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बांसूरी की सुरीली तान छेड़नेवालों की जिंदगी बेसुरी

बड़हरिया(सीवान) : बांसूरी की मधुर तान से लोगों के मन-मिजाज को संगीतमय व सरस बनानेवाले मिसकारों की जिंदगी बेसुरी बन गयी है. मिसकार जाति माॅरीशस, सुरीनाम, गुयाना आदि देशों में अपने हाथों से निर्मित बांसूरी बेचने के लिए जानी जाती है. महानगरों में मधुर तान छेड़ कर दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करने वाले इन […]

बड़हरिया(सीवान) : बांसूरी की मधुर तान से लोगों के मन-मिजाज को संगीतमय व सरस बनानेवाले मिसकारों की जिंदगी बेसुरी बन गयी है. मिसकार जाति माॅरीशस, सुरीनाम, गुयाना आदि देशों में अपने हाथों से निर्मित बांसूरी बेचने के लिए जानी जाती है. महानगरों में मधुर तान छेड़ कर दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करने वाले इन मिसकारों की जिंदगी बेगानी है.

असमिण बांस व नरकट से बनने वाली इनकी बांसूरी देश के विभिन्न हिस्सों सहित गोवा, मुंबई के जूहू चौपाटी, कर्नाटक के इबली, चेन्नई, नासिक, इलाहाबाद, झांसी ग्वालियर आदि में बेची जाती है. दूसरी तरफ इनकी बांसूरी पर्यटनस्थलों पर आने वाले पर्यटकों के सहारे विदेशों में भी अपनी मधुर तान छेड़ने में कामयाब हैं.

शासन-प्रशासन नहीं देता ध्यानभले ही मिसकारों की कला की प्रदेश सरकार व जिला प्रशासन अनदेखी कर दे. लेकिन, बांसूरी निर्माण में महारत हासिल इन कलाकारों के कद्र दान भारत के पर्यटनस्थलों व महानगरों के साथ कई देशों में हैं. प्रखंड के तेतहली तख्त व तेतहली दक्षिण टोला में मिसकार जाति के लोगों की खासी आबादी है. जो देश के विभिन्न हिस्सों में बांसूरी बेच कर अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. ये मिसकार भूमिहीन व निरक्षर हैं. लेकिन,

बांसूरी बनाने व उससे सुरीली आवाज निकालने में इन्हें महारत हासिल है. तभी तो इनकी बांसूरी देश के कई हिस्सों में बेची जाती है. और ये बांसुरी इन्हें रोजी रोटी दिलाने में सक्षम साबित होती है. बांसूरी से तरह-तरह की धुन निकालने में माहिर ये मिसकार सबको लुभाने में सफल हैं. चाहे फिल्मी धुने हो या शास्त्रीय संगीत या लोक गीत का धुन हो तमाम विद्याओं में निपुणता हासिल किये ये कलाकार लोगों का ध्यान बरबस अपनी ओर खींच लेते है.

इन कलाकारों की स्वनिर्मित बांसुरियों से निकलने वाली सुरीली धुनों व तानों को देसी- विदेशी पर्यटन इस कदर प्रभावित होते हैं कि तानों से वशीभूत पर्यटक बांसुरी को मनचाही कीमत देने को विवश होते है. तेतहली तख्त के मिसकारों की हालत दयनीयकर्णप्रिय तानों से अभिभूत करने वाले तेतहली तख्त के मिसकारों की स्थिति हर स्तर पर दयनीय दिखती है. सरकारें बनती रही और कई योजनाएं बनी लेकिन तमाम योजनाएं इनकी जिंदगी को रोशन नहीं कर पायी.

नतीजतन आज भी यह समाज मुख्य धारा से नहीं जुड़ पाया है. यहां के अरमान, नैमुदीन, ईरफान, नुर महमद, अलहम, दिलावर आदि को न केवल बांसुरी बनाने में हीं नहीं बल्कि उसके वादन में भी महारत हासिल है. लेकिन इनकी मुल समस्या पूंजी है. जिसके लिए आज भी कमोबेश महाजनों पर ही निर्भर है. जिससे वे असमिया बांस, नरकट आदि खरीदते है.

लेकिन इनकी कमाई का बड़ा हिस्सा बयाज में हीं चला जाता है. सरकारी स्तर पर अगर इनके लिए अनुदान व सहायता की व्यवस्था की जाये तो इनकी जिंदगी फिर रौनक हो सकती है.

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