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मिनरल वाटर के नाम पर बांटी जा रहीं बीमारियां

सुपौल : जिले भर में धड़ल्ले से शुद्ध पेयजल (मिनरल वाटर) के नाम पर बीमारियां बांटी जा रही है. बता दें कि मिनरल वाटर आपूर्ति को लेकर जिला मुख्यालय में करीब आधा दर्जन प्लांट संचालित है. जहां से पूरे क्षेत्र में मिनरल वाटर की केन सप्लाइ की जाती है. आरओ वाटर के नाम पर हर […]

सुपौल : जिले भर में धड़ल्ले से शुद्ध पेयजल (मिनरल वाटर) के नाम पर बीमारियां बांटी जा रही है. बता दें कि मिनरल वाटर आपूर्ति को लेकर जिला मुख्यालय में करीब आधा दर्जन प्लांट संचालित है. जहां से पूरे क्षेत्र में मिनरल वाटर की केन सप्लाइ की जाती है. आरओ वाटर के नाम पर हर माह लाखों का व्यापार हो रहा है.

दुकान से लेकर आॅफिस, घरों व शादियों में आरओ वाटर केन आज कल फैशन बन गया है. फिर चाहे वो पानी शुद्ध है भी या नहीं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. लिहाजा इसके व्यवसाय से जुड़े लोगों की खूब चांदी कट रही है. मालूम हो कि इसकी शुद्धता को लेकर अधिकांश लोगों के पास कोई जानकारी नहीं है. जिम्मेदार विभाग से लेकर व्यवसायी व आम लोगों को यह मालूम ही नहीं कि उन्हें आरओ वाटर के नाम पर कौन सा पानी पिलाया जा रहा है और स्वास्थ्य के लिए यह कितना खतरनाक हो सकता है. गर्मी के दिनों में खास कर अप्रैल से जून माह तक ऐसे सप्लायरों की संख्या और भी बढ़ जाती है.

20-20 लीटर के डब्बे में पानी डाल कर प्रतिदिन सैकड़ों डिब्बे की सप्लाइ सिर्फ जिला मुख्यालय में हो रही है. जिला मुख्यालय में करीब आधा दर्जन वाटर प्लांट है जहां प्रति प्लांट एक दर्जन से अधिक कर्मचारियों के अलावा छोटे-छोटे वाहनों के सहारे घर-घर में सप्लाइ की जाती है. जानकारों के मुताबिक रोजाना हजारों लीटर तक पानी की सप्लाइ की जा रही है. बड़ी मात्रा में हो रहे इस पानी के इस्तेमाल के बावजूद विभाग द्वारा गुणवत्ता की जांच अब तक नहीं करायी गयी है. साथ ही जानकारी होने के बावजूद भी इस मामले के प्रति ना ही विभाग या नगर परिषद प्रशासन गंभीर है. लिहाजा यह कहना लाजिमी होगा कि यहां का पानी कितना शुद्ध है इसकी जानकारी खुद विभाग को भी नहीं है

कहते हैं अधिकारी
इस बाबत नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी सुशील कुमार मिश्रा ने बताया कि उद्योग विभाग द्वारा इसका लाइसेंस दिया जाता है. नगर कार्यालय द्वारा सिर्फ भूमिगत जल के दोहन का लाइसेंस दिया जाता है. सदर बाजार में अब तक सिर्फ एक प्लांट को लाइसेंस निर्गत किया गया है. शेष बिना अनुज्ञप्ति के ही संचालित है. सप्लाइ होने वाले जल के जांच की जिम्मेदारी पीएचइडी की है. क्योंकि नगर कार्यालय में तकनीकी संसाधन उपलब्ध नहीं है. जिस वजह से समय- समय पर जांच का कार्य कराने में परेशानी हो रही है.
मालूम हो कि जिले में जितने भी वाटर प्लांट स्थापित है. अधिकांश प्लांट लोकल ब्रांड हैं. ऐसे में इनके फिल्टर प्लांट में जरूरी विभागीय निर्देश के अनुपालन को लेकर भी लोगों द्वारा सवाल उठाया जा रहा है. लोगों का मानना है कि एक ओर जहां सभी आरओ प्लांट में पानी का सोर्स ट‍्यूबवेल ही है. ऐसी स्थिति में पूर्ण प्यूरी फायर पानी कैसे माना जा सकता है. वो भी तब जब प्रोपर रूप से किसी भी प्लांट की जांच नहीं की जाती हो. सबसे बड़ी बात यह है कि हर दिन हजारों लीटर आरओ वाटर के सप्लाई के बाद भी न तो इस दिशा में जांच की गयी है और न ही कोई कार्रवाई. स्वास्थ्य विभाग के जानकार कहते हैं कि आरओ प्लांट में पानी सही ढंग से प्युरीफाई नहीं किया गया तो इसका लोगों के सेहत पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है. बताया कि पेयजल में लापरवाही बरतने से लोग जल जनित रोग डायरिया व पीलिया से पीड़ित हो सकते हैं. जानकारी अनुसार एक फर्म रोजाना 20-20 लीटर के करीब सैकड़ों केन की सप्लाइ कर लेते हैं. आरओ संचालक द्वारा लोगों से 20 रुपये प्रति केन की कीमत वसूला जाता है. साथ ही डिमांड बढ़ने पर कीमतों में बढ़ोतरी भी कर दी जाती है.

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