रांची: राज्य के मंत्रियों के काफिले सड़क पर दहशत फैलाते हैं. स्कॉट पार्टी में शामिल पुलिस के जवान डंडे लहराते, गालियां बकते और राह चलते लोगों को धकियाते हुए निकलते हैं. काफिले में शामिल गाड़ियां हवा से बातें करती हैं. स्कॉट पार्टी गाड़ियां सायरन बजाते हुए निकलती हैं. यदि कहीं गाड़ी की रफ्तार कम हुई, तो उस वक्त सड़क पर मौजूद लोगों की खैर नहीं. पुलिस की गालियों से उन्हें शर्मसार होना पड़ता है.
डंडे मार कर या दिखा कर जलील करते हैं. मंत्रियों और उनकी सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मियों की यह रंगबाजी सिर्फ शहरों और भीड़भाड़ वाले इलाकों में ही दिखती है, लेकिन ग्रामीण इलाके में प्रवेश करते ही इनकी हेकड़ी गायब हो जाती है. नक्सलियों के भय के कारण मंत्री अपने वाहन से लाल बत्ती तक हटा लेते हैं. इनकी रफ्तार भी नियंत्रण में रहती है. शहर में चलनेवाले मंत्रियों को इस बात का जरा सा भी ख्याल नहीं रहता है कि उनके कारण लोग परेशान हो रहे हैं, चोटिल हो रहे हैं और उनके साथ अनहोनी तक हो रही है.
नियम विरुद्ध चलते हैं स्कॉट वाहन : नियम है कि एनएसजी या जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त वीआइपी के काफिले में ही स्कॉट वाहन होंगे. झारखंड के किसी भी वीआइपी को एनएसजी की सुरक्षा नहीं है. सिर्फ सात वीआइपी को जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त है. इसमें राज्यपाल, मुख्यमंत्री, चार पूर्व मुख्यमंत्री और डीजीपी शामिल हैं, लेकिन झारखंड के तमाम मंत्रियों के काफिले में स्कॉट वाहन शामिल हैं. यहां तक कि दो वीआइपी पूर्व सांसद सुबोधकांत सहाय और मंत्री राजेंद्र सिंह को भी पुलिस विभाग ने बुलेट प्रूफ वाहन उपलब्ध करा दिया है. जबकि नियम यह है कि जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति को ही बुलेट प्रूफ वाहन उपलब्ध कराये जायें. मंत्री ददई दुबे ने भी बुलेट प्रूफ वाहन की मांग की है.
ये नहीं लेकर चलते थे स्कॉट
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सीपी सिंह और पूर्व मंत्री रघुवर दास कभी भी स्कॉट पार्टी या काफिले के साथ नहीं चलते थे. दोनों नेता जब पद पर थे, तब भी सिर्फ एक वाहन पर अपने अंगरक्षक के साथ निकलते थे.
पल भर में बदला माहौल
मेडिकल चौक पर सब कुछ सामान्य है. हल्के जाम के बीच वाहनों की आवाजाही हो रही है. तभी बूटी मोड़ की ओर से मंत्री योगेंद्र साव का काफिला पहुंचता है. जाम देखते ही स्कॉट गाड़ी पर सवार सभी जवान (ड्राइवर को छोड़ कर) कूदते हैं. मुंह में काली पट्टी लगाये दो जवानों ने गाड़ियों व लोगों को हांकना शुरू कर दिया. इस बीच और दो जवान पहुंच जाते हैं. वे भी गाड़ियों को हांकने लगे.
जवानों के मुंह से लगातार अपशब्द निकल रहे थे. पुलिसिया अंदाज में चिल्लाते हुए : ए हटो, चल-चल निकल और न जाने क्या-क्या. दोपहिया से लेकर चारपहिया वाहनों को हांकने लगे. जवानों के कड़े तेवर को देख लोग इधर-उधर गाड़ियां भगाने लगे. हाथों में हथियार लिये जवानों की वजह से पल भर में वहां अफरा-तफरी मच गयी.
ट्रैफिक व्यवस्था के लिए वहां तैनात पुलिस व रिम्स के गार्ड देखते ही रह गये. मंत्री के अंगरक्षकों ने पलक झपकते ही ट्रैफिक व्यवस्था अपने हाथों में ले लिया. इसे देख कुछ लोग अपनी इज्जत बचाने के लिए या तो किनारे हट गये या फिर वहीं पर रुक गये.
एक दिन पूर्व पी थी शराब
रांची: मंत्री गीता श्री उरांव की स्कॉट में शामिल जीप की चपेट में आने से छात्र सूजल की मौत के मामले में पुलिस ने जीप चालक रामदास तिग्गा को गुरुवार को जेल भेज दिया. सिटी एसपी ने कहा: चालक ने घटना से एक दिन पूर्व रात में शराब पी थी. उल्लेखनीय है कि बुधवार को दो स्कॉट जीप मंत्री को लेने अरगोड़ा चौक से पुंदाग होते हुए हेहल जा रहे थे. वैष्णो नगर निवासी सिपाही संजय कुमार अपने पुत्र सूजल को बाइक से डीएवी अशोक नगर पहुंचाने विपरीत दिशा से आ रहे थे. इसी क्रम में स्कॉट जीप ने बाइक सवार पिता-पुत्र को कुचल दिया था. इधर, रिम्स में गुरुवार को आरोपी चालक के ब्लड की जांच नहीं हो पायी.
मंत्री जी, ऐसे चालकों को कार रेस में भेजिए!
अनुज कुमार सिन्हा
धन्य हैं मंत्री / वीआइपी के काफिले-स्कार्ट पार्टी में शामिल पुलिसकर्मी या चालक . कोई अंकुश नहीं, कोई रोकनेवाला नहीं. जब मूड में होते हैं, तो पता नहीं चलता कि जीप चला रहे हैं या विमान उड़ा रहे हैं. सामने कोई भी हो, परवाह नहीं. हट जाओ, वरना कुचले जाओगे. जीप के बाहर आधा लटके पुलिसकर्मी हाथ में डंडा लेकर लोगों पर बरसाने से भी नहीं चूकते. एक मंत्री की स्कार्ट पार्टी ने रांची में एक बच्चे को कुचल दिया. उसकी मौत हो गयी. जिस पुलिस को लोगों की सुरक्षा के लिए रखा गया है, वह अगर लोगों को, बच्चों को कुचलने लगे, तो ऐसी पुलिस किस काम की? ठीक है मंत्री की स्कार्ट पार्टी है, पर इतनी तेज रफ्तार से चलने की जरूरत भी क्या थी? अगर दो मिनट लेट हो जाते, तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ता? दरअसल यह पुलिस गाड़ियों के चालकों का घमंड है. जब वे मंत्री के साथ होते हैं, तो खुद को मंत्री से कम नहीं समझते. अगर रफ्तार ही दिखानी है, वेटेल सेबेस्टियन (वर्ल्ड चैंपियन) बनना है, तो इन्हें कार रेस में भेज दीजिए.
यह तो एक उदाहरण है कि झारखंड में मंत्री, सीनियर अफसर या बड़े राजनीतिज्ञों का काफिला चलता कैसे है. सायरन बजाता हुआ काफिला जिस सड़क से गुजरता है, दहशत फैल जाती है. जान बचानी है, तो किनारे हो जाइए. रास्ता खाली कराते हैं. हटने में जरा सी देर हुई कि पड़
गया डंडा. इन्हें यह पता नहीं कि सुप्रीम कोर्ट ने इसी 19 अगस्त को वीआइपी वाहनों से सायरन हटाने का आदेश दिया है. कोर्ट ने भी माना है कि यह ब्रिटिश राज का याद दिलाता है. सायरन बजा कर चलना कानून का उल्लंघन है. कोर्ट ने तो यह भी टिप्पणी की है कि जनता टैक्स देती है, तो उसे भी क्यों न सायरन लगाने की छूट दी जाये. इन टिप्पणियों का मंत्रियों, नेताओं, अफसरों और वीआइपी पर कोई असर नहीं पड़ता. याद कीजिए पी चिदंबरम वाली घटना को. जब वे गृह मंत्री थे, तो उन्होंने अपने वाहन में लाल बत्ती, सायरन और वीआइपी सुविधा लेने से मना कर दिया था.
यह कैसी डेमोक्रेसी है. कल तक सड़क पर बिना किसी सुरक्षा के घूमनेवाले जैसे ही विधायक-मंत्री बनते हैं, रातों-रात उन्हें खतरा महसूस होने लगता है. लाखों की सरकारी गाड़ी मिल जाती है, दर्जन भर सुरक्षा गार्ड मिल जाते हैं, थाना की सुरक्षा अलग . इसके बाद चलता है काफिला. क्या शान है? चौक पर गुजरने के पहले ट्रैफिक को रोक दिया जाता है. मरीज है, मरनेवाला है, पर चिंता नहीं है. पहले मंत्री की गाड़ी गुजरेगी, फिर कोई जायेगा. यह सब बंद होना चाहिए. पड़ोसी राज्य बंगाल को देखिए. मुख्यमंत्री के साथ एक या दो गाड़ियां रहती हैं, पर
झारखंड में मुख्यमंत्री हों, मंत्री हों या कुछ सीनियर अफसर, लंबा काफिला चलता है. जनता परेशान रहती है. मार खाने का डर अलग. ये तो राज्य के नीति निर्माता हैं, मार्गदर्शक हैं. इन्हें तो उदाहरण पेश करना चाहिए. कुछ मंत्री-अध्यक्ष अपवाद दिखे हैं. कभी रघुवर दास उपमुख्यमंत्री हुआ करते थे. सीपी सिंह अध्यक्ष. ये लोग एक ही गाड़ी से चलते थे. पर ऐसे लोगों की संख्या अंगुली पर गिनने भर ही है.
मंत्री को जमीनी हकीकत का भी पता चलना चाहिए. जिन लोगों के बल पर वे विधायक/मंत्री बनते हैं, अगर उन्हीं को सताते हैं, तो अगले चुनाव में सड़क पर लाने का भी हक जनता रखती है. ऐसा न हो कि करे कोई, भरे कोई. गलती करें मंत्री के चालक-सुरक्षाकर्मी और गुस्सा उतरे मंत्री पर. बेहतर होगा कि वीआइपी अपने चालकों पर, सुरक्षाकर्मियों पर अंकुश रखें.