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‘मिलेंगे बुद्धकालीन अवशेष’

इतिहासकारों का कहा, होने चाहिए चार-पांच परीक्षण उत्खनन पपौर में उत्खनन के दौरान मिल रहे प्रचुर मात्र में अवशेष सीवान : जिले के पचरुखी प्रखंड के पपौर गांव के टीले की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा तीसरे दिन की खुदाई में काफी मात्र में मिट्टी के बरतनों के टुकड़ों के अलावा मिट्टी के अन्य बरतनभी […]

इतिहासकारों का कहा, होने चाहिए चार-पांच परीक्षण उत्खनन
पपौर में उत्खनन के दौरान मिल रहे प्रचुर मात्र में अवशेष
सीवान : जिले के पचरुखी प्रखंड के पपौर गांव के टीले की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा तीसरे दिन की खुदाई में काफी मात्र में मिट्टी के बरतनों के टुकड़ों के अलावा मिट्टी के अन्य बरतनभी मिले हैं. अभी करीब दो फुट ही उत्खनन हुआ है. इसमें पाल कालीन व गुप्तकालीन सभ्यता के ही अवशेष मिले हैं.
लेकिन जिस तरह खुदाई में अवशेष मिल रहे हैं, उत्खनन करने वाली एएसआइ टीम के हौसले बुलंद हैं. खुदाई 15 फुट नीचे तक होनी है. इसमें करीब एक माह से अधिक समय लगने की उम्मीद है. मगर एएसआइ को इस कार्य के लिए 30 सितंबर तक का ही समय मिला है.
गौरवशाली व समृद्ध इतिहास रहा है सीवान का : प्राचीन काल से ही इस भूमि की महत्ता सर्वविदित है.अतीत में यह कोशल महाजनपद के अंतर्गत था.उत्तर वैदिक काल से लेकर आज तक इसका महत्वपूर्ण क्रमबद्ध इतिहास रहा है.किंतु दुर्भाग्य का विषय है कि इस पर बहुत ही कम शोध हुए हैं. सीवान की भूमि ऐतिहासिक धरोहरों एवं पुरातात्विक संपदाओं से अटी-पटी है. यह उसी कोशल महाजनपद का एक भाग है, जो इक्ष्वाकु, विकुक्षि,मान्धाता, त्रिशंकु, हरिश्चचंद्र, सागर,भागीरथ की भूमि रही है.
वर्तमान पपौर ही प्राचीन पावा है : डॉ जगदीश्वर पांडेय
देश के जाने-माने इतिहासकार डॉ जगदीश्वर पांडेय ने भगवान बुद्ध के यात्रा पथ के खोज के दौरान सीवान व पपौर गांव पर 1991 में शोध किया था. श्री पांडेय पपौर का उत्खनन होने पर काफी प्रसन्न हुए.उन्होंने बताया कि जापान से आये कुछ शोधकर्ताओं के साथ भगवान बुद्ध के यात्रा पथ की खोज करने का मौका मिला. उन्होंने बताया कि मैंने बिहार व यूपी के कई स्थानों का भ्रमण किया, जहां बुद्ध गये थे. लेकिन एक-दो स्थानों को छोड़ कर कहीं भी ईसा पूर्व छठी शताब्दी के अवशेष नहीं मिले. श्री पांडेय ने दावा किया कि सीवान जिले का पपौर ही प्राचीन पावा है.
जिस टीले की खुदाई हो रही है, उसके आसपास चार-पांच और परीक्षण उत्खनन करने की आवश्यकता है.उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के कुशी नगर को इतिहासकार भगवान बुद्ध का निर्वाण स्थल मानते हैं. लेकिन वहां पर बुद्ध काल के न तो कोई स्तूप मिले है और न अवशेष. उन्होंने दावा किया कि भगवान बुद्ध की मूर्ति भी ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी की है. एक हजार साल में बहुत कुछ बदल जाता है और बहुत स्थान परिवर्तित हो जाते हैं.
बुद्धकाल के अवशेष मिलने की है उम्मीद : जेके तिवारी
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, पटना अंचल की उत्खनन शाखा के सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद् जेके तिवारी ने कहा कि उन्हें उत्खनन में बुद्ध कालीन अवशेष मिलने की उम्मीद है. उन्होंने बताया कि मैंने गांव का भ्रमण कर देखा तो ईसा पूर्व छठी शताब्दी काल के मिट्टी के रंगीन बरतनों के टुकड़े बिखरे पड़े हैं.
उन्होंने दावा किया कि आज के समय में इस प्रकार के रंगीन मिट्टी के बर्तन नहीं बनते. उन्होंने बताया कि उत्खनन में पहले पाल कालीन उसके बाद गुप्त कालीन अवशेष मिल रहे हैं. जैसे-जैसे हम नीचे की ओर जायेंगे बुद्धकालीन ईसापूर्व छठी शताब्दी के अवशेष मिलने शुरू हो जायेंगे.

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