लापरवाही. सभी योजनाओं का है एक-सा हाल, नहीं हो रही है निगरानी
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आवंटन नहीं, दम तोड़ रहीं योजनाएं
लापरवाही. सभी योजनाओं का है एक-सा हाल, नहीं हो रही है निगरानी भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित तथा आइसीडीएस द्वारा संचालित विभिन्न योजनाएं आवंटन के अभाव में दम तोड़ रही है. सत्तरकटैया : महिलाओं एवं बच्चों के पोषण स्तर में सुधार लाने के उद्देश्य से चलायी गयी यह योजना स्वयं कुपोषण का शिकार बन गयी […]
भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित तथा आइसीडीएस द्वारा संचालित विभिन्न योजनाएं आवंटन के अभाव में दम तोड़ रही है.
सत्तरकटैया : महिलाओं एवं बच्चों के पोषण स्तर में सुधार लाने के उद्देश्य से चलायी गयी यह योजना स्वयं कुपोषण का शिकार बन गयी है. बच्चों, महिलाओं व किशोरी बालिकाओं के स्वास्थ्य व पोषण में सुधार लाने के उद्देश्य से चलायी गयी योजनाओं के सफल संचालन के लिये नियमित रूप से राशि ही आवंटित नहीं की जाती है.
जिसके कारण आंगनबाड़ी केंद्र के माध्यम से दी जाने वाली पूरक पोषाहार योजना, स्कूल पूर्व शिक्षा, टीकाकरण, स्वास्थ्य जांच, पोषण स्वास्थ्य एवं संदर्भ सेवाएं बंद होने के कगार पर है. प्रखंड क्षेत्र में 182 आंगनबाडी केंद्र के माध्यम से जन्म से लेकर छह वर्ष तक के बच्चे, 11 से 18 वर्ष तक की किशोरी बालिकाएं, गर्भवती एवं शिशुवती महिलाओं को सेवाएं दी जाती है. जो पिछले कुछ दिनों से सरकार द्वारा समय पर आवंटन प्राप्त नहीं होने के कारण सभी योजनाएं धरातल पर दम तोड़ दिया है.
बंद पड़ी है पोषाहार योजना
प्रत्येक आंगनबाड़ी के केंद्र पर स्कूल पूर्व शिक्षा ग्रहण करने वाले तीन से छह वर्ष के बच्चों को प्रति दिन मेन्यू के अनुसार पोषाहार खिलाया जाता है. वहीं जन्म से तीन वर्ष तक के बच्चे की माता, गर्भवती एवं शिशुवती तथा किशोरी बालिकाओं को प्रतिमाह सूखा राशन के रूप में चावल, दाल तथा सोयाबीन बड़ी का वितरण किया जाना है. जो सरकार द्वारा आवंटन नहीं मिलने के कारण बंद हो गया है. सरकार से आवंटन नहीं मिलने के कारण लगभग पंद्रह हजार लाभुक लाभ से वंचित हो गया है.
आइजीएमसवाइ योजना का नहीं मिला है पैसा
गर्भवती एवं शिशुवती महिलाओं के स्वास्थ्य एवं पोषण के लिए सरकार द्वारा आइजीएमएसवाई चलायी गयी है. जिसमें लाभुकों को बैंक खाते के माध्यम से छह हजार का भुगतान करने का प्रावधान किया है. यह योजना भी कागजों में ही सिमट कर रह गया है. इस योजना के तहत एक वर्ष पूर्व ही दो हजार से अधिक आवेदन विभाग को प्राप्त हुआ, लेकिन किसी भी लाभार्थी के खाते में राशि नहीं गयी है. मुख्यमंत्री कन्या सुरक्षा योजना के तहत यूटीआइ म्यूचुअल फंड के माध्यम से जन्म लेने वाली बच्चियों के नाम से खाता खोलकर सरकार उसकी शादी के लिए पैसा जमा करती थी. इस योजना में भी विभागीय पदाधिकारी रूचि नहीं दिखा रहे हैं.
तीन साल से नहीं मिला है मकान भाड़ा
बाल विकास परियोजना के तहत संचालित 182 आंगनबाड़ी केंद्रों में आधे से अधिक केंद्र किराये के भवन पर लेकर चलाया जाता है. जिसे भुगतान करने के लिए विभाग द्वारा प्रतिमाह दो सौ की दर से राशि का भुगतान किया जाता है. इस मकान भाड़े की राशि में वर्ष 2015 में वृद्धि किये जाने की सूचना दी गयी थी. लेकिन यह मकान भाड़ा तीन सालों से नहीं मिला है. नाम नहीं छापने की शर्त पर कई सेविकाओं ने बताया कि अपनी जेब से मकान मालिक को किराया देना पड़ता है. किराया नहीं देने पर जगह खाली करने की धमकी दी जाती है. लेकिन विभागीय पदाधिकारी को बार-बार कहने के बावजूद ध्यान नहीं दिया जाता है.
समय पर नहीं मिलती है मानदेय की राशि
एक हजार की आबादी को सेवा देने वाली बाल विकास परियोजना के कर्मी आंगनबाड़ी सेविका एवं सहायिकाओं को प्रतिमाह मानदेय की राशि भी नसीब नहीं होती है. यह मानदेय की राशि वर्ष में दो से तीन बार ही दी जाती है. 3750 रूपये प्रतिमाह पर काम करने वाली सेविकाओं को 35 रजिस्टरों का बोझ ढ़ोना पड़ता है. उपर से सेवा में थोड़ी सी कमी होने पर ग्रामीणों, लाभुकों व पदाधिकारियों का भी कोपभाजन बनना पड़ता है. प्रतिमाह लाभुकों को समुचित लाभ नहीं मिलने पर ताने सुनना पड़ता है. इतनी कम राशि से एक छोटा सा परिवार को चलाना भी चुनौती बनी रहती है.
कहते हैं अधिकारी : इस मामले में पूछने पर सीडीपीओ राजकुमारी सिंह ने बताया कि आवंटन के अभाव में परेशानी हो रही है. आवंटन की राशि प्राप्त होते ही पोषाहार सहित अन्य योजनाओं की राशि भेज दी जायेगी.
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