मुगल काल में अनुवाद किया था ईरान के शायर सादिक अली ने
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चेचर संग्रहालय में रखा है फारसी में रामायण का अनुवाद
मुगल काल में अनुवाद किया था ईरान के शायर सादिक अली ने शेरो-शायरी के अंदाज में अनोखा है यह ग्रंथ विभागीय उपेक्षा का शिकार है यह अद्वितीय ग्रंथ हाजीपुर : तहजीब उर्दू, भाषा फारसी व अंदाज शायरी का. इन तीनों के माध्यम से एक ग्रंथ की रचना हुई. ग्रंथ में जिस चरित्र का चित्रण किया […]
शेरो-शायरी के अंदाज में अनोखा है यह ग्रंथ
विभागीय उपेक्षा का शिकार है यह अद्वितीय ग्रंथ
हाजीपुर : तहजीब उर्दू, भाषा फारसी व अंदाज शायरी का. इन तीनों के माध्यम से एक ग्रंथ की रचना हुई. ग्रंथ में जिस चरित्र का चित्रण किया गया वह न केवल हिंदुओं का बल्कि सबसे पवित्र ग्रंथ रामायण के मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम हैं. यह बात आज की नहीं बल्कि 17वीं शताब्दी की है. उस समय की लिखी गयी फारसी में यह रामायण संभवत: विश्व में अकेला ही नहीं बल्कि अनोखा भी है. विश्व की तकरीबन हर भाषा में रामायण का अनुवाद किया गया, लेकिन शेरों-शायरी के अंदाज में इस ग्रंथ की रचना की गयी है. इस अनुवाद के हर दो-तीन पन्ने के बाद रामायण के विभिन्न दृष्टांतों के हाथ से बनाये चित्र हैं.
यह ग्रंथ कहीं और नहीं बल्कि सरकार की नजर में बौद्ध सर्किट से जुड़ने के तमाम मापदंडों पर खरा उतरने वाला जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर पूरब हाजीपुर-महनार मुख्य पथ से सटे चेचर ग्राम समूह स्थित एक संग्रहालय में पड़ा है. यह धरोहर अगर किसी और देश में होता तो वह दुर्लभ माना जाता और इसके रखा रखाव के लिए हर-संभव उपाय किये जाते, लेकिन कई बार सूचना दिये जाने के बावजूद पुरातत्व विभाग इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है. स्थानीय प्रशासन भी उदासीनता बरत रहा है. पुरातत्व विभाग के तत्कालीन निदेशक रवींद्र सिंह विष्ठ ने इसे अनोखा और पुरातात्विक रूप से इसे अत्यंत महत्वपूर्ण बताया था.
चेचर ग्राम-समूह की खुदाई में मिला था ग्रंथ : वर्ष 1978 में श्री विष्ठ के नेतृत्व में चेचर ग्राम-समूह की हुई खुदाई के दौरान ही यह ग्रंथ मिला था. फारसी भाषा में रामायण का अनुवाद करने वाले ईरान के प्रसिद्ध शायर सादिक अली थे. मुगल बादशाह जहांगीर के काल में सादिक अली अपने एक रिश्तेदार के यहां चेचर ग्राम समूह में आये थे.
अपने प्रवास के दौरान रामायण का फारसी भाषा में अनुवाद किया था. वैशाली के तत्कालीन डीएम रशीद अहमद ने जब उक्त संग्रहालय का भ्रमण किया तो वे भी इस ग्रंथ को देख आश्चर्य चकित हुए थे. उन्होंने भी इस ग्रंथ को दुर्लभ और अद्वितीय बताया था. पुरातत्व विभाग व अनेकों इतिहासकारों का मानना है कि रामायण का अनुवाद अनेकों भाषाओं में किया गया है, लेकिन शेरों-शायरी के अंदाज में यह पुस्तक निराली है.
पुरातत्व के जानकार राम पुकार सिंह ने रखा है धरोहर को संभालकर : चेचर ग्राम समूह सहित जिले के कई अन्य पुरातात्विक अवशेषों और धरोहरों के प्रति लंबे समय से जागरूक रहे पुरातत्व के जानकार व चेचर गांव निवासी राम पुकार सिंह ने गांव में स्थित संग्रहालय में इस धरोहर को संभाल कर रखा है. हालांकि वे भी इस बात से खासे चिंतित हैं कि इतनी महत्वपूर्ण पुस्तक और चेचर ग्राम समूह की खुदाई के दौरान मिले सिक्के, अभिलेख आदि की सुरक्षा की जिम्मेवारी से पुरातत्व विभाग कतरा रहा है. वे कहते हैं कि सरकार और पुरातत्व विभाग को इस पर ध्यान देना चाहिए.
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