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पुलिस की सुस्ती से बढ़ रहे अपराध
जिले में विगत पांच माह में ही करीब चार दर्जन हत्या की घटनाएं हो चुकी हैं और साथ ही बड़े पैमाने पर आपराधिक घटनाओं में भी वृद्धि हुई है, जिसके कारण लोग भय और दहशत में जीने को मजबूर हैं. बड़े पैमाने पर विवाद एवं हत्या का एक बड़ा कारण जमीन विवाद भी रहा है.इसमें […]
जिले में विगत पांच माह में ही करीब चार दर्जन हत्या की घटनाएं हो चुकी हैं और साथ ही बड़े पैमाने पर आपराधिक घटनाओं में भी वृद्धि हुई है, जिसके कारण लोग भय और दहशत में जीने को मजबूर हैं.
बड़े पैमाने पर विवाद एवं हत्या का एक बड़ा कारण जमीन विवाद भी रहा है.इसमें सुस्त पुलिसिया कार्रवाई भी एक बड़ा कारण रहा है. डीजीपी के एक आदेश का बहाना बना कर पुलिस जमीन संबंधी मामले से दूरी बताती है, जबकि क्षेत्र में शांति व्यवस्था बनाये रखना संबंधित थानाध्यक्ष की जिम्मेवारी होती है.
सीवान : जर, जोरू और जमीन शुरू से ही विवाद व हिंसा का कारण रहे हैं. वर्तमान में भी ये कहावत समय के साथ चरितार्थ है. मामूली विवाद में किसी की जान ले लेना आम बात हो गयी है. जिले में हाल के दिनों में हुई हत्याओं का एक बड़ा कारण जमीन व संपत्ति का विवाद ही रहा है.
शहर में भी अब तक हत्या की जो वारदातें सामने आयी हैं, उनमें प्रोपर्टी का विवाद ही सामने आया है. भाजपा नेता राजाराम साह व सुभाष चौहान पर हमला भी इसी विवाद से जुड़ा है. सोमवार को बड़हरिया के मलिक टोला में एक 65 वर्षीय वृद्ध की गोली मार कर हत्या उसके ही पट्टीदार ने कर दी. वहीं करीब एक सप्ताह पूर्व एमएच नगर के भीखपुर भगवानपुर में सगे चचेरे भाई ने जमीन विवाद में गोली मार कर हत्या कर दी थी.
बसंतपुर के लकड़ी पड़ौली में भाई और भतीजों ने गला रेत कर वृद्ध की हत्या कर दी थी. इन घटनाओं से स्पष्ट हो रहा है कि हत्या का एक बड़ा कारण जमीन विवाद उभर कर सामने आ रहा है. इन घटनाओं से पुलिस की विफलता भी सामने आ रही है.
चौकीदार परेड बनी औपचारिकता: ग्रामीण स्तर पर चौकीदारों की तैनाती का एक मुख्य उद्देश्य यह भी है कि गांवों की स्थिति व दैनिक रिपोर्ट से वे संबंधित थाने को अवगत करायेंगे.
ग्रामीण क्षेत्रों के थाने में प्रति दिन चौकीदारों की परेड का प्रावधान है, जिसमें चौकीदार से गांव की स्थिति, जमीन विवाद व सांप्रदायिक विवाद व उनको लेकर होनेवाली घटनाओं से अवगत होना है. आम तौर पर अब इसका पालन साधारणत: नहीं किया जाता और इसे औपचारिकता मात्र माना जाता है.
थानों की उदासीनता एक बड़ा कारण : बिहार पुलिस मुख्यालय के एक आदेशानुसार पुलिस को जमीन संबंधी विवाद से अलग रखने की बात है, लेकिन इस आदेश का बहाना बना कर थानाध्यक्ष इससे अलग होना चाह रहे हैं. जबकि आदेश का शाब्दिक भावार्थ यह है कि पुलिस जमीन संबंधी कागजात व उसका टाइटिल तय नहीं करेगी. इसका यह अर्थ नहीं है कि जमीन विवाद के लेकर संभावित घटना को होने का इंतजार करेगी. जबकि पुराने जमीन विवाद को लेकर घटना की आशंका हो, तो पुलिस को तत्काल 107 व 144 की कार्रवाई करनी है.
परंतु साधारणत: इसमें लापरवाही बरती जा रही है. थानाध्यक्ष एसडीएम के यहां इसकी संस्तुति कर अपने कर्तव्य की पूर्ति समझ लेते हैं. एसडीओ के यहां विलंब होने की स्थिति में मामला बिगड़ जाता है. नियमानुसार थाने को 107 व 144 पर तत्काल कार्रवाई कर एसडीएम के यहां से नोटिस करा कर नामित अभियुक्त को उसके हाथ में ही देने का प्रावधान है. तभी यह कार्रवाई पूर्ण मानी जाती है. परंतु साधारणत: इसका पालन नहीं किया जाता है.
लोगों का यह भी आरोप है कि शहरी क्षेत्र के कुछ थानों की जमीन के बिचौलियों से साठ-गांठ है और पुलिस उनके प्रति नरमी बरत रही है. ऐसा नहीं है कि थाना जमीन विवाद को रोकने का बिल्कुल प्रयास नहीं कर रहे हैं.
परंतु आवश्यकता इस बात कि है कि इसको रोकने के लिए कड़ाई से प्रबंध किये जाएं. इसके साथ ही जमीन विवाद को लेकर हत्या या घटना के बाद अगर पूर्व में पुलिस द्वारा की गयी कार्रवाई की समीक्षा ही कर दी जाये, तो बहुत से मामलों में स्थिति स्पष्ट हो जायेगी कि संबंधित थानों का रवैया क्या रहा है. अगर पुराने विवाद में कार्रवाई करने में विलंब हुआ है, तो इसकी जवाबदेही से थानाध्यक्ष नहीं बच सकते हैं.
क्या कहते हैं एसपी
किसी भी घटना के बाद ही पुलिस कार्रवाई करती है. जिले में जमीन विवाद हत्या एवं अन्य घटनाओं का एक बड़ा कारण उभर कर सामने आया है. न्यायालय में मामला लंबित होने से कई मामलों में पुलिस के हाथ भी बंधे रहते हैं. धारा 107 व 144 की कार्रवाई पुलिस करती है.
साथ ही इस संबंध में सभी थानों को निर्देश जारी किये जायेंगे व मामलों की समीक्षा के दौरान की गयी कार्रवाई की भी जांच होगी.
विकास वर्मन, पुलिस कप्तान, सीवान
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