पर्यावरण में बदलाव बन रहा मुख्य कारण, नदी का वजूद हो सकता है खत्म
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साल दर साल घट रहा कोसी का जलस्राव
पर्यावरण में बदलाव बन रहा मुख्य कारण, नदी का वजूद हो सकता है खत्म हिमालय के ग्लेशियरों से सबसे ज्यादा पानी लाने वाली कोसी नदी का जलस्राव दिन ब दिन घटता जा रहा है. जहां पूरे बिहार में चारों ओर बाढ़ से लोग तबाह हो रहे हैं वहीं कोसी का जलस्तर घटना बहुत ही चिंताजनक […]
हिमालय के ग्लेशियरों से सबसे ज्यादा पानी लाने वाली कोसी नदी का जलस्राव दिन ब दिन घटता जा रहा है. जहां पूरे बिहार में चारों ओर बाढ़ से लोग तबाह हो रहे हैं वहीं कोसी का जलस्तर घटना बहुत ही चिंताजनक बात है. यह भी भयावह सत्य है कि कोसी जैसी विशाल नदी अगर सूख गयी तो ना सिर्फ कोसी व मिथिलांचल में पानी के लिये हाहाकार मच जायेगा.
सुपौल : गत पांच दशकों के इतिहास पर ही अगर गौर करें तो बर्फ की चोटियों से अकूत जल भंडार लाने वाली इस नदी के डिस्चार्ज में लगातार ह्रास हो रहा है. जो ना सिर्फ मानव जीवन के लिये संकट का लक्षण है, बल्कि पर्यावरण विदों के लिये भी चिंता का कारण बनता जा रहा है. लोगों में इस बात को लेकर भी चर्चा है कि कोसी नदी के जलस्राव में अगर इसी प्रकार गिरावट जारी रही तो शायद आने वाले कुछ दशकों मे इस नदी का वजूद ही खत्म हो सकता है. नदियां जीवनदायनी होती है. नदियों के किनारे ही मानव सभ्यता का विकास हुआ है.
पानी के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती. यह दीगर बात है कि अपनी मचलती व विध्वंशकारी धाराओं की वजह से कभी कोसी को बिहार का शोक की संज्ञा दी गयी थी. लेकिन यह भी भयावह सत्य है कि कोसी जैसी विशाल नदी अगर सूख गयी तो ना सिर्फ कोसी व मिथिलांचल में पानी के लिये हाहाकार मच जायेगा. बल्कि जमीन के अंदर जलस्तर में भारी गिरावट की वजह से किसानी चौपट हो जायेगी और वर्तमान में कम मेहनत पर शानदार उपज के लिये मशहूर उत्तर बिहार की धरती बंजर हो जायेगी.
हर वर्ष घटता जा रहा नदी का जलस्राव : हिमालय, कंचनजंघा व तिब्बत के ग्लेशियरों से निकलने वाली कोसी अपनी विशाल जलधारा एवं उच्छृंखल स्वभाव के लिये कुख्यात रही है. दुनियां में सबसे ज्यादा तबाही मचाने वाली चीन की ह्वांगहो नदी से इसकी तुलना की जाती है. बिहार के तकरीबन एक दर्जन जिलों में तबाही मचाने वाली कोसी को नियंत्रित करने के लिये 1959 में पूर्वी एवं पश्चिमी तटबंध एवं भीमनगर में कोसी बराज का निर्माण किया गया. जिसकी क्षमता 9.5 लाख क्यूसेक बतायी गयी. तटबंध निर्माण के कुछ वर्षों बाद 1968 में अब तक का सर्वाधिक डिस्चार्ज 9.13 लाख क्यूसेक मापा गया. 1980 के दशक तक हर वर्ष कम से कम एक बार कोसी 05 लाख क्यूसेक के आंकड़े को पार कर जाती थी. जबकि 1990 के बाद कोसी शायद ही कभी 03 लाख के आंकड़े को पार कर पायी. वर्तमान दशक के हालात तो और भी चिंताजनक है. इस वर्ष कोसी का सर्वाधिक डिस्चार्ज महज 2.85 लाख क्यूसेक रहा.
कम बारिश भी बना है कारण : कोसी की जलधारा का मुख्य स्रोत हिमालय का ग्लेशियर माना जाता है. लेकिन कोसी के विशाल जल ग्रहण क्षेत्र में होने वाली बारिश भी इसका प्रमुख स्रोत बनती है. कोसी का जल ग्रहण व वर्षा क्षेत्र 75.5 हजार क्यूसेक वर्ग किलोमीटर है. नतीजा है कि विशाल वर्षा क्षेत्र में होने वाली बारिश का पानी को नदी अपने साथ तराई क्षेत्र में लाती है.
इधर कुछ वर्षों से कोसी व नेपाल के पहाड़ी क्षेत्र में हर वर्ष होने वाली वर्षापात के आंकड़ों में भी कमी दर्ज की जा रही है. इस साल के आंकड़ों पर गौर करे तो जून माह में 98.90 एवं जुलाई माह में महज 101.28 प्रतिशत वर्षापात हुआ है. जबकि अगस्त में अब तक महज 26.42 प्रतिशत वर्षापात हुआ है. जो आने वाले समय में होने वाले सुखाड़ का संकेत दे रहा है.
भादो के महीने में सुस्त है कोसी
आमतौर पर कोसी के बाढ़ का समय 15 जून से 30 अक्टूबर माना जाता है. सावन व भादो में कोसी पूरे उफान पर होती है. तटबंधों के टूटने की घटना भी अधिकतर भादो अर्थात अगस्त-सितंबर माह में हुई है. लेकिन इस साल तो भादो माह में आश्चर्यजनक रूप से कोसी सामान्य से भी कम जलस्तर के साथ बह रही है. कोसी का सामान्य बहाव 76 हजार 500 क्यूसेक माना जाता है. लेकिन 26 अगस्त को डिस्चार्ज मात्र 71 हजार क्यूसेक दर्ज किया गया. बीते कई दिनों से कोसी का यही आलम है. भादो के महीने में कोसी में इतना कम पानी बहना निश्चित तौर पर चिंताजनक है.
कोसी के प्रमुख डिस्चार्ज
05 अक्टूबर 1968 – 913200 क्यूसेक
15 जुलाई 1970 – 450400 क्यूसेक
17 अगस्त 1984 – 501787 क्यूसेक
11 अगस्त 1987 – 523771 क्यूसेक
19 अगस्त 1989 – 472413 क्यूसेक
गत पांच वर्षों का अधिकतम डिस्चार्ज
वर्ष 2011 240460 क्यूसेक
वर्ष 2012 243203 क्यूसेक
वर्ष 2013 279465 क्यूसेक
वर्ष 2014 341390 क्यूसेक
वर्ष 2015 307330 क्यूसेक
वर्ष 2016 में अब तक सर्वाधिक 283115 क्यूसेक
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
कोसी नदी के घटते जलस्तर के लिये विशेषज्ञों की राय माने तो इसका प्रमुख कारण पर्यावरण में बदलाव व ग्लोबल वार्मिंग है. बताया जाता है कि तकरीबन पूरी दुनियां में उत्तरी ध्रुव व दक्षिणी ध्रुव के साथ जहां भी ग्लेशियर हैं, उसकी मात्रा साल दर साल घटती जा रही है. कोसी में जलस्राव की कमी की वजह कम बारिश को भी बताया जाता है. जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता प्रकाश दास ने बताया कि कोसी का विशाल जलग्रहण क्षेत्र है. जिसमें नेपाल स्थित ओखलाडुंगा, तापलेजुंग एवं धनकुट्टा क्षेत्र प्रमुख है. कहा कि वर्षा कम होने के वजह से ही कोसी के जलस्राव में गिरावट दर्ज की जा रही है.
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