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इंसेफ्लाइटिस से पीड़ित मुकुल की जान खतरे में, मां बेबस
सीवान : सदर अस्पताल में करीब चार दिनों से जापानीज इंसेफ्लाइटिस से पीड़ित मुकुल मौत से जूझ रहा है. चिकित्सक ने पहले दिन मरीज को देखने के बाद बाल रोग विशेषज्ञ को दिखाने के साथ ही गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में इलाज कराने की सलाह दी, लेकिन गरीबी से लाचार मुकुल की मां अन्य जगह इलाज […]
सीवान : सदर अस्पताल में करीब चार दिनों से जापानीज इंसेफ्लाइटिस से पीड़ित मुकुल मौत से जूझ रहा है. चिकित्सक ने पहले दिन मरीज को देखने के बाद बाल रोग विशेषज्ञ को दिखाने के साथ ही गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में इलाज कराने की सलाह दी,
लेकिन गरीबी से लाचार मुकुल की मां अन्य जगह इलाज के लिए ले जाने में असमर्थ होने के चलते यहां के चिकित्सकों से ही इलाज करने की हर दिन गुहार लगा रही है. सदर प्रखंड के धनौती गांव निवासी रामाकांत प्रसाद की पत्नी कुंती देवी ने 12 दिसंबर को अपने पुत्र मुकुल चौहान को तेज बुखार होने पर सदर अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में भरती कराया.
ड्यूटी पर मौजूद डॉ आरसी ठाकुर ने बच्चे में इंसेफ्लाइटिस का लक्षण देखते हुए बालरोग विशेषज्ञ से दिखाने की सलाह दी तथा साथ ही कहा कि गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में उपचार कराना बेहतर होगा.वहीं परिजनों की शिकायत है कि चिकित्सकों ने बच्चे की सुध नहीं ली. बाल रोग विशेषज्ञ के द्वारा अब तक बच्चे को न देखने से परिजन नाराज हैं. उधर हाल यह है कि सदर अस्पताल में जेइ की न तो जांच की व्यवस्था है और न ही बाहर रेफर करने का कोई कारगर उपाय. हालांकि स्वास्थ्य विभाग की फाइलों में मरीजों को सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं.
गरीबी के आगे बेबस है मुकुल का परिवार : सदर प्रखंड के धनौती गांव के अति पिछड़े समाज से आने वाली कुंती देवी अपने बेटे मुकुल का सरकारी अस्पताल को छोड़ अन्य जगह इलाज करने में लाचार है. मुकुल के पिता रामाकांत प्रसाद भी गरीबी व बेटे की बीमारी के चलते परेशान हैं. सदर अस्पताल में अपने बच्चे का इलाज करा रही कुंती ने बताया कि अब तक उसका करीब दो हजार रुपया खर्च हो गया. यह इलाज गांव वालों की मदद से हो रहा है. हमारे बुढ़ापे का एकमात्र सहारा उसका बड़ा लड़का मुकुल ही है. उसके दो और छोटे-छोटे बच्चे हैं. अस्पताल के कर्मचारियों व डॉक्टरों से बस एक सवाल पूछती है कि उसका बेटा ठीक हो जायेगा न.12 दिसंबर के बाद उसका बेटा कोमा में चला गया है.
जांच की नहीं है कोई व्यवस्था : बच्चों में होने वाली खतरनाक बीमारी जापानीज इंसेफ्लाइटिस व एक्यूट इंसेफ्लाइटिस से पिछले कई वर्षो से बच्चों की मौत के मामले सामने आये हैं. इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग ने इस बीमारियों की पहचान व उसके इलाज के लिए पीएमसीएच रेफर करने की कोई कारगर योजना नहीं बनायी है. जिले के प्राइवेट अस्पतालों से प्रति वर्ष दर्जनों बच्चे गोरखपुर व पटना रेफर होते हैं, जिसकी जानकारी विभाग को नहीं होती है. संक्रमण बीमारियों की खोज खबर रखने वाला आइडीएसपी विभाग भी मृतप्राय हो गया है. सीवान जिले में जेइ व एइएस का प्रकोप होने के कारण यहां पर दो बार जेइ का वैक्सीनेशन करा कर जेई वैक्सीन को रुटीन इंम्युनाइजेशन में शामिल किया गया.
यह हैं जेइ की बीमारी व लक्षण : सूअर इस बीमारी के वाहक हैं. इसके वायरस सूअर से मच्छरों द्वारा मानव शरीर तक पहुंचते हैं. धान के खेतों में पनपने वाले मच्छर जापानी इंसेफ्लाइटिस वायरस से संक्रमित होते हैं. यह वायरस सेंट लुई एलसिफेसिटिस वायरस एंटीजनीक्ली से संबंधित फ्लेवि वायरस है. जुलाई से दिसंबर के बीच इसका सर्वाधिक प्रकोप रहता है.अधिकतर पीड़ितों में झटके आने,बेहोशी और कोमा में चले जाने के लक्षण दिखते हैं. इससे पीड़ित 50 से 60 प्रतिशत मरीज की मौत हो जाती है.बचे हुए अधिकतर मरीज लकवाग्रस्त हो जाते हैं. इस बीमारी से तीन से 15 वर्ष तक के बच्चे सर्वाधिक शिकार होते हैं.
क्या कहते है सिविल सजर्न
जेइ व एइएस की जांच के लिए यहां कोई व्यवस्था नहीं है. पीड़ित मरीज के संबंध में कोई जानकारी नहीं है. मैं अभी जिले से बाहर हूं.
डॉ अनिल कुमार चौधरी, सिविल सजर्न
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