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समय पर आये कर्मी, पर नहीं बदली लचर व्यवस्था

सीवान : शुक्रवार को सदर अस्पताल में एक परिवर्तन देखने को मिला कि सभी डॉक्टर व कर्मचारी अपनी ड्यूटी पर नजर आये. लेकिन सदर अस्पताल की लचर स्वास्थ्य सेवा में कोई विशेष बदलाव नहीं दिखा. प्रतिदिन की तरह दवा काउंटरों पर अव्यवस्था बनी रही. कौन दवा स्टॉक में है कौन नहीं, इस बात की जानकारी […]

सीवान : शुक्रवार को सदर अस्पताल में एक परिवर्तन देखने को मिला कि सभी डॉक्टर व कर्मचारी अपनी ड्यूटी पर नजर आये.
लेकिन सदर अस्पताल की लचर स्वास्थ्य सेवा में कोई विशेष बदलाव नहीं दिखा. प्रतिदिन की तरह दवा काउंटरों पर अव्यवस्था बनी रही. कौन दवा स्टॉक में है कौन नहीं, इस बात की जानकारी काउंटर में तैनात कर्मचारी को नहीं थी. नतीजतन काउंटर पर दवा उपलब्ध होने के बाद भी मरीजों को दवा नहीं मिल रही थी.
समय से डॉक्टर के ओपीडी में आ जाने से लोगों ने अपना इलाज कराया.करीब चार महीनों से ओपीडी सेवा बाधित होने के कारण इसका असर इंडोर में आने वाले मरीजों पर पड़ा है. पुरुष वार्ड में जहां मरीजों की संख्या अधिक रहती थी, आज बिल्कुल ही कम दिखी.महिला वार्ड की तो बात ही मत पूछिए.
यहां पर सिर्फ ओपीडी के समय में ही महिला डॉक्टर उपलब्ध रहती हैं. सदर अस्पताल के महिला वार्ड में डॉक्टरों के रहने का अपना नियम है.यहां पर आपात कक्ष में महिला डॉक्टर ऑन काल आने की व्यवस्था है.
लेकिन व्यावहारिक दृष्टि में ऐसा नहीं होता. नर्स की बात तो दूर उपाधीक्षक द्वारा फोन करने पर कोई महिला डॉक्टर मरीज को देखने के लिए नहीं आती हैं. सदर अस्पताल में छह महिला डॉक्टर पदस्थापित हैं, जिनमें दो लंबी छुट्टी पर हैं.
चार महिला डॉक्टरों के रहने के बाद भी पिछले चार महीने से सदर अस्पताल में सिजेरियन बंद है. जब राष्ट्रीय कार्यक्रम परिवार नियोजन के तहत बंध्याकरण करने की बात आती है, तो पुरुष डॉक्टर महिलाओं का बंध्याकरण करते हैं.
सदर अस्पताल में फिलहाल जो अव्यवस्था है, उसके लिए विभाग के अधिकारी ही पूर्णतया दोषी हैं. ड्यूटी में लापरवाही करने वाले डॉक्टरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती है.
महिला डॉक्टर कौशर आलिम गनी, जो सदर अस्पताल में पदस्थापित थीं, उन्हें डीआरडी ने पूरे सारण प्रमंडल में अधिक ऑपरेशन करने पर पुरस्कृत किया था, लेकिन कुछ ही दिनों में सिविल सजर्न डॉ अनिल कुमार चौधरी ने उन्हें वापस मैरवा रेफरल अस्पताल भेज दिया, जहां ऑपरेशन होता ही नहीं है. बाद में एक जुलाई को तो विभाग ने ही सभी कर्मचारियों की प्रतिनियुक्ति तोड़ दी.
कहने का तात्पर्य यह है कि जो डॉक्टर व कर्मचारी काम करते हैं, उन्हें जान-बूझ कर परेशान किया जाता है. वहीं जो काम नहीं करता है, उसे दंडित भी नहीं किया जाता है.

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