अनदेखी. बस्ते के बोझ से कुम्हला रहा बचपन
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स्कूल संचालकों की कट रही चांदी
अनदेखी. बस्ते के बोझ से कुम्हला रहा बचपन मौजूदा दौर में शिक्षा सबसे बड़े उद्योग के रूप में सामने आया है. वहीं इस दौर में बेहतर शिक्षा का मतलब बच्चों के बस्ते का अधिक से अधिक बोझ ही होता है. सुपौल : सर्वोच्च न्यायालय से लेकर शिक्षा विभाग तक का आदेश बेमानी साबित हो रहा […]
मौजूदा दौर में शिक्षा सबसे बड़े उद्योग के रूप में सामने आया है. वहीं इस दौर में बेहतर शिक्षा का मतलब बच्चों के बस्ते का अधिक से अधिक बोझ ही होता है.
सुपौल : सर्वोच्च न्यायालय से लेकर शिक्षा विभाग तक का आदेश बेमानी साबित हो रहा है और कल के युवा यानी आज के बच्चों का बचपन ही बस्तों के बोझ तले कुम्हलाता जा रहा है. जी हां, मौजूदा दौर में शिक्षा सबसे बड़े उद्योग के रूप में सामने आयी है. और स्कूल संचालकों की चांदी कट रही है. वही इस दौर में बेहतर शिक्षा का मतलब बच्चों के बस्ते का अधिक से अधिक बोझ ही होता है. बोझ जितना अधिक, मतलब स्कूल में शिक्षा का स्तर भी उतना ही बेहतर होगा, यही मान लिया जाता है. लेकिन जरा सावधान हो जाइये, क्योंकि वास्तव में बस्तों का यह बोझ ही है, जो आपके बच्चे को मुसीबत में डाल सकता है.
और तो और स्पाइन कोर्ड में भी यही बोझ विरूपता का कारण बन सकता है.
धीमा जहर है बस्ते का बढ़ता बोझ : शहरीकरण के दौर में इस बात से शायद हर कोई इत्तेफाक रखता है कि बच्चों को बेहतर भविष्य देना है तो आरंभिक दौर में ही उसे शिक्षा व्यवस्था से जोड़ दिया जाये. वही एक बार शिक्षा व्यवस्था से जुड़ने के बाद बच्चों का बचपन मानों कहीं गुम होता दिख रहा है. वही कंधे बस्तों की बोझ तले उम्र से पहले ही झुक जाते हैं. हालांकि बस्तों के बोझ का परिणाम देर से नजर आता है, लेकिन इसके बावजूद पांच से आठ किलो तक के किताब का रोजाना बोझ ढोना बच्चों के लिए खेल ही साबित हो रहा है. जानकारों की मानें तो इस बोझ के कारण 40 से 50 फीसदी बच्चों में बचपन से ही कई प्रकार की असमानताएं दिखने लगती हैं. हड्डी रोगों के विशेषज्ञों के अनुसार बस्ते का अधिक बोझ लोगों में पीठ, कमर, रीढ़ की हड्डियों में दर्द सहित अन्य कई बीमारियों का कारण बनता है. कंधे पर लगातार क्षमता से अधिक बोझ ढ़ोने की वजह से बच्चों के स्पाइन कोर्ड में भी विरूपता आ सकती है. जिसका दूरगामी असर यह होता है कि बच्चों में वजन घटना और भूख-प्यास मिटना जैसे लक्षण शुरू हो जाते हैं. बैग का स्वरूप भी बीमारियों का प्रकार तय करता है.
शौक नहीं, मजबूरी का सौदा है बस्ते का बोझ : स्कूली बच्चों के लिए बस्ते का बोझ उठाना कोई शौक नहीं, बल्कि एक मजबूरी का सौदा ही है. क्योंकि स्कूल में पढ़ाई करनी है तो स्कूल प्रबंधन के निर्देशों का अनुपालन तो करना ही होगा. लेकिन दिलचस्प यह है कि इस संदर्भ में पूर्व में ही सर्वोच्च न्यायालय से लेकर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय (शिक्षा विभाग) द्वारा निर्देश भी जारी किये गये हैं और ऐसा कई बार हुआ है. लेकिन निर्देशों के अनुपालन की फुर्सत शायद किसी को नहीं है.
मुद्दा सर्वशिक्षा अभियान से जुड़ा हुआ है. इस संबंध में उन्हीं को कहा जायेगा. जो भी नियम संगत होगा, उसका अनुपालन होगा.
मो हारुण, जिला शिक्षा पदाधिकारी, सुपौल
इस संबंध में विभाग द्वारा निर्देश प्राप्त नहीं हुआ है. कोर्ट का आदेश विभाग को जारी होता है, जिसके आलोक में विभागीय निर्देश के अनुसार ही जिला स्तर पर अनुपालन होता है. निर्देश मिलने पर अग्रेतर कार्रवाई की जायेगी.
गिरीश कुमार, एसएसए डीपीओ, सुपौल
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