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अज्ञात बीमारी से सैकड़ों पशुओं की मौत, हड़कंप

महज एक पखवारे के भीतर छह दर्जन से अधिक पशुओं की मौत सुपौल : सदर प्रखंड क्षेत्र के सुखपुर-सोल्हनी पंचायत स्थित पांडेय टोला में इन दिनों पालतू पशुओं के बीच अज्ञात बीमारी फैलने के कारण महज एक पखवारे के भीतर छह दर्जन से अधिक पशुओं की मौत हो चुकी है. वहीं इस गांव में सैकड़ों […]

महज एक पखवारे के भीतर छह दर्जन से अधिक पशुओं की मौत

सुपौल : सदर प्रखंड क्षेत्र के सुखपुर-सोल्हनी पंचायत स्थित पांडेय टोला में इन दिनों पालतू पशुओं के बीच अज्ञात बीमारी फैलने के कारण महज एक पखवारे के भीतर छह दर्जन से अधिक पशुओं की मौत हो चुकी है. वहीं इस गांव में सैकड़ों की संख्या में पशु इस अज्ञात बीमारी से आक्रांत है. गाय-भैंस जैसे दुधारू पशुओं की मौत से पशुपालकों के बीच त्राहिमाम की स्थिति बनी हुई है. वहीं पीड़ित पशुपालकों द्वारा दर्जनों बार सूचना देने के बावजूद पशुपालन विभाग के
अधिकारी इस बीमारी के रोकथाम के प्रति अपनी जिम्मेदारी तय नहीं कर पा रहे हैं. ग्रामीणों के अनुसार सोमवार को पशुपालकों के तेवर को देख कर पशुपालन विभाग से एक चिकित्सक प्रभावित मुहल्ले में पहुंचे और आक्रांत पशुओं को एंटीबाइटिक की सूई लगा कर चले गये. वहीं प्रतिदिन हो रहे पशुओं की मौत से पशुपालकों को अब रोजी-रोटी की चिंता सताने लगी है.
गौरतलब है कि कोसी के इस इलाके के लोगों के आय का प्रमुख श्रोत कृषि के बाद पशुपालन ही है. पशुओं के सहारे ही उनकी जीविका चलती है. अज्ञात बीमारी के कहर के कारण अब तक पांडेय टोला के कई पशुपालकों का दालान खाली हो चुका है.
जीविका का साधन हो रहा समाप्त: कोसी के कछाड़ पर बसे सुपौल जिले में बकरी पालन को एटीएम की संज्ञा दी गयी है. किसानों के लिए यह एक ऐसा व्यवसाय है कि जब आवश्यकता पड़े, बकरी को बेच कर उस जरूरत को पूरा कर लेते हैं.गाय और भैंस की बात ही कुछ और है
.इससे न सिर्फ यहां के किसानों की रोजी-रोटी चलती है बल्कि कृषि कार्य भी इसी पर निर्भर रहता है. इसके अलावा बेटी की शादी सहित अन्य कई बड़े आयोजन तथा बच्चों की शिक्षा दीक्षा भी पशुपालन पर ही निर्भर करता है, लेकिन जीविका का यह साधन अचानक समाप्त होने से यहां के पशुपालकों की बेचैनी बढ़ गयी है. अब उन्हें भविष्य की चिंता सताने लगी है.इस अज्ञात बीमारी ने यहां के किसानों को हिला कर रख दिया है.
विभाग अब तक बना है उदासीन: एक ओर जहां इस अज्ञात बीमारी की वजह से क्षेत्र के किसान परेशान व चिंतित हैं. वहीं पशुओं के उपचार व किसानों को राहत दिलाने के लिए जवाबदेह पशुपालन विभाग अब भी उदासीन बना हुआ है. विभागीय लापरवाही एवं उदासीनता की वजह से क्षेत्र के किसानों में आक्रोश व्याप्त है. स्थानीय लोगों की मानें तो एक पखवारे से जिला पशुपालन विभाग के अधिकारियों को सूचित कर पशुओं के उपचार की व्यवस्था सुनिश्चित किये जाने का अनुरोध किया जा रहा है
.इसके बावजूद भी उन्हें राहत नहीं मिल रही है.बताया कि काफी आरजू-मिन्नत के बाद डॉ शालीग्राम मंडल नामक चिकित्सक को एक कंपाउंडर के साथ भेजा गया, जो पशुओं के उपचार के नाम पर महज खानापूर्ति करने के बाद वापस लौट गये.उक्त चिकित्सक द्वारा बीमार पशुओं को जिला मुख्यालय स्थित अस्पताल लाने का निर्देश दिया गया.किसानों के समक्ष अब यह समस्या उत्पन्न हो गयी है कि इन पशुओं को किस प्रकार अस्पताल तक ले जाया जाय.ग्रामीणों ने बताया कि पशुओं को ढ़ोने के लिए सरकार द्वारा उपलब्ध एंबुलेंस पर चिकित्सक खुद सवारी कर रहे हैं.
इन किसानों के पशुओं की हुई है मौत: केवल सुखपुर-सोल्हनी पंचायत में अब तक सैकड़ों पशुओं की मौत हो चुकी है.जिनके पशुओं की मौत हुई है उन किसानों में धीरेंद्र पांडेय, सुरेंद्र पांडेय, पुष्पा देवी, उपेंद्र यादव, सत्य नारायण पांडेय, गिरधारी पांडेय, उमेश यादव, लुखिया देवी, राजेंद्र यादव, शिव नंदन पांडेय, भाई योगेंद्र पांडेय, विंदेश्वरी यादव, नरेंद्र पांडेय, मो अलाउद्दीन, मो मुस्तकीम आदि शामिल हैं.इन किसानों के करीब एक सौ से अधिक पशुओं की अब तक मौत हो चुकी है.जबकि करीब पांच सौ से अधिक पशु अब भी आक्रांत है.
एक पखवारे से जारी है बीमारी का कहर
पीड़ित ग्रामीण बताते हैं कि इस अज्ञात बीमारी का कहर करीब एक पखवारा पूर्व प्रारंभ हुआ है. बीमारी धीरे-धीरे पांडेय टोला सहित ननूपट्टी, सोल्हनी, सिहे, सुखपुर, बलहा, मझौल सहित आसपास के कई गांवों में फैल रहा है. इस बीमारी प्रकोप सर्वप्रथम बकरी में होता है. उसके बाद धीरे-धीरे यह बीमारी पीड़ित बकरी के आसपास रहने वाले अन्य पशुओं में भी फैल जाता है.चार से पांच दिन तक पीड़ित रहने के बाद संक्रमित मवेशी की मौत हो जाती है.
ग्रामीणों ने बीमारी के लक्षण के बारे में बताया कि पहले प्रभावित पशु के नाक और मुंह से कफ गिरना प्रारंभ होता है. धीरे-धीरे प्रभावित पशु प्रत्येक घंटे मल त्याग करना शुरू कर देता है. इस दौरान पशु तेज बुखार से पीड़ित हो कर तीन-चार दिन बाद काल के गाल में समा जा रहा है.बीमारी शुरू होने के बाद किसी भी उपचार का बीमार पशुओं पर कोई असर नहीं होता है.

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