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भीड़ की विवेकहीनता पर उठे कई सवाल

हाजीपुर : लालगंज की हिंसक घटना ने भीड़ के मनोविज्ञान और नाजुक मामलों से निबटने में पुलिस के तौर-तरीकों पर बहस छेड़ दी है. जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं. घटना क्रम को लेकर कई तरह की चर्चाओं के बीच असल सवाल यह है कि क्या भीड़ सचमुच विवेकहीन होती है? खास कर तब, […]

हाजीपुर : लालगंज की हिंसक घटना ने भीड़ के मनोविज्ञान और नाजुक मामलों से निबटने में पुलिस के तौर-तरीकों पर बहस छेड़ दी है. जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं. घटना क्रम को लेकर कई तरह की चर्चाओं के बीच असल सवाल यह है कि क्या भीड़ सचमुच विवेकहीन होती है? खास कर तब, जब भीड़ किसी प्रतिक्रिया में इकट्ठी होती है.

क्या उस भीड़ में शामिल लोगों के अंदर सही और गलत को समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है? लालगंज की दुखद घटना बताती है कि इसका जवाब हां में है. एक वाहन की चपेट में आने से दादा-पोती की मौत से उपजे आक्रोश को शांत करने के लिए जब कई थानों की पुलिस वहां पहुंची, तो पुलिस वालों ने यह सोचा भी न होगा कि इस प्रयास में उसके एक तेज-तर्रार अधिकारी को शहीद होना पड़ेगा. क्रुद्ध और आक्रामक भीड़ ने जिस तरह पटेढ़ी बेलसर थानाध्यक्ष को कूच-कूच कर मार डाला,

वह स्तब्ध करने वाली घटना है. इस घटना ने जिले में पूर्व में हुई उन घटनाओं की याद ताजा कर दी, जिनमें इसी तरह से हिंसक भीड़ बेगुनाह लोगों पर कहर बन कर टूट पड़ी थी. राजापाकर थाना क्षेत्र में वर्षों पहले हुआ ढेलफोड़वा कांड इसी उन्मत्त भीड़ का नतीजा था. उस घटना को भी अंजाम देने वाली यह अविवेकी भीड़ ही थी,

जो इतनी बेकाबू हो चुकी थी कि लगभग 10 निर्दोष लोगों को मौत की नींद सुला दिया. बहरहाल, लालगंज की घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर क्यों होते हैं ऐसे हालात, जब जुटती है लोगों की भीड़. इस तरह की भीड़ न सिर्फ कानून को अपने हाथों में ले लेती है, बल्कि बर्बरता की हदें भी पार कर जाती है. इसका इलाज क्या हो? इससे निबटने के तरीके क्या हों? ये बातें लालगंज के अमन पसंद और न्याय पसंद लोगों के मन को कुरेद रही हैं.

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