सावधानी. हर पल अंजाने खतरे से घिरी हुई है हमारी बेटियां
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आरोपी रिश्तेदार या पड़ोसी
सावधानी. हर पल अंजाने खतरे से घिरी हुई है हमारी बेटियां हर पल अंजाने खतरे से घिरी हुई हैं बेटियां. बाहर से ही नहीं, उन्हें अपनों से भी खतरा है. सगे-संबंधियों से भी खतरा है. वर्ष 2016 में अब तक जिले भर में दो दर्जन से अधिक दुष्कर्म की घटनाएं घटित हुई हैं जिसमें 17 […]
हर पल अंजाने खतरे से घिरी हुई हैं बेटियां. बाहर से ही नहीं, उन्हें अपनों से भी खतरा है. सगे-संबंधियों से भी खतरा है. वर्ष 2016 में अब तक जिले भर में दो दर्जन से अधिक दुष्कर्म की घटनाएं घटित हुई हैं जिसमें 17 मामलों में पीड़िता की उम्र दस वर्ष से कम बताया जा रहा है.
सुपौल : बेटियां… भावुक होती हैं. संवेदनशील होती हैं. जब ठुकरा देते हैं बेटे तो संभालती है बेटियां, लेकिन बेटियां नाजुक है. हर पल अंजाने खतरे से घिरी हुई हैं. बाहर से ही नहीं, उन्हें अपनों से भी खतरा है. सगे-संबंधियों से भी खतरा है. कोमल मन रिश्तेदारों से डरी हुई है. घर में ही उनके साथ हादसे हो रहे हैं. जिले के कई थाना क्षेत्रों में गत कुछ माह के दौरान कई ऐसे मामले सामने आये हैं, जिसमें मासूम बच्चियों के साथ उसके अपने रिश्तेदारों ने ही खिलवाड़ किया. कैसे इतना दर्द सहते होंगे ये कोमल मन! सोच कर ही मन कांप उठता है.
इन समस्याओं को सुलझाने का कोई ठोस फार्मूला नहीं है. बस हम इतना जरूर करें कि अपने बेटियों से बात करें, उन्हें समझें, उनके आसपास मंडराने वाले खतरों को भांपने की कोशिश करें, जागरूक बनें और अपनी बेटियों को इस खतरे से बचायें.
जिले के भीमपुर थाना क्षेत्र के जीवछपुर गांव की दस वर्षीया बच्ची अब गुमसुम रहती है. अपने हम उम्र बच्चों के साथ अब यह खेलने भी नहीं जाती. पीड़िता की मां बताती है कि बच्ची अब बस एकांत में रहना चाहती है. खाने-पीने का शौक भी खत्म हो चुका है. मां, दादा और दादी के अलावा रेखा किसी से बात भी नहीं करती. महज दो माह पहले तक बच्ची ऐसी नहीं थी.
बच्ची के खिलखिलाहट मात्र से घर में खुशी की लहर दौर जाती थी. इस बच्ची के साथ करीब एक महीना पहले रिश्ते के मामा ने दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया था. हालांकि बलात्कारी मामा जेल में है, लेकिन उस घटना के बाद एक बच्ची की चंचलता खत्म हो गयी और कोमल मन ने एकांत से समझौता कर लिया. इस पूरे प्रकरण में पुलिस की कार्रवाई बेहतर थी, लेकिन क्या दुनियां का कोई भी कानून रेखा की चंचलता और उसकी मुस्कुराहट फिर से उसे वापस दिला पायेगा! यह कहानी जिले के कई अन्य थाना क्षेत्रों में हाल के दिनों में दुहरायी गयी है. जिसे सुनकर भी लोगों के रोंगटें खड़ी हो जा रही है. जिले में इन दिनों नर पिचाशों का कहर जारी है.
नर पिचाशों की गिद्ध दृष्टि खास कर अबोध बेटियों पर है. जिले में गत सात माह के दौरान बलात्कार की दो दर्जन से अधिक घटनाएं घट चुकी हैं. जिनमें 17 मामलों में पीड़िता की उम्र दस वर्ष से भी कम है. हैरतअंगेज यह कि ज्यादातर मामलों में आरोपी या तो घर का रिश्तेदार है या फिर पड़ोसी, जिसका पहले से पीड़िता के घर आना-जाना था. अब सवाल यह उठता है कि हम बाहर के दानवों से बचने के लिए कई तरीका अपना रहे हैं, लेकिन घर के राक्षसों से बचने के लिए क्या करें कि हमारी बेटियां सुरक्षित माहौल में खिलखिलाती रहे.
कहते हैं मनोवैज्ञानिक
दुष्कर्म पीड़िता घटना के बाद से लेकर जीवन भर इस अपराध के क्रूरता को याद कर सिहरती रहती है. कई मामलों में पीड़िता मानसिक रोग का शिकार भी बन जाती है. छोटी बच्चियों के मामले में तो स्थिति और भी गंभीर होती है. बच्चियों के साथ घटित घटना उसके मानस पटल पर अंकित हो जाता है. पीड़ित बच्ची जीवन भर किसी दूसरे अपरिचित पर भरोसा नहीं कर पाती. ऐसे मामलों में पीड़ित बच्ची के परिजनों को विशेषज्ञ चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए. घटना स्थल से पीड़ित बच्ची को दूर रख कर उसके दिमाग से इस खौफ को निकाला जा सकता है.
डॉ रामचंद्र प्रसाद मंडल, विभागाध्यक्ष मनोविज्ञान विभाग, पार्वती विज्ञान महा विद्यालय, मधेपुरा
कहती हैं समाजसेवी
कंप्यूटर साक्षरता के माध्यम से समाज सेवा में जुटी शहर के मल्लिक चौक निवासी शिक्षिका एकता कुमारी कहती हैं कि ऐसी घटना पीड़ित बच्ची के साथ-साथ समाज के लिए भी शर्मनाक है. खास कर घर में घुसे भेड़ियों से बच्चियों को बचाने के लिए अभिभावकों को जागरूक होना होगा. खेलकूद के दौरान बच्चियों पर विशेष नजर रखनी होगी. बच्चों से अधिक लाड़-प्यार दिखाने वाले रिश्तेदारों के चरित्र को गहराई से समझना होगा. घर की महिलाएं विशेष रूप से ध्यान दें कि छोटी बच्चियां किसी भी सूरत में असुरक्षित माहौल में नहीं रहे.
एकता कुमारी, कंप्यूटर टीचर, सुपौल
कहती हैं महिला थानाध्यक्ष
समाज के सक्रियता के बिना इस प्रकार की घटनाओं पर रोक लग पाना संभव नहीं है. बच्चियों की सुरक्षा को ले अभिभावकों को जागरूक होना होगा. स्वभाव में आये हर परिवर्तन पर नजर रखने की आवश्यकता है. खास कर बच्चियों की मां को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए. ताकि उनकी हंसती-खेलती बिटिया सुरक्षित रह सके. इस कार्य में सामाजिक सहयोग भी आवश्यकता है. सामाजिक स्तर पर यदि इस प्रकार की क्रूरता के खिलाफ लोग गोलबंद होकर सतर्कता बरतते हैं तो हमारी बच्चियां सुरक्षित रहेंगे और इन बच्चियों से हमेशा आंगन गुलजार रहेगा.
प्रेमलता भूपाश्री, महिला थानाध्यक्ष, सुपौल
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