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आजादी के 68 साल बाद भी नहीं हुई बिजली नसीब

बड़हरिया : आजादी के करीब सात दशक गुजरने को हैं, लेकिन बड़हरिया प्रखंड व सीवान विधान सभा क्षेत्र के दर्जन भर गांव ऐसे हैं, जहां लोग आज भी लालटेन युग में जीने को मजबूर हैं. केंद्र व राज्य सरकार की तमाम घोषणाएं प्रखंड के बड़का रोहड़ा टोला, छोटका रोहड़ा, महुआ टोला, त्रिलोकी हाता सहित कई […]

बड़हरिया : आजादी के करीब सात दशक गुजरने को हैं, लेकिन बड़हरिया प्रखंड व सीवान विधान सभा क्षेत्र के दर्जन भर गांव ऐसे हैं, जहां लोग आज भी लालटेन युग में जीने को मजबूर हैं. केंद्र व राज्य सरकार की तमाम घोषणाएं प्रखंड के बड़का रोहड़ा टोला, छोटका रोहड़ा, महुआ टोला, त्रिलोकी हाता सहित कई गांवों के लिए बेमानी साबित हो रही हैं.
इन गांवों के कई बुजुर्ग बिजली की रोशनी का सपना लिए दुनिया से चले गये, लेकिन 21 वीं सदी के भारत के इन गांवों में बिजली नहीं पहुंच सकी है. अलबत्ता चुनाव आने पर सभी दलों के नेता इन गांवों के लोगों को बिजली का सपना दिखा जाते हैं, लेकिन ये उम्मीद भी चुनाव बीतने के साथ टूट जाती है. ऐसा नहीं कि इन गांवों के लोगों ने अपने गांवों को रोशन करने की दिशा में कोई काम नहीं किया है.
मनवरतर निवासी सुभाष सिंह व ललन साह बताते हैं कि सीवान स्थित विद्युत विभाग के प्रमंडलीय कार्यालय का वे दर्जनों बार चक्कर लगा चुके हैं व नेताओं की भी परिक्रमा की है, लेकिन सब बेकार हो गया. कई बार विद्युत विभाग के कर्मचारियों के द्वारा सर्वे भी किया गया. सर्वे के बाद कोई ठोस कदम इस दिशा में नहीं उठाया गया. इस क्षेत्र में ट्रांसफॉर्मर की कौन कहे, यहां न तो पोल गाड़े गया और न ही तार लगने की उम्मीद है. महुआ टोला के बहारन शर्मा कहते हैं कि राज्य सरकार ने यह घोषणा की थी कि बिजली नहीं तो वोट नहीं, तो उम्मीद बलवती हुई थी.
वहीं छोटका रोहड़ा के कलाम मियां का कहना है कि राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना का असर भी यहां नहीं दिख पाया है व हम आज भी अंधेरे के हवाले हैं. सुभाष सिंह व साधु सिंह का कहना है कि बिजली आ जाती, तो बच्चों को पढ़ने में सहूलियत होती.
रघुनाथ राम, मैनेजर साह, हरे राम शर्मा आदि कहते हैं कि चुनावों के वक्त ही बिजली की चर्चा में होती है. उसके बाद नेताओं के आश्वासन ही रह जाते हैं. बहरहाल आजादी के 68 साल बाद भी इन गांवों को बिजली की रोशनी नसीब नहीं हो सकी है.

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