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गम से उबर नहीं पा रहे लोग, हर तरफ खामोशी, गलियां पड़ीं सूनी

सीवान : कल तक यहां चीख-पुकार मची थी. अब यहां खामोशी है. गलियां सूनी पड़ी हैं. दरवाजे पर चंद लोग नजर आ रहे हैं. हर किसी की जुबान पर ऐसा लगता है कि हालात ने ताला जड़ दिया है. इनकी जुबान भले ही कुछ नहीं कह रही हो, पर आंखें दु:खों के समंदर में डूब […]

सीवान : कल तक यहां चीख-पुकार मची थी. अब यहां खामोशी है. गलियां सूनी पड़ी हैं. दरवाजे पर चंद लोग नजर आ रहे हैं. हर किसी की जुबान पर ऐसा लगता है कि हालात ने ताला जड़ दिया है. इनकी जुबान भले ही कुछ नहीं कह रही हो, पर आंखें दु:खों के समंदर में डूब जाने का एहसास जरूर करा रही हैं. बुधवार को पत्रकार स्व राजदेव रंजन के पचरुखी प्रखंड के पैतृक गांव हकाम की यह तसवीर रही. सीवान नगर से तकरीबन तीन किलोमीटर दूर सीवान-लकड़ी दरगाह मार्ग से सटे हकाम गांव कभी चर्चा में नहीं रहनेवाला अब सुर्खियों में है. घटना के पांच दिन गुजरने के

बाद अब यहां कोई चीख-पुकार सुनायी नहीं पड़ती. यहां अजब-सा सन्नाटा जरूर है. दरवाजे पर राजदेव के वृद्ध पिता राधाकृष्ण सिर पर हाथ रखे हुए हैं. उनकी कुरसी की अगल-बगल दो बेटे कालीचरण व गौतम बैठे हैं. बड़े भाई कालीचरण कहते हैं कि राजदेव की किसी से कोई दुश्मनी नहीं रही. निष्पक्ष खबर लिखने की सजा दरिंदों ने जान लेकर दी. इसके खिलाफ पुलिस ने भी अब तक जांच में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी है. इसके साथ ही यह भी कहते हैं कि सीबीआइ की जांच में वर्षों लग जाते हैं. केंद्र व राज्य सरकारों से अपील है कि जांच शुरू कर जल्द-से-जल्द रिपोर्ट दें.

सरकार की तरफ से आर्थिक सहायता नहीं मिलने का परिजनों को है गम
गुमनाम 36 कॉल : अफवाह या हकीकत !
पत्रकार राजदेव रंजन हत्याकांड की जांच में जुटी पुलिस के लिए संदिग्धों के कॉल डिटेल व घटनास्थल के करीब मौजूद सीसीटीवी के फुटेज ही मामले के तह तक पहुंचने का प्रमुख जरिया बन गये हैं. ऐसे में घटना के दिन एक ही व्यक्ति का आया 36 कॉल पुलिस जांच का अहम हिस्सा है.

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