बरबाद हो गये अाजादी के प्रतीक जिले के खादी उद्योगचुनावी मुद्दाटूट गया बापू की खादी का सपना देशरत्न के गृह जिले मेंभारत सरकार की योजना थी इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने कीकरोड़ों का व्यवसाय करनेवाला जिला खादी ग्रामोद्योग गया घाटे मेंबेरोजगार हो गये चरखा चलानेवाले करीब 20 हजार कतिनलूट-खसोट के केंद्र बने राजेंद्र खादी ग्रामोद्योग संघ के विक्रय केंद्रगबन के करीब आधा दर्जन मामले कोर्ट में हैं लंबितखादी व ग्रामोद्योग आयोग ने डीएम को लिखा परिसर अतिक्रमण मुक्त कराने कोफोटो: 31- श्रीनगर स्थित राजेंद्र खादी ग्रामोद्योग संघसीवान . महात्मा गांधी ने खादी को जिस तरह स्वतंत्रता आंदोलन में हथियार के रूप में इस्तेमाल किया था. वही खादी आम लोगों की जिंदगी से काफी दूर हो गयी.बापू का खादी का सपना देशरत्न के गृह जिले में टूट गया. इसके लिए जिले के जनप्रतिनिधयों के साथ सरकार भी जिम्मेवार है. ऐसी बात नहीं है कि आज के समय में खादी वस्त्रों की मांग नहीं है.मांग है लेकिन आज के समय में न तो खादी वस्त्रों का उत्पादन हो रहा है और न इस उद्योग को बचाने के लिए सरकार ने कोई नीति बनायी है.नयी दिल्ली केंद्रीय विद्यालय के शिक्षक राम नक्षत्र यादव जीरादेई प्रखंड के रुइरा बंगरा गांव के रहने वाले हैं तथा छुट्टी में घर आये हैं. मंगलवार को राजेंद्र खादी ग्रामोद्योग के प्रधान विक्रय केंद्र में खादी के कपड़े खरीदने पहुंचे. स्टोर के सभी रेक को खाली देख बड़े अफसोस के साथ कहा कि यहां तो कुछ नहीं है. सन 1973 में सीवान खादी ग्रामोद्योग संघ जब अपनी मातृ संस्था खादी ग्रामोद्योग संघ मुज्जफरपुर से अलग हुआ, तो इसका नामकरण देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद के नाम से राजेंद्र ग्रामोद्योग संघ किया गया.उस समय इसका कारोबार करीब एक करोड़ से भी अधिक वार्षिक था. जिले के करीब 20 हजार कतिन चरखे चला कर अपने परिवारों को चलाते थे. लेकिन मातृ संस्था से अलग होने के साथ-साथ राजेंद्र खादी ग्रामोद्योग संघ की हालत दिन-पर-दिन खराब होती चली गयी.जब 1925 में देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद बिहार चरखा संघ के अध्यक्ष बने, तो पूरे राज्य सहित सीवान जिले में खादी का उत्पादन में काफी बढ़ोतरी हुई. लेकिन मातृ संस्था से अलग होने के बाद गलत प्रबंधन व लूट-खसोट की नीति ने राजेंद्र खादी ग्रामोद्योग संघ सीवान को दिवालिया बनने के किनारे पर लाकर छोड़ दिया.उत्पादन बंद होने से खराब हो गयी लाखों की मशीनरी : राजेंद्र खादी ग्रामोद्योग संघ सीवान में करीब दो दशक से अधिक समय से सूती कपड़ों, बिस्कुट तथा सरसों तेल का उत्पादन ठप है. इसके कारण उत्पादन के लिए लगी लाखों की मशीनरी बरबाद हो गयी. बुनकरों द्वारा जब चादर,धोती,लुंगी तथा गमछा बना कर दिया जाता था तो यहां पर उनकी धुलाई कर रंगाई की जाती थी.रंगाई व धुलाई का काम वर्षो से नहीं होने से बायलर खराब हो गया है. धोबी घाट जहां हमेशा कपड़ों की धुलाई के लिए मजदूर लगे रहते थे, सुनसान पड़ा है.एक समय था कि जिले में पांच दर्जन से भी अधिक बुनकर थे, जो कपास से कतिन द्वारा काते गए सूत से सूती कपड़ों की बुनाई करते थे. जिले में मात्र गोरेयाकोठी के लधी,महाराजगंज तथा मैरवा में ही कुछ मामली बुनकर बचे हुए हैं. इनको करीब दो सो कतिन सूत कात कर देते हैं. व्यवसाय ठप होने से कतिन की संख्या कम हो गयी. जिला खादी भंडार,मैरवा खादी भंडार तथा महाराजगंज खादी भंडार में लाखों के कपास सूत कातने के इंतजार में बरबाद हो रहे हैं. मैरवा खादी ग्रामोद्योग संघ जहां बिस्कुट का उत्पादन होता था वह भी गलत प्रबंधन के कारण बंद हो गया.56 बिक्रय केंद्रों की जगह मात्र छह हैं चालू हालत में : अपने सुनहले समय में राजेंद्र खादी ग्रामोद्योग संघ में सूती कपडे़, बिस्कुट तथा सरसों तेल का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता था. जिले में इसके करीब 56 बिक्रय केंद्र थे. इसको चलाने के लिए करीब 172 कर्मचारी लगाये गये थे. आज की तारीख में राजेंद्र खादी ग्रामोद्योग संघ गेट, सब्जी बाजार, कइलगढ़, महाराजगंज, दरौली तथा मैरवा बिक्रय केंद्र ही जिला खादी ग्रामोद्योग संघ के कब्जे में हैं. करीब आधा दर्जन से अधिक दुकानें विवाद में हैं.उसका नियंत्रण जिला खादी ग्रमोद्योग संघ के पास नहीं हैं. इसके प्राय: सभी कर्मचारी डिसमिस या सेवानिवृत्त हो चुके हैं, जिनके पास खादी भंडार की लाखों की संपत्ति कब्जे में हैं. जिला खादी ग्रामोद्योग संघ ने इन सभी दुकानों पर कोर्ट में गबन का मुकदमा किया है.राजेंद्र खादी ग्रामोद्योग संघ के घाटे में जाने का मुख्य कारण इन आधा दर्जन दुकानों में करीब तीस लाख से भी अधिक का गोलमाल बताया जाता है.खादी ग्रामोद्योग संघ के आधे हिस्सों पर लोगों का कब्जा : राजेंद्र खादी ग्रामोद्योग संघ करीब तीन एकड़ जमीन में शहर के श्रीनगर मोहल्ले में स्थित है.संघ के गलत प्रबंधन व अधिकारियों व कर्मचारियों के आपसी लफड़ों के कारण करीब 50 प्रतिशत भवनों पर दूसरों लोगों का कब्जा है.खादी और ग्रामोद्योग संघ के कार्यकारी अधिकारी ने 2013 में डीएम को पत्र लिख कर राजेंद्र खादी ग्रामोद्योग संघ के परिसर को खाली कराने का अनुरोध किया था.पूरा खादी ग्रामोद्योग संघ देखने से एक आवासीय कॉलोनी जैसा दिखता है. खादी ग्रामोद्योग संघ के भवनों को लोगों ने कब्जा जमाया ही है साथ में पानी,बिजली आदि जैसी सुविधा भी मुफ्त में उड़ा रहे हैं.कुछ लोगों ने तो परिसर में पालतु पशुओं को भी पाल रखा है.खादी का उत्पादन तो होता नहीं है. इसलिए इसके अधिकारी खादी ग्रामोद्योग संघ के कुछ हिस्सों को भाड़े पर दे रखा है.अंदर के भवन में एक प्राइवेट कंपनी ने कई वर्षों से कब्जा जमा बंद कर रखा है. करीब चार लाख से अधिक का किराया इस पर बकाया है.अध्यक्ष व सचिव सहित करीब सात कर्मचारी अभी भी नियमित रूप में हैं, जिनको वेतन मिलता है.आगे से लेकर पीछे तक पूरे भवन का मरम्मत कार्य चल रहा है. लगता है कि केंद्र से खादी का कोई अधिकारी जांच करने वाला है. इसके अधिकारियों को उम्मीद है कि उनके इस प्रयास से राजेंद्र खादी ग्रामोद्योग संघ में जान फूंकने के लिए केंद्र सरकार कुछ अनुदान दे दे.क्या कहते हैं अधिकारीराजेंद्र खादी भंडार में नयी जान फूंकने के प्रयास हो रहे हैं.बहुत शीघ्र 15 चरखों से प्रधान कार्यालय व महाराजगंज के बलिया गांव में सूत की कताई की जायेगी. करीब आधा दर्जन बिक्रय केंद्रों के कर्मचारियों द्वारा गबन किये जाने के कारण डिसमिस कर दिया गया है. उनके द्वारा लेखा-जोखा नहीं दिये जाने के कारण उनके विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया गया है.खादी भंडार के करीब 50 प्रतिशत भवनों पर लोगों का कब्जा है. इस सबंध में डीएम व खादी के डायरेक्टर को कई बार पत्र लिखा जा चुका है.मो शर्फुद्दीन, सचिव, राजेंद्र खादी ग्रामोद्योग संघ
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बरबाद हो गये आजादी के प्रतीक जिले के खादी उद्योग
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