेकर वे निकल पड़े. इस वैन पर एक राजनीतिक दल का झंडा भी लगा था.

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2 फरवरी, 1993: हवाई जहाज पर लोग सवार हो चुके थे. तभी आयकर अधिकारियों की टीम पहुंची. एयरपोर्ट अथॉरिटी से विमान रोकने को कहा. अधिकारी विमान पर चढ़े. संबंधित लोगों को वारंट दिखाये गये. उन्हें उतारा गया. उनके सामान की तलाशी ली गयी. इन सामानों में करोड़ों रुपये नकद थे, जिसे जब्त कर लिया गया. इसके साथ जेवरात भी मिले.

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