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झारखंड में कानून व्यवस्था ध्वस्त

रांची: झारखंड में कानून-व्यवस्था की स्थिति बदतर होती जा रही है. नक्सली, उग्रवादी और अपराधी पुलिस पर हावी हैं. ये वारदात को अंजाम देने के बाद आराम से निकल जा रहे हैं. पुलिस इन्हें गिरफ्तार नहीं कर पा रही है. पुलिस नक्सलियों और उग्रवादियों के खिलाफ तो ताबड़तोड़ ऑपरेशन चला रही है. पर इसका नतीजा […]

रांची: झारखंड में कानून-व्यवस्था की स्थिति बदतर होती जा रही है. नक्सली, उग्रवादी और अपराधी पुलिस पर हावी हैं. ये वारदात को अंजाम देने के बाद आराम से निकल जा रहे हैं. पुलिस इन्हें गिरफ्तार नहीं कर पा रही है. पुलिस नक्सलियों और उग्रवादियों के खिलाफ तो ताबड़तोड़ ऑपरेशन चला रही है. पर इसका नतीजा कुछ नहीं निकल रहा है. पूरे राज्य में अपराधी, उग्रवादी और नक्सली बेखौफ होकर घटना को अंजाम दे रहे हैं. पर पुलिस मौके पर भी नहीं पहुंच रही.

20 जुलाई की घटना इसका प्रमाण है. एनएच 33 पर कोडरमा घाटी में कई वाहनों के साथ लूटपाट की जा रही थी. पुलिस घटनास्थल पर पहुंची, लेकिन विस्फोट व गोली चलने की आवाज सुन कर वहां से भाग गयी. टाटा-रांची-पटना मार्ग (एनएच 33) ही एक मात्र ऐसी सड़क है, जिस पर रात भर वाहन चलते हैं. इस सड़क पर इस तरह की वारदात से लोग असुरक्षित महसूस करने लगे हैं.

हाथ से निकला गुमला
कानून व्यवस्था की सबसे बुरी स्थित गुमला जिले की है. गुमला पुलिस और प्रशासन के हाथ से लगभग निकल गया है. जिले में इस साल 23 जुलाई तक 140 से अधिक लोगों की हत्याएं हुई हैं. यहां नक्सली और उग्रवादियों के अलावा करीब 13 आपराधिक गिरोह सक्रिय हैं. स्थिति यह है कि जिले से व्यवसायी पलायन कर रहे हैं. जो बचे हैं, उन्हें लेवी को लेकर धमकियां दी जा रही हैं. राष्ट्रपति शासन के दौरान हाल ही में सलाहकार ने जिले का दौरा किया था. कानून-व्यवस्था की समीक्षा की थी. कई निर्देश भी दिये गये थे. पर इसके बाद भी दो माह में 30 लोगों की हत्या कर दी गयी.

खूंटी में नक्सली, उग्रवादी हावी
खूंटी की स्थिति भी कमोबेश यही है. इस साल खूंटी में 45 से अधिक लोगों की हत्या कर दी गयी. जिले में नक्सली और पीएलएफआइ के उग्रवादियों का वर्चस्व है. शाम होते ही जिले की सड़कों पर सन्नाटा पसर जाता है. लोग घरों में कैद हो जाते हैं. चतरा, लातेहार व पलामू में भी नक्सली व उग्रवादी संगठन वर्चस्व के लिए आपस में लड़ रहे हैं. इन सबके बीच पुलिस कहीं है ही नहीं. नक्सलियों और उग्रवादियों को रोकने के लिए उठाये जा रहे कदम और चलाये जा रहे अभियानों का कोई असर नहीं हो रहा है. पुलिस न नक्सलियों-उग्रवादियों को पकड़ पाती है और न ही मार पाती है.

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