रांची: मंत्री योगेंद्र साव के बयान से कांग्रेस के अंदर बवाल मचा हुआ है. श्री साव ने यह कह कर कि मंत्री बनने के लिए दिल्ली में क्या-क्या नहीं करना पड़ा. उन्होंने मंत्री बनने के लिए अहमद पटेल से लेकर सोनिया गांधी और राहुल गांधी तक दौड़ लगाने की बात कही. मंत्री की जुबान भले ही फिसल गयी, लेकिन यह सच जगजाहिर हो गया कि कांग्रेस के अंदर दिल्ली के इशारे के बिना पत्ता तक नहीं हिलता. प्रदेश के नेता दिल्ली परिक्रमा में व्यस्त रहते हैं.
दिल्ली में कदम-कदम पर लॉबिंग हैं. प्रदेश नेताओं के दिल्ली में अपने-अपने ठौर हैं, जहां से आलाकमान तक बात पहुंचाने के लिए पैरवी की जाती है. प्रदेश की राजनीति की दशा-दिशा दिल्ली में तय होती है. आलाकमान भी मामलों को खूब उलझाता है. कांग्रेस आलाकमान को प्रदेश अध्यक्ष के नाम तय करने में दो वर्ष लगे.
प्रदीप बलमुचु का कार्यकाल खत्म हो गया, इसके बाद उन्हें एक्सटेंशन मिला. प्रदेश अध्यक्ष के लिए नेताओं ने खूब जोर लगाया. खेमाबंदी हुई. आलाकमान के पास प्रदेश के नेताओं का अलग-अलग ग्रुप पहुंचा. काफी मशक्कत के बाद आलाकमान ने सुखदेव भगत का नाम तय किया. राज्य में हेमंत सोरेन सरकार बनाने के फैसले में भी आलाकमान को छह महीने लगे.
सरकार गठन के पक्ष-विपक्ष का झंडा लेकर नेता दिल्ली दौड़ते रहे. पूरे छह महीने राज्य में भ्रम की स्थिति रही. सरकार गठन को लेकर कांग्रेस की खूब फजीहत हुई. छह महीने तक नेता रांची से दिल्ली तक हांफते रहे. प्रदेश के पार्टी नेता भी दबी जुबान से कहते हैं कि दिल्ली में जिसकी सेटिंग है, उसे ही जगह मिलती है.