कुव्यवस्था की कीमत चुका रहे मरीज
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लापरवाही . नहीं सुधर रही सदर अस्पताल की हालत
कुव्यवस्था की कीमत चुका रहे मरीज बिचौलिये मरीजों को बना रहे ठगी का शिकार इमरजेंसी वार्ड से लेकर ओपीडी तक बिचौलिए सक्रिय्र न पेयजल का समुचित प्रबंध हो सका और न ही दुरुस्त हुई सुरक्षा व्यवस्था सदर अस्पताल की कुव्यवस्था की कीमत मरीजों को चुकानी पड़ रही है. अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड से लेकर ओपीडी […]
बिचौलिये मरीजों को बना रहे ठगी का शिकार
इमरजेंसी वार्ड से लेकर ओपीडी तक बिचौलिए सक्रिय्र
न पेयजल का समुचित प्रबंध हो सका और न ही दुरुस्त हुई सुरक्षा व्यवस्था
सदर अस्पताल की कुव्यवस्था की कीमत मरीजों को चुकानी पड़ रही है. अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड से लेकर ओपीडी तक बिचौलिए सक्रिय हैं, जो हर रोज मरीजों को ठगी का शिकार बना रहे हैं. अस्पताल परिसर में न तो अभी तक पेयजल का समुचित प्रबंध हो सका और न ही सुरक्षा-व्यवस्था को दुरस्त किया जा सका.
हाजीपुर : सदर अस्पताल का इमरजेंसी वार्ड, जहां मौत से जूझते मरीजों को आनन-फानन में पहुंचाया जाता है. यहां की कुव्यवस्था और लापरवाही का आलम देख मरीज और उनके परिजनों का धैर्य भी जवाब दे देता है. सीधे कहें तो यहां मरीजों की जान से खिलवाड़ होता है.
एक तो आवश्यक चिकित्सा सुविधाओं का अभाव, चिकित्सक एवं स्वास्थ्यकर्मियों की कमी, जीवन रक्षक दवाओं की कमी और उस पर से मरीजों के साथ अमानवीय व्यवहार. दुख, पीड़ा और बेचैनी के मारे जो बेचारे यहां इलाज के लिए आते हैं, उनके साथ जिस तरह का सलूक किया जाता है, वह मरीज और उनके परिजनों को सांत्वना देने के बजाय मानसिक आघात पहुंचानेवाला होता है.
रेफर टू पीएमसीएच का लगा है रोग : घटना-दुर्घटना में घायल या गंभीर रूप से बीमार ऐसे मरीजों की परेशानी तब और बढ़ जाती है, जब इलाज की खानापूरी करने के बाद उन्हें सीधे पीएमसीएच का रास्ता दिखाया जाता है. वार्ड में मरीजों की देखभाल के लिए न एएनएम की तैनाती है और न ऑपरेशन थियेटर में ही पर्याप्त सहायक हैं, बस एक चिकित्सक और एक वार्ड अटेंडेंट के बूते चल रही है पूरी इमरजेंसी की इलाज व्यवस्था.
इमरजेंसी की चिकित्सा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए यहां एक फिजिशियन एवं एक सर्जन समेत दो चिकित्सक एवं आठ एएनएम को तैनात करने की जरूरत बतायी जाती रही है, लेकिन अस्पताल प्रशासन ने आज तक इस पर कोई ध्यान नहीं दिया.
बिचौलियों से मुक्त नहीं हुआ अस्पताल : सदर अस्पताल को बिचौलियों से मुक्त कराने का अस्पताल प्रशासन का दावा खोखला साबित हुआ है. आज भी यहां बिचौलिए रात-दिन मंडराते रहते हैं.
यह बिचौलिए सुदूर देहात से आने वाले सीधे-सादे मरीजों को बरगला कर उनका आर्थिक दोहन कराते हैं. निजी क्लिनिक, निजी जांच घरों एवं दवा दुकानों में मरीजों को पहुंचाने के बदले बिचौलियों को अच्छा-खासा कमीशन मिल जाता है. उधर इनके चक्कर में फंस कर मरीज रोज लूटे जा रहे हैं. अस्पताल परिसर में अवैध रूप से लगने वाले प्राइवेट एंबुलेंस को हटाये जाने, ठेले पर लगने वाली दुकानों को बाहर करने, ओपीडी में दवा कंपनियों के एमआर के प्रवेश पर पाबंदी लगाने और बिचौलियों को निकाल बाहर करने की बात तो कही गयी, लेकिन कारगर कदम नहीं उठाया जा सका.
नकारा साबित हुई सुरक्षा व्यवस्था : अस्पताल प्रशासन द्वारा बहाल की गयी निजी सुरक्षा एजेंसी अपने दायित्वों के निर्वहन में नकारा साबित हुई है. ब्राइट सिक्यूरिटी एजेंसी के 15 सुरक्षाकर्मियों की तैनाती के बाद भी अस्पताल परिसर में चोरी की घटनाएं और मरीजों को ब्लैकमेल करने वालों गतिविधियों पर कोई अंकुश नहीं लग पाया. अस्पताल प्रशासन द्वारा सुरक्षा एजेंसी को कई बार हिदायत दी जा चुकी है, लेकिन सुरक्षा गार्डों पर निर्देशों का कोई असर नहीं दिखता.
जबाब-तलब का भी कोई असर नहीं : लगभग साल भर पहले तत्कालीन सिविल सर्जन सह रोगी कल्याण समिति के अध्यक्ष ने एजेंसी के मैनेजर को तलब कर सुरक्षाकर्मियों की खामियां बतायी थीं. उन्होंने स्पष्ट कहा था कि सिक्युरिटी गार्ड अपनी भूमिका में कहीं दिखाई नहीं देते. इमरजेंसी वार्ड में वह प्राय: नहीं रहते हैं, जिससे चिकित्सा पदाधिकारी को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. विभिन्न विभागों एवं वार्डों में प्रतिनियुक्त गार्ड भी कार्य स्थल पर नहीं देखे जाते. सुपरवाइजर भी अपनी भूमिका में सक्रिय नहीं है. गार्डों पर न कोई नियंत्रण है न निगरानी. अस्पताल के एक चिकित्सा पदाधिकारी का कहना है कि निजी सुरक्षा एजेंसी के क्रिया कलापों का मूल्यांकन करने की जरूरत है.
कहते हैं अधिकारी
सदर अस्पताल में बिचौलियों की गतिविधियों पर अंकुश लगा है. सुरक्षा गार्डों को हिदायत दी गयी है कि वे अवांछित गतिविधियों पर नजर रखें और
मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चि करें. इमरजेंसी की व्यवस्था भी दुरुस्त
की गयी है.
डाॅ यूपी वर्मा, उपाधीक्षक सदर, अस्पताल
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