कल चमन था, आज है वीरान
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लापरवाही. बड़ी व छोटी लाइन के चक्कर में बेकार पड़ा है मालगोदाम
कल चमन था, आज है वीरान करीब एक दशक पूर्व तक गुलजार रहने वाला यह जिला मुख्यालय स्थित रेलवे माल गोदाम वर्तमान में अपनी बेबशी पर आंसू बहाता प्रतीत होता है़ उस मालगोदाम पर अब न तो कभी मालगाड़ी के िडब्बे लगते हैं और न ही अब यहां व्यापारियों का कोई माल उतारा जाता है़ […]
करीब एक दशक पूर्व तक गुलजार रहने वाला यह जिला मुख्यालय स्थित रेलवे माल गोदाम वर्तमान में अपनी बेबशी पर आंसू बहाता प्रतीत होता है़ उस मालगोदाम पर अब न तो कभी मालगाड़ी के िडब्बे लगते हैं और न ही अब यहां व्यापारियों का कोई माल उतारा जाता है़
सुपौल : बॉलीवुड की किसी फिल्म में गाया गया यह फिल्मी गाना इन दिनों जिला मुख्यालय स्थित रेलवे माल गोदाम के हालात पर सटीक बैठता है़ करीब एक दशक पूर्व तक गुलजार रहने वाला यह मालगोदाम वर्तमान में अपनी बेबशी पर आंसू बहाता प्रतीत होता है़ पूर्व में हमेशा चकाचक रहने वाला मालगोदाम की हालत दिन ब दिन जर्जर होती जा रही है़ उस मालगोदाम पर अब ना तो कभी मालगाड़ी के िडब्बे लगते हैं और ना ही अब यहां व्यापारियों का कोई माल उतारा जाता है़ जिसके कारण सुपौल रेलवे स्टेशन का यह मालगोदाम अपने उद्देश्यों की पूर्ति में विफल साबित हो रहा है़
बेकार पड़े मालगोदाम पर धीरे-धीरे एक ओर जहां खानाबदोशों ने कब्जा जमाना प्रारंभ कर दिया है़ वहीं दूसरी ओर सूने पड़े मालगोदाम का बांस व अन्य कई धंधे से जुड़े लोग अवैध रूप से इस्तेमाल करने लगे हैं. इन सब के बीच रेलवे विभाग की उदासीनता लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है़ लोगों की मानें तो मालगोदाम के नाजायज उपयोग में रेल पुलिस भी सहभागी बन कर चांदी काट रही है़
क्या है मामला : गौरतलब है कि दशकों पूर्व जिला मुख्यालय में रेलवे स्टेशन के साथ ही मालगोदाम का भी निर्माण करोड़ों की लागत से किया गया था़
करीब एक दशक पूर्व तक समस्तीपुर रेल प्रमंडल मुख्यालय से सहरसा और फिर सहरसा से फारबिसगंज रेल खंड के बीच छोटी लाइन की ट्रेनों का परिचालन किया जाता था़ नतीजा था कि बिहार व अन्य प्रदेशों से भारी मात्रा में माल की ढुलाई माल गाड़ियों से सुपौल व आगे के स्टेशनों पर होती थी़
वहीं स्थानीय माल गोदाम से भी रेलवे के वैगनों में भर कर बांस, मखाना, अनाज व अन्य उत्पाद बाहर के शहरों तक भेजा जाता था़ जिससे रेलवे को भी हर साल करोड़ों का राजस्व प्राप्त होता था़ करीब दस साल पूर्व 06 फरवरी 2007 को सहरसा व समस्तीपुर के बीच ब्रॉडगेज लाइन निर्माण हो जाने के बाद बड़ी लाइन की ट्रेनों का परिचालन प्रारंभ हो गया़ जबकि सहरसा-फारबिसगंज रेल खंड अमान परिवर्तन से अछूता रह गया़
परिणाम स्वरूप सहरसा स्टेशन तक तो बड़ी लाइन की मालगाड़ी आने लगी़ लेकिन सहरसा के बाद सुपौल की दिशा में छोटी लाइन रहने की वजह से सीधे सुपौल तक माल की ढुलाई बंद हो गयी़ सहरसा में बड़ी लाइन से छोटी लाइन के वैगनों मे माल का स्थानांतरण व्यवहारिक नही था़ वहीं यह काफी मंहगा भी साबित हो रहा था़ नतीजतन सहरसा-फारबिसगंज रेल खंड में रेल द्वारा माल का आवागमन ठप पर गया़ जिसकी वजह से इस रेल खंड के सभी मालगोदाम बेकार पड़ गये़
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