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सरकार के संयुक्त सचिव द्वारा वरीय लेखा लिपिक शिवनाथ रुद्र का स्थानांतरण आदेश विगत 29 नवंबर को ही निर्गत हुआ है. जिसमें स्पष्ट किया गया है कि एक सप्ताह के अंदर उन्हें विरमित किया जाना है. लेकिन दिलचस्प यह है कि मियाद समाप्ती को भी एक माह पूरे हो चुके हैं. बावजूद रुद्र कार्यालय में […]

सरकार के संयुक्त सचिव द्वारा वरीय लेखा लिपिक शिवनाथ रुद्र का स्थानांतरण आदेश विगत 29 नवंबर को ही निर्गत हुआ है. जिसमें स्पष्ट किया गया है कि एक सप्ताह के अंदर उन्हें विरमित किया जाना है. लेकिन दिलचस्प यह है कि मियाद समाप्ती को भी एक माह पूरे हो चुके हैं. बावजूद रुद्र कार्यालय में बने हुए हैं.
सुपौल : ‘न खाता न बही, जो हम कहें सो सही’. जिले के वीरपुर अनुमंडल मुख्यालय में अवस्थित जल संसाधन विभाग का कार्यालय इसी तर्ज पर चल रहा है. क्योंकि यहां न सरकार का आदेश चलता है और न ही नियम-कायदों की किसी को परवाह है. सारे नियम-कायदे ताक पर रखते हुए यहां विभागीय कार्य को संपादित किया जाता है. नतीजा है कि भ्रष्टाचार को यहां खुली छूट मिली हुई है. वही ऐसे कर्मियों के बचाव में अधिकारी भी पूरी तरह खड़े नजर आते हैं. यूं तो विभाग में ऐसे कई उदाहरण व्याप्त हैं. लेकिन ताजा मामला पूर्वी तटबंध प्रमंडल संख्या दो के वरीय लेखा लिपिक शिवनाथ रुद्र से जुड़ा हुआ है.
दरअसल सरकार के संयुक्त सचिव द्वारा श्री रुद्र का स्थानांतरण आदेश विगत 29 नवंबर को ही निर्गत हुआ है. जिसमें स्पष्ट किया गया है कि एक सप्ताह के अंदर उन्हें विरमित किया जाना है. कार्यालय से विरमित नहीं किये जाने की स्थिति में भी उन्हें स्वत: विरमित करने का आदेश है.
लेकिन दिलचस्प यह है कि मियाद समाप्ती को भी एक माह पूरे हो चुके हैं. बावजूद श्री रुद्र कार्यालय में बने हुए हैं. उनके द्वारा दैनिक कार्य भी संपादित किया जाता है और यह सब कुछ अधिकारियों के संरक्षण से हो रहा है.
आदेश को ठेंगा दिखा रहे हैं विभागीय अभियंता : लेखा लिपिक श्री रुद्र के स्थानांतरण आदेश में सरकार के संयुक्त सचिव ने स्पष्ट किया है कि उन्हें एक सप्ताह के अंदर कार्यपालक अभियंता जमानियां पंप नहर प्रमंडल मोहनियां में योगदान करना है. आदेश के अनुसार उन्हें दिसंबर माह का वेतन भी उक्त कार्यालय से ही भुगतान किया जाना है. यहां विशेष यह है कि नियमों के मुताबिक कर्मी जब तक किसी कार्यालय में योगदान न करे, संबंधित कार्यालय से उसे वेतन का भुगतान नहीं किया जा सकता है. आदेश की प्रति दोनों प्रक्षेत्र के मुख्य अभियंता सहित संबंधित कार्यपालक अभियंता को भी भेजी गयी है. इसके अलावा पत्र में श्री रुद्र का अंतिम वेतन प्रमाणपत्र, सेवा पुस्त, जीपीएफ पासबुक आदि अभिलेख उन्हें विरमित करने के 15 दिनों के अंदर नवपदस्थापित कार्यालय को भेजने का निर्देश दिया गया है. लेकिन अब तक न तो कर्मी को विरमित किया गया है और न ही दस्तावेज भेजे गये हैं. जाहिर है आदेश अनुपालन को लेकर अभियंताओं की मंशा संदेहास्पद है. ऐसे मामलों में अधिकारी व कर्मियों के बीच के रिश्ते क्यों प्रगाढ़ होते हैं, इसे समझना भी अधिक कठिन नहीं है.
पूर्व में भी नहीं हुआ स्थानांतरण आदेश का अनुपालन : श्री रुद्र के स्थानांतरण का आदेश निर्गत होना और फिर उसका अनुपालन नहीं होने का मामला कोई नया नहीं है. इससे पूर्व भी दो बार श्री रुद्र का स्थानांतरण होने के बावजूद उन्हें विरमित नहीं किया गया.
गत वर्ष ही 17 अगस्त को श्री रुद्र का स्थानांतरण आदेश सरकार के संयुक्त सचिव के स्तर से निर्गत किया गया था. जिसके आलोक में 23 अगस्त को मुख्य अभियंता कार्यालय से भी पत्र निर्गत कर दिया गया. यह स्थानांतरण प्रशासनिक दृष्टिकोण से किया गया था.
तब भी उन्हें मोहनियां ही पदस्थापित किया गया. लेकिन कार्यपालक अभियंता द्वारा उन्हें समय से विरमित नहीं किया गया. बाद में श्री रुद्र ने न्यायालय से आदेश प्राप्त कर स्थानांतरण पर रोक लगवा ली. हालांकि इस आदेश में न्यायालय ने केवल महिला सहकर्मी के साथ दुर्व्यवहार के आरोप में स्थानांतरण को गलत बताया था. न्यायालय का तर्क था कि बिना जांच के किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है. जबकि इससे पूर्व वर्ष 2011 में भी सहकर्मी लिपिक के साथ मारपीट के मामले में भी श्री रुद्र का प्रशासनिक स्थानांतरण हुआ था. बावजूद उन्हें पुन: उसी कार्यालय में वापस पदस्थापित कर दिया गया.

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