सीवान : अब जमालहाता गांव की गलियों में एक बार फिर हस्थकरघा की खटपट की आवाज सुनने को मिलेगी. मृत हो चुके इस हस्त उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने महत्वपूर्ण पहल की है.
यहां के कारीगरों के हाथों बुनी गयीं चादरों का इस्तेमाल सदर अस्पताल सहित अन्य सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर होगा. हुसैनगंज प्रखंड के जमालहाता गांव की कभी पहचान राज्य में प्रमुख हस्तकरघा केंद्र के रूप में रही है. यहां तैयार की गयीं चादरों समेत अन्य सूती कपड़ों की सप्लाइ राज्य के विभिन्न हिस्सों में होती थी. बाद के दिनों में इन कपड़ों की मांग कम होने तथा बड़े कपड़े मिलों की प्रतिस्पर्द्धा के चलते ये कारोबार ठप होते गये.
लिहाजा उद्यम के रूप में राज्य में बनी पहचान समय के साथ ही मिटती चली गयी. इसके बाद से इन कारीगरों के रोटी के लाले रहे हैं. अधिकतर कारीगर रोजगार की तलाश में बड़े शहरों की ओर पलायन के लिए मजबूर हुए. सरकार का उनके उद्योगों को पुनर्जीवित करने की नयी योजना संबल का काम करेगी. अस्पतालों के बेड पर बिछने वाली सतरंगी चादरों की सप्लाइ बिहार राज्य हस्तकरघा बुनकर सहयोग संघ लि. करेगा. इसके लिए राज्य स्वास्थ्य समिति के साथ बुनकर सहयोग समिति का रेट कांट्रैक्ट हुआ है. सरकार ने यह पहल हस्तकरघा बुनकर सहयोग समिति को जीवंत रखने के लिए की है. सभी स्वास्थ्य संस्थानों को सतरंगी चादरों की खरीद किसी अन्य स्रोत से नहीं करने की हिदायत दी गयी है. बिहार राज्य हस्तकरघा बुनकर सहयोग संघ आपूर्ति के लिए जल्द ही करार करेगा. इससे अब बुनकरों को रोजगार मिल सकेगा.