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प्रैक्टिकल बिना कैसे बढ़ेगी छात्रों में वैज्ञानिक अभिरुचि

हाइस्कूलों में नहीं है प्रयोग की समुचित व्यवस्था प्रयोगशाला के बिना विज्ञान की बेहतर पढ़ाई की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. लेकिन, यह सच है कि हाइस्कूलों में प्रयोगशाला और प्रायोगिक उपकरणों का अभाव है. ऐसे में मैट्रिक के बाद साइंस पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. कॉलेज […]

हाइस्कूलों में नहीं है प्रयोग की समुचित व्यवस्था
प्रयोगशाला के बिना विज्ञान की बेहतर पढ़ाई की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. लेकिन, यह सच है कि हाइस्कूलों में प्रयोगशाला और प्रायोगिक उपकरणों का अभाव है. ऐसे में मैट्रिक के बाद साइंस पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. कॉलेज में वे प्रैक्टिकल का नाम सुनते ही घबरा जाते हैं. ऐसे में यह जरूरी है कि हाइस्कूल स्तर पर भी प्रयोगशाला की बेहतर व्यवस्था हो, ताकि कॉलेज जाने के पूर्व छात्र-छात्राएं उपकरणों पर रासायनिक पदार्थो के बारे में अनभिज्ञ न रहें.
सीवान : ऋचा को इस सत्र में अच्छे कॉलेज में नामांकन लेना है, लेकिन उसको एक बात हर वक्त परेशान कर रही है कि मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करते वक्त वह प्रायोगिक कक्षा का कभी मुंह तक नहीं देखी. न ही उसे किसी उपकरण की जानकारी है और न ही किसी केमिकल के रंग की. उसने जो भी देखा है, पढ़ा है सिर्फ किताबी ज्ञान तक ही सीमित है.
यह समस्या सिर्फ ऋचा की ही नहीं है बल्कि उसके जैसे उन तमाम छात्र-छात्राओं की है, जिन्होंने हाइस्कूल की पढ़ाई तक कभी भी प्रायोगिक कक्षा के दर्शन नहीं किये.
सरकार द्वारा प्रायोगिक कक्षाओं के लिए प्रत्येक वर्ष राशि मुहैया कराने के बावजूद भी जिले में संचालित किसी भी उच्च विद्यालय में प्रैक्टिकल कराने की सुविधा नहीं हैं. ऐसे में उन छात्र-छात्राओं को परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जो विज्ञान विषय के साथ पढ़ाई कर एक ऊंचा मुकाम हासिल करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें इस मामले में किताबी ज्ञान के अलावा विज्ञान के व्यावहारिक ज्ञान की जानकारी नहीं है.
राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान द्वारा प्रत्येक वर्ष 25 हजार रुपये उच्च विद्यालय को मुहैया कराया जाता है, लेकिन इस राशि का उपयोग वाउचर बनाने तक ही सीमित हो कर रह जाता है. वही, कुछ विद्यालयों में प्रायोगिक परीक्षा के नाम पर कभी – कभार कक्षाओं में उपकरणों को दिखा दिया जाता है.
परीक्षा के समय प्रैक्टिकल केनाम पर पैसा लेकर नंबर देने का काम विद्यालय प्रशासन द्वारा किया जाता है. जबकि इसकी जानकारी शिक्षा विभाग के वरीय पदाधिकारी को भी हैं. इस कारनामे का बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा समय पर मॉनीटरिंग भी नहीं किया जाती है. आरएमएसए द्वारा विद्यालय को राशि मुहैया कराने के बाद वैसे एजेंसी से सामान की खरीद की जाती है, जो अधिकृत भी नहीं हैं.
इसकी भी जांच नहीं की जाती है. राशि की जांच के समय शिक्षा विभाग के वरीय पदाधिकारी मामले को रफा -दफा करने में विश्वास रखते हैं, लेकिन उन्हें उन छात्र -छात्राओं के भविष्य क ी थोड़ी सी भी चिंता नहीं होती हैं . जिसके विकास के लिए राशि उपलब्ध करायी जाती है. उन्हें भी यह पता होता है कि प्रायोगिक कक्षाएं नहीं चलती हैं. गुणवत्ता शिक्षा के नाम पर छात्रों को धोखा दिया जाता है.
एनसीसी कैडेटों का योग प्रशिक्षण पांच से
सीवान: एनसीसी कै डेटों को शारीरिक मजबूती के साथ -साथ अब आंतरिक मजबूती पर भी दिया जा रहा है. इसके लिए उन्हें योग का प्रशिक्षण देकर आंतरिक रूप से मजबूत बनाया जायेगा. जिसके लिए पांच मई से डीएवी कॉलेज में शिविर का आयोजन किया गया हैं. जो 15 मई तक चलेगा.
इस संबंध में जानकारी देते हुए डीएवी के एनसीसी पदाधिकारी कैप्टन केपी गोस्वामी ने बताया कि 7 बिहार बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल एस बी सिंह के निर्देश के आलोक में सीवान व गोपालगंज जिले के एनसीसी कैडेट्स को योग का प्रशिक्षण दिया जायेगा. उन्होंने बताया कि सभी कैडेट्स योग गुरु विनोद कुमार पांडे की देखरेख में प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे.

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