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हे प्रभु! कोसी पर ध्यान धरो
उम्मीद. 13 वर्षों में नहीं पूरा हो पाया अमान परिवर्तन का काम – चार वर्षों से लगा है मेगा ब्लॉक – छोटी रेल लाइन की सुविधा से भी महरुम हो रहे कोसीवासी – नये रेल बजट पर टिकी है सभी की निगाहें अमरेंद्र कुमार अमर सुपौल : केंद्र सरकार के नये रेल बजट की तिथि […]
उम्मीद. 13 वर्षों में नहीं पूरा हो पाया अमान परिवर्तन का काम
– चार वर्षों से लगा है मेगा ब्लॉक
– छोटी रेल लाइन की सुविधा से भी महरुम हो रहे कोसीवासी
– नये रेल बजट पर टिकी है सभी की निगाहें
अमरेंद्र कुमार अमर
सुपौल : केंद्र सरकार के नये रेल बजट की तिथि करीब आते ही कोसी वासियों की उम्मीदें एक बार फिर से मचलने लगी है़ आजादी के बाद से अब तक रेल विभाग की उपेक्षा झेल रहे लोगों में एक नई आशा का संचार हो रहा है़
अपेक्षाएं बढ़ रही है़ पिछड़ापन की मार झेल रहे लोगों की निगाहें आने वाले नये रेल बजट पर टीकीं है़ उन्हें उम्मीद है कि सर्वत्र विकास का दावा करने वाली केंद्र सरकार व उनके रेल मंत्री सुरेश प्रभु नये सत्र के लिए तैयार कर रहे रेल बजट में कोसी वासियों का भी ख्याल रखेंगे और श्री प्रभु की कृपा से उनके बुझ रहे सपने साकार होंगे़
सहरसा- फारबिसगंज रेल खंड के साथ ही कोसी के अन्य हिस्सों में भी बड़ी रेल लाइन बिछेंगी़ वहीं प्रदेश व देश की राजधानी के साथ ही अन्य प्रमुख शहरों को कोसी से रेल सेवा के माध्यम से जोड़ा जायेगा़
गौरतलब है कि सुपौल जिला आज भी बड़ी रेल लाइन की सुविधा से महरुम है़ यहां आज भी अंग्रेजों के जमाने की छोटी लाइन की ट्रेनों का परिचालन होता है़ जिसमें यात्री भेड़- बकरी की तरह यात्रा को विवश होते है़ अब देखना है कि केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले नये रेल बजट में कोसी वासियों की अपेक्षाओं व जरुरतों का किस हद तक ध्यान रखा जाता है़ या फिर बीते कुछ वर्षों के रेल बजट की भांति एक बार फिर से वे ठगे जाते है़
2003 में हुआ था शिलान्यास
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा 06 जून 2003 को कोसी महासेतु व आमान परिवर्तन कार्य का शिलान्यास किया गया था़ जिले के निर्मली अनुमंडल मुख्यालय में आयोजित उक्त समारोह में तब लाखों की भीड़ उमड़ी थी़ लोग खुशी से गदगद थे़
उन्हें लगा था कि कुछ वर्षों बाद ही उन्हें बड़ी रेल लाइन की ट्रेन की सुविधा उपलब्ध हो जायेगी़ वहीं परियोना के पूर्ण होने से दशकों बाद कोसी व मिथिलांचल एक बार फिर से रेल मार्ग से जुड़ जायेगा़ शिलान्यास समारोह में रेल मंत्रालय द्वारा वर्ष 2009 तक कार्य को पूर्ण कर लेने की घोषणा की गयी थी़ लेकिन दुर्भाग्य है कि तत्कालीन सरकार के बाद भी केंद्र में कई सरकारें बनी़ लेकिन किसी ने भी इस महत्वाकांक्षी परियोजना को पूर्ण करने के प्रति रुचि नहीं दिखायी़
चार वर्षों से लगा है मेगा ब्लॉक
कुसहा त्रासदी के करीब चार साल बीतने के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार की नींद खुली़ आमान परिवर्तन की चर्चा फिर से प्रारंभ हुई़ राघोपुर -फारबिसगंज के बीच रेल मंत्रालय द्वारा 20 जनवरी 2012 को आमान परिवर्तन हेतु मेगा ब्लॉक किया गया़
मायूस हो चुके लोगों में फिर से आशा बंधी की इन स्टेशनों के बीच शीघ्र ही बड़ी रेल लाइन सेवा प्रारंभ हो जायेगी़ लेकिन विडंबना है कि चार साल बीत जाने के बावजूद मामला जस का तस पड़ा है़
कुछेक जगहों पर छिट-फुट काम हुये है़ लेकिन विभागीय सूत्रों की माने तो फंड के अभाव में कार्य को अंजाम नहीं मिल रहा है़ इस बीच 01 नवंबर 2015 से थरबिटिया व राघोपुर के बीच भी मेगा ब्लॉक कर दिया गया़ आलम यह है कि जिले में अब महज 20-25 किलो मीटर के दायरे में ही छोटी रेल का परिचालन किया जा रहा है़ इससे ऊपजी समस्या का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है़
13 वर्षों से अधूरी है परियोजना
शिलान्यास के 13 साल बीत जाने के बाद भी सहरसा-फारबिसगंज व सरायगढ़- सकरी रेल खंड में अमान परिवर्तन का कार्य पूरा नहीं हो पाया है़ हालांकि इस बीच कोसी नदी पर रेल महासेतु का निर्माण तकरीबन पूरा हो चुका है़
लेकिन छोटी लाइन की जगह बड़ी लाइन की पटरियों का बिछना अब भी बाकी है़ सबसे दूभर स्थिति राघोपुर- फारबिसगंज के बीच बसी बड़ी आबादी की है़ वर्ष 2008 में कुसहा बांध टूटने के बाद कोसी की भयानक विभीषिका ने इन दोनों स्टेशनों के बीच काफी तबाही मचायी थी़ पटरियां ध्वस्त हो गयी थी़
जिससे रेल परिचालन भी ठप पर गया़
सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है रेल खंड : सहरसा-फारबिसगंज रेल खंड को सामरिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है़ सीमावर्ती जिला व नेपाल सीमा से सटे होने की वजह से इस क्षेत्र में रेल परिचालन सुरक्षा व सामरिक दृष्टि से अहम है़ परियोजना की स्वीकृति काल में इस बाबत रक्षा मंत्रालय द्वारा सहमति व सहयोग भी प्रदान किया गया था़
काल क्रम में सुपौल से त्रिवेणीगंज होते अररिया व प्रतापगंज से वीरपुर के बीच भी रेल सेवा बहाल करने का आश्वासन भी दिया गया़ इन योजनाओं को स्वीकृति मिलने के बाद सर्वेक्षण भी किया गया़ लेकिन विभागीय उदासीनता की वजह से इसे फिर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया़ जिससे इस रेल खंड में बसे करीब 30 लाख लोगों में असंतोष व्याप्त है़
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