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जज्बा व प्रकृति प्रेम ने दिलाया ऊंचा मुकाम

सीवान : कुछ कर गुजरने के जज्बे के साथ जब कोई कार्य शुरू किया जाता है, तब देर-सबेर कामयाबी अवश्य मिलती है. प्रकृति के साथ अटूट रिश्ता रखनेवाले अशोक आज नर्सरी और बागबानी के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुके हैं. विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद अशोक ने अपने बसंतपुर […]

सीवान : कुछ कर गुजरने के जज्बे के साथ जब कोई कार्य शुरू किया जाता है, तब देर-सबेर कामयाबी अवश्य मिलती है. प्रकृति के साथ अटूट रिश्ता रखनेवाले अशोक आज नर्सरी और बागबानी के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुके हैं. विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद अशोक ने अपने बसंतपुर प्रखंड के नगौली गांव का रुख किया.
उन्होंने छोटी सी नर्सरी से अपने कारोबार की शुरुआत की.अब यहां प्रतिवर्ष तकरीबन डेढ़ लाख पौधे तैयार हो रहे हैं. इसके अलावा फल उत्पादन के लिए छह एकड़ में की गयी बागबानी व नर्सरी के बदौलत प्रत्येक वर्ष औसतन पंद्रह लाख रुपये का मुनाफा होता है. साथ ही एक दर्जन लोगों को उसने रोजगार भी उपलब्ध कराया है. नगौली निवासी अशोक ने देश के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से भूगोल में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की है.
उच्च शिक्षा ग्रहण करने के दौरान ही अशोक सिंह सिविल सर्विसेज की तैयारी में लगे रहे. सिविल सर्विसेज में कामयाब होते, उसके पहले ही पंजाब के सत्यवीर सिंह से मुलाकात ने उनके सोच को ही बदल डाला. पहले से ही पर्यावरण के प्रति विशेष झुकाव व मित्र सत्यवीर की सलाह ने उन्हें अपने खेत व खलिहान से ही कैरियर की ऊंची मुकाम हासिल करने की प्रेरणा दी. नगौली गांव में अपने पुश्तैनी जमीन पर अशोक ने नर्सरी की नींव डाली. एक दशक पूर्व की कोशिश आज उन्हें राज्य ही नहीं, पूरे देश में ख्याति दिलायी है. उनकी नर्सरी में तकरीबन डेढ़ लाख पौधे हैं, जिसमें फलदार आम, लीची, अमरूद, आंवला, विभिन्न प्रजाति के नीबू समेत अन्य फल तथा फर्नीचर में प्रयुक्त होनेवाले सागवान, गंभार, महोवनी, सीसम, पॉपुलर, सखुआ आदि के पौधे शामिल हैं.
वन विभाग को होती है पौधों की सप्लाइ : अशोक की नर्सरी में तैयार तकरीबन पचास हजार पौधे की सप्लाइ वन विभाग को होती है. जिसमें सबसे अधिक फर्नीचर तैयार होनेवाली लकड़ियों के पौधे हैं. ये पौधे दस से पंद्रह रुपये की दर से बिकते हैं. इसके बाग में तैयार लीची की सर्वाधिक मांग छत्तीसगढ़ के रायपुर के बाजारों में है. आम व पपीता स्थानीय बाजार के अलावा आसपास के आधा दर्जन जिलों के बाजारों में सप्लाइ किये जाते हैं. साथ ही अशोक द्वारा यहां युवकों को नर्सरी तैयार करने का नि:शुल्क प्रशिक्षण भी दिया जाता है.
शोध के क्षेत्र में भी दिखती है दिलचस्पी : अशोक सिंह ने अपने नर्सरी में बीस डिसमिल जमीन पर नये प्रजाति के गेहूं तैयार करने में लगे हैं. अशोक कहते हैं कि गेहूं की ये बालियां नौ से 10 इंच लंबी हंै व इसके दाने भी सामान्य से दोगुना आकार के हैं. स्ट्रॉबरी व टीनू के पौधों को लगा कर वे यहां की जलवायु में उसके विकास व उत्पादन के उपायों में जुटे हैं. इसका प्रयोग सफल रहा, तो क्षेत्र के लिए बड़ी उपलब्धि होगी.

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