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वर्षों से सजती है मजदूरों की मंडी

उदासीनता. कामयाबी की सीढ़ी नहीं चढ़ सकी मनरेगा तीन सौ रुपये दिहाड़ी पाने वाले मजदूरों को मनरेगा के बारे में कुछ भी पता नहीं है, जबकि सरकार द्वारा साल में सौ दिन की रोजगार की गारंटी के लिए इस योजना को कार्यान्वित किया गया. सुपौल : सरकार द्वारा मजदूरों को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार […]

उदासीनता. कामयाबी की सीढ़ी नहीं चढ़ सकी मनरेगा

तीन सौ रुपये दिहाड़ी पाने वाले मजदूरों को मनरेगा के बारे में कुछ भी पता नहीं है, जबकि सरकार द्वारा साल में सौ दिन की रोजगार की गारंटी के लिए इस योजना को कार्यान्वित किया गया.
सुपौल : सरकार द्वारा मजदूरों को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार उपलब्ध हो सके. इसे लेकर ग्रामीण विकास रोजगार गारंटी सहित अन्य योजनाओं का संचालन किया गया. लेकिन दैनिकी मजदूरी कर जीवन यापन कर रहे गरीब गुरवों को सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है. खास कर ग्रामीण क्षेत्रों के मजदूरों की हालात ऐसी बनी हुई है कि सुबह होते ही एक ही ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि आज के दिन आसानी के साथ उन्हें कोई काम पर ले जाये. वहीं मजदूरों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि होने के कारण मजदूरों ने एक टोली बना कर सार्वजनिक स्थल पर ससमय उपस्थित रहने का निर्णय लिया.
ताकि मजदूरों को आसानी से रोजगार मिल सके. जिस कारण मुख्यालय बाजार स्थित महावीर चौक पर वर्षों से मजदूरों की मंडी सजती रही है. चौक स्थित गोलंबर पर बैठे ये मजदूर प्रतिदिन तीन से चार घंटा रोजगार के लिए इंतजार करते रहते हैं. इन मजदूरों को देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि सुपौल की धरती पर काफी प्रयास के बाद भी मनरेगा कामयाबी की सीढ़ी नहीं चढ़ सकी है. हर योजना की तरह यह योजना भी भ्रष्टाचार की शिकार हो गयी. पूर्व के उदाहरण इसकी पुष्टि भी कर रही है.
जानकारी अनुसार आसपास क्षेत्र के सैकड़ों मजदूर इसी चौराहे पर आकर अपने काम की तलाश में रहते हैं. ये सिलसिला वर्षों से चली आ रही है. लेकिन मुश्किल से कुछ लोगों को काम मिल पाता है, अन्यथा अधिकांश मजदूरों को निराश होकर वापस घर लौटने पर विवश होना पड़ता है. सबसे बड़ी बात ये है कि सरकार की दूरगामी योजना में एक मनरेगा के बारे में अधिकांश मजदूरों को जानकारी भी नहीं है. यही कारण है कि महीने में मुश्किल से 03 व 04 दिन ही मजदूर देहाड़ी का काम कर किसी तरह अपना पेट पाल लेते हैं. मौके पर मौजूद मजदूर झखराही निवासी जयप्रकाश ने बताया कि वे हर रोज रोजगार पाने के लिए महावीर चौक पहुंचते हैं. लेकिन मुश्किल से महीना में 03-04 दिन ही उसे मजदूरी मिल पाती है. बताया कि ठेकेदार आते हैं, लेकिन काम की संख्या के अनुपात में मजदूरों की अधिक संख्या रहने के कारण सभी मजदूरों को रोजगार नहीं मिल पाता है. बसबिट्टी निवासी मुश्ताक, वार्ड नंबर 24 के कमलेश्वरी, मलिकाना के हासिम, झखराही के ब्रह्मदेव, नवटोल के अशोक, चैनसिंहपट्टी के मो कलीम सहित दर्जनों मजदूर अहले सुबह से 11 बजे पूर्वाह्न तक इसी गोलंबर पर बैठकर रोजगार की आस में रहते हैं. कई मजदूरों से जब जानकारी ली गयी कि वे मनरेगा कार्य में हिस्सा क्यों नहीं ले रहे. तो उन्होंने बताया कि मनरेगा के कार्य की जानकारी उन लोगों को नहीं है. बताया कि स्थानीय विभाग द्वारा इस दिशा में जागरुक किये जाने का समुचित प्रयास किया जाना चाहिए. ताकि गरीब गुरबों को मजदूरी का समुचित लाभ मिल सके.
दूसरे प्रदेशों में पलायन करने को विवश हैं मजदूर
खास बात यह है कि तीन सौ रूपया देहाड़ी पाने वाले इस मजदूर को मनरेगा के बारे में कुछ भी पता नहीं है. जबकि सरकार द्वारा साल में सौ दिन की रोजगार की गारंटी के लिए इस योजना को कार्यान्वित किया गया. जाहिर सी बात है कि जब जिला मुख्यालय के मजदूरों का ये हाल है, तो सुदूरवर्ती क्षेत्रों के मजदूरों की की स्थिति क्या होगी. दूसरे प्रदेशों में मजदूरों का पलायन ना हो और उसे घर के आस-पास ही रोजगार मिल सके. लिहाजा सरकार द्वारा मनरेगा के माध्यम से विभिन्न योजनाओं का संचालन किया जा रहा है. लेकिन नगर परिषद के इस चौराहे पर सजती मजदूर की मंडी सरकार की दूरगामी योजना में बरती जा रही उदासीनता की पोल खोल रही है. जाहिर है कि मजदूरों को मनरेगा के तहत काम मिलता तो इस मंडी में आकर प्रदर्शन की वस्तु नहीं बनते. अधिकांश मजदूरों की माने तो प्रतिदिन रोजगार नहीं मिलने से उसे रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो रही है. यहां यह भी बता दें कि रोजगार नहीं मिलने के कारण यहां के मजदूर अन्य प्रदेशों में पलायन कर जाते हैं. पहले स्थानीय रेलवे स्टेशन से पलायन एक्सप्रेस खुलती थी. लेकिन अब सहरसा से खुलती है. कारण अमान परिवर्तन को लेकर कार्य किया जा रहा है.
सहरसा से खुलती है पलायन एक्सप्रेस
मजदूरों को मनरेगा के बारे में नहीं दी जाती है जानकारी
ऐसे मजदूर या तो मनरेगा पीओ कार्यालय या फिर उप विकास आयुक्त के कार्यालय में रोजगार पाने के लिए आवेदन दें. संबंधित मजदूर को एक पखवाड़े के भीतर निश्चित रूप से रोजगार मुहैया करा दिया जायेगा.
अखिलेश कुमार झा, उप विकास आयुक्त, सुपौल

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